आवाज दे तू कहाँ है
एक दिन वीरू अपने कुछ दोस्तों के साथ बैठ कर दारू पी रहा था. पास से गुजरते हुए मोहल्ले के एक बुजर्ग सज्जन ने कहा की बेटा में तुम्हे पहले भी कही बार कह चुका हूँ की दारू पीना बहुत बुरी बात होती है. तुम मेरी बात मानो या न मानो लेकिन तुम बिलकुल गलत रास्ते पर जा रहे हो. इस तरह बहुत जल्द तुम अपने परिवार के साथ-साथ भगवान से भी दूर हो जाओगे. यदि अब भी तुम ने अपनी आदत न बदली तो भगवान से मिलना तो दूर तुम सारी उम्र उसके कभी दर्शन भी नहीं कर पाओगे. जैसा की अक्सर होता है की दारू पीने वाले बिना सिर पैर की बातो पर बहस करने लगते है. इसी तरह वीरू भी उस बुजर्ग के साथ इस विषय को लेकर उलझगया की में तुम्हारी यह फालतू की किसी बात को नहीं मानता, क्यू की भगवान इस दुनिया में है ही नहीं. क्या तुम मुझे किसी भी एक ऐसे आदमी से मिलवा सकते हो जिस ने भगवान को अपने जीवन में देखा हो? उस बुजर्ग ने वीरू से कहा की क्या तुम यह साबित कर सकते हो यदि भगवान नहीं है तो इतनी बड़ी दुनिया खुद ब खुद कैसे बन गयी? वीरू ने दारू का घूँट पीते हुए कहा की में यह तो नहीं जानता की इस दुनिया को किस ने और कैसे बनाया लेकिन में यह सिद्ध कर सकता हूँ की भगवान नाम की कोई चीज़ इस दुनिया में मौजूद नहीं है. वीरू के इस दावे को सुन कर एक बार तो वोह बजुर्ग भी सन्न रह गए. एक लंबी सी सांस लेने के बाद उस बजुर्ग ने कहा की तुम्हारे पास ऐसा कौन सा विज्ञान है जिस के दम पर तुम यह इतना बड़ा दावा कर रहे हो.
वीरू ने कहा जब कुछ दिन पहले भी हमारी इस मुद्दे पर बहस हुई थी तो आप ने कहा था की भगवान तो कण-कण में रहता है. मैंने उसी दिन एक पत्र भगवान के नाम लिख भेजा था. मैंने उस चिठ्ठी में भगवान को लिखा था की ऐह प्यारे भगवान जी यदि आप इस दुनिया में कही भी रहते हो तो एक बार हमारे मोहल्ले में ज़रूर आओ ताकि हम लोग यह फैसला कर सके की तुम सच में हो या नहीं. जैसा आप ने कहा था मैंने यह खत ईश्वर सर्वशक्तिमान सर्वत्र व्यापत के नाम से डाक में भेज दिया था. वैसे तो अब तक में भी इस बात को पूरी तरह से भूल चुका था लेकिन कल ही अचानक भगवान जी की चिठ्ठी डाकखाने वालों ने यह लिख कर वापिस भेज दी की इस पत्र को पाने वाला कोई नहीं मिला इसलिए भेजने वाले को वापिस किया जाता है. इस चिठ्ठी के वापिस आने से पहले तो मेरे मन में भी कई बार ग़लतफहमी होती थी की शायद भगवान दुनिया के किसी कोने में रहते होगे, परन्तु अब तो हमारी सरकार ने भी मेरी बात को मानते हुए इस पर अपनी मोहर लगा कर यह प्रमाणित कर दिया है की भगवान इस जगत में कही नहीं रहता.
वीरू की सारी दलीले सुनने के बाद यह बजुर्ग एक बार तो बुरी तरह से चकरा गए की इस नास्तिक को कैसे बताया जाये की जिस ने सूरज, चाँद और सारी दुनिया बनाई है जब तक हम उसके करीब नहीं जायेगे तो हम उसके बारे में कैसे जान सकते है. इतना तो हर कोई जानता है की ईश्वर का न कोई रंग है, न कोई रूप और न ही उस का कोई आकार होता है. मुश्किल की घडी में जब दिल के किसी कोने से भगवान के होने का हल्का सा भी एहसास होता है तो बड़ा ही सकून मिलता है. इस बात से हम कैसे इंकार कर सकते है की जब हमारे साथ कोई नहीं होता उस समय केवल भगवान ही हमारा साथ देते है. जिन लोगो ने इस चीज़ को अनुभव किया है उन लोगो का यकीन देखने लायक होता है. यह सारे तर्क सुनने के बाद वीरू ने बजुर्ग महाशय का मजाक उड़ाते हुए कहा की आप की इन सारी बातों से भगवान की मौजदूगी तो साबित नहीं होती.
बजुर्ग महाशय ने सोचा की इस अक्कल के अंधे से और अधिक बहस क्या की जाये की क्युकि जिस हालत में यह है उसमे तो यह खुद को भी नहीं पहचान पा रहा तो ऐसे में यह भगवान को क्या समझेगा. यही बात सोच कर वोह वहाँ से उठ कर उसी इमारत की छत पर चले गए. वीरू को थोड़ी हैरानगी हुई की यह आदमी इस समय रात के अँधेरे में छत पर क्या करने गया होगा. दारू का गिलास वोही छोड कर वीरू ने इस बुजर्ग से पुछा की इतने अँधेरे में यहाँ क्या कर रहे हो? बुजर्ग ने जवाब दिया की मेरा ऊंट गुम गया है उसे ढूँढने आया हूँ. वीरू ने कहा की कही आपका सिर तो नहीं चकरा गया जो ऊंट को इस छत पर ढूँढ रहे हो. बजुर्ग ने वीरू से कहा यदि इतनी बात समझते हो तो फिर यह भी ज़रूर जानते होगे की एक बीज से अच्छा पेड बनने और उस पर फल फूल पाने के लिए बीज को अपना अस्तित्व खत्म करके मिट्टी से प्रीत करनी पड़ती है. जब तक कोई बीज अपने अंदर का अंहकार खत्म करके पूर्ण रूप से खुद को मिट्टी में नहीं मिलाता उस समय तक वोह एक अच्छा पेड बनने की कल्पना भी नहीं कर सकता.
वीरू के कंधे पर हाथ रख कर बजुर्ग ने कहा मेरे भाई जब तक हमारी दृष्टि में खोट होता है उस समय तक हमें सारी दुनिया में ही खोट दिखाई देता है. ऐसी सोच रखने वाले इंसान को कोई कैसे समझा सकता है की भगवान में विश्वास तन से नहीं मन से अधिक होता है. पूजा पाठ, इबादत का आनंद भी तभी मिलता है जब हमारा मन हमारे साथ होता है. जब कुछ देर बाद वीरू का नशा उतरा तो वोह इन बजुर्ग सज्जन के पास माफ़ी मांगने के लिए आया. माफ़ी मांगने के साथ वीरू ने कहा की एक बात तो समझा दो की मुझ जैसे अनजान लोग भगवान को कैसे पा सकते है? बजुर्ग सज्जन ने कहा की उसको पाने का सबसे आसान तरीका है अच्छी संगत करना. इससे यह फायदा होता है की हमारी सोच भी अच्छी बनने लगती है. इसका एक उदारण यह है की जिस प्रकार पानी की एक बूँद भी कमल के फूल के ऊपर गिरते ही साधारण पानी की जगह एक मोती की तरह दिखाई देने लगती है. बजुर्ग सज्जन की बात कहने के तरीके से प्रभावित होकर जोली अंकल यही दुआ करते है की ऐह भगवान मेरे जैसे लाखो-करोडों नासमझ लोगो को सही राह पर लाने के लिए तू ही आवाज़ दे कर बता की तू कहाँ है.
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Sunday, November 27, 2011
आवाज़ दे तू कहाँ है - जोली अंकल
आवाज दे तू कहाँ है
एक दिन वीरू अपने कुछ दोस्तों के साथ बैठ कर दारू पी रहा था. पास से गुजरते हुए मोहल्ले के एक बुजर्ग सज्जन ने कहा की बेटा में तुम्हे पहले भी कही बार कह चुका हूँ की दारू पीना बहुत बुरी बात होती है. तुम मेरी बात मानो या न मानो लेकिन तुम बिलकुल गलत रास्ते पर जा रहे हो. इस तरह बहुत जल्द तुम अपने परिवार के साथ-साथ भगवान से भी दूर हो जाओगे. यदि अब भी तुम ने अपनी आदत न बदली तो भगवान से मिलना तो दूर तुम सारी उम्र उसके कभी दर्शन भी नहीं कर पाओगे. जैसा की अक्सर होता है की दारू पीने वाले बिना सिर पैर की बातो पर बहस करने लगते है. इसी तरह वीरू भी उस बुजर्ग के साथ इस विषय को लेकर उलझगया की में तुम्हारी यह फालतू की किसी बात को नहीं मानता, क्यू की भगवान इस दुनिया में है ही नहीं. क्या तुम मुझे किसी भी एक ऐसे आदमी से मिलवा सकते हो जिस ने भगवान को अपने जीवन में देखा हो? उस बुजर्ग ने वीरू से कहा की क्या तुम यह साबित कर सकते हो यदि भगवान नहीं है तो इतनी बड़ी दुनिया खुद ब खुद कैसे बन गयी? वीरू ने दारू का घूँट पीते हुए कहा की में यह तो नहीं जानता की इस दुनिया को किस ने और कैसे बनाया लेकिन में यह सिद्ध कर सकता हूँ की भगवान नाम की कोई चीज़ इस दुनिया में मौजूद नहीं है. वीरू के इस दावे को सुन कर एक बार तो वोह बजुर्ग भी सन्न रह गए. एक लंबी सी सांस लेने के बाद उस बजुर्ग ने कहा की तुम्हारे पास ऐसा कौन सा विज्ञान है जिस के दम पर तुम यह इतना बड़ा दावा कर रहे हो.
वीरू ने कहा जब कुछ दिन पहले भी हमारी इस मुद्दे पर बहस हुई थी तो आप ने कहा था की भगवान तो कण-कण में रहता है. मैंने उसी दिन एक पत्र भगवान के नाम लिख भेजा था. मैंने उस चिठ्ठी में भगवान को लिखा था की ऐह प्यारे भगवान जी यदि आप इस दुनिया में कही भी रहते हो तो एक बार हमारे मोहल्ले में ज़रूर आओ ताकि हम लोग यह फैसला कर सके की तुम सच में हो या नहीं. जैसा आप ने कहा था मैंने यह खत ईश्वर सर्वशक्तिमान सर्वत्र व्यापत के नाम से डाक में भेज दिया था. वैसे तो अब तक में भी इस बात को पूरी तरह से भूल चुका था लेकिन कल ही अचानक भगवान जी की चिठ्ठी डाकखाने वालों ने यह लिख कर वापिस भेज दी की इस पत्र को पाने वाला कोई नहीं मिला इसलिए भेजने वाले को वापिस किया जाता है. इस चिठ्ठी के वापिस आने से पहले तो मेरे मन में भी कई बार ग़लतफहमी होती थी की शायद भगवान दुनिया के किसी कोने में रहते होगे, परन्तु अब तो हमारी सरकार ने भी मेरी बात को मानते हुए इस पर अपनी मोहर लगा कर यह प्रमाणित कर दिया है की भगवान इस जगत में कही नहीं रहता.
वीरू की सारी दलीले सुनने के बाद यह बजुर्ग एक बार तो बुरी तरह से चकरा गए की इस नास्तिक को कैसे बताया जाये की जिस ने सूरज, चाँद और सारी दुनिया बनाई है जब तक हम उसके करीब नहीं जायेगे तो हम उसके बारे में कैसे जान सकते है. इतना तो हर कोई जानता है की ईश्वर का न कोई रंग है, न कोई रूप और न ही उस का कोई आकार होता है. मुश्किल की घडी में जब दिल के किसी कोने से भगवान के होने का हल्का सा भी एहसास होता है तो बड़ा ही सकून मिलता है. इस बात से हम कैसे इंकार कर सकते है की जब हमारे साथ कोई नहीं होता उस समय केवल भगवान ही हमारा साथ देते है. जिन लोगो ने इस चीज़ को अनुभव किया है उन लोगो का यकीन देखने लायक होता है. यह सारे तर्क सुनने के बाद वीरू ने बजुर्ग महाशय का मजाक उड़ाते हुए कहा की आप की इन सारी बातों से भगवान की मौजदूगी तो साबित नहीं होती.
बजुर्ग महाशय ने सोचा की इस अक्कल के अंधे से और अधिक बहस क्या की जाये की क्युकि जिस हालत में यह है उसमे तो यह खुद को भी नहीं पहचान पा रहा तो ऐसे में यह भगवान को क्या समझेगा. यही बात सोच कर वोह वहाँ से उठ कर उसी इमारत की छत पर चले गए. वीरू को थोड़ी हैरानगी हुई की यह आदमी इस समय रात के अँधेरे में छत पर क्या करने गया होगा. दारू का गिलास वोही छोड कर वीरू ने इस बुजर्ग से पुछा की इतने अँधेरे में यहाँ क्या कर रहे हो? बुजर्ग ने जवाब दिया की मेरा ऊंट गुम गया है उसे ढूँढने आया हूँ. वीरू ने कहा की कही आपका सिर तो नहीं चकरा गया जो ऊंट को इस छत पर ढूँढ रहे हो. बजुर्ग ने वीरू से कहा यदि इतनी बात समझते हो तो फिर यह भी ज़रूर जानते होगे की एक बीज से अच्छा पेड बनने और उस पर फल फूल पाने के लिए बीज को अपना अस्तित्व खत्म करके मिट्टी से प्रीत करनी पड़ती है. जब तक कोई बीज अपने अंदर का अंहकार खत्म करके पूर्ण रूप से खुद को मिट्टी में नहीं मिलाता उस समय तक वोह एक अच्छा पेड बनने की कल्पना भी नहीं कर सकता.
वीरू के कंधे पर हाथ रख कर बजुर्ग ने कहा मेरे भाई जब तक हमारी दृष्टि में खोट होता है उस समय तक हमें सारी दुनिया में ही खोट दिखाई देता है. ऐसी सोच रखने वाले इंसान को कोई कैसे समझा सकता है की भगवान में विश्वास तन से नहीं मन से अधिक होता है. पूजा पाठ, इबादत का आनंद भी तभी मिलता है जब हमारा मन हमारे साथ होता है. जब कुछ देर बाद वीरू का नशा उतरा तो वोह इन बजुर्ग सज्जन के पास माफ़ी मांगने के लिए आया. माफ़ी मांगने के साथ वीरू ने कहा की एक बात तो समझा दो की मुझ जैसे अनजान लोग भगवान को कैसे पा सकते है? बजुर्ग सज्जन ने कहा की उसको पाने का सबसे आसान तरीका है अच्छी संगत करना. इससे यह फायदा होता है की हमारी सोच भी अच्छी बनने लगती है. इसका एक उदारण यह है की जिस प्रकार पानी की एक बूँद भी कमल के फूल के ऊपर गिरते ही साधारण पानी की जगह एक मोती की तरह दिखाई देने लगती है. बजुर्ग सज्जन की बात कहने के तरीके से प्रभावित होकर जोली अंकल यही दुआ करते है की ऐह भगवान मेरे जैसे लाखो-करोडों नासमझ लोगो को सही राह पर लाने के लिए तू ही आवाज़ दे कर बता की तू कहाँ है.
एक दिन वीरू अपने कुछ दोस्तों के साथ बैठ कर दारू पी रहा था. पास से गुजरते हुए मोहल्ले के एक बुजर्ग सज्जन ने कहा की बेटा में तुम्हे पहले भी कही बार कह चुका हूँ की दारू पीना बहुत बुरी बात होती है. तुम मेरी बात मानो या न मानो लेकिन तुम बिलकुल गलत रास्ते पर जा रहे हो. इस तरह बहुत जल्द तुम अपने परिवार के साथ-साथ भगवान से भी दूर हो जाओगे. यदि अब भी तुम ने अपनी आदत न बदली तो भगवान से मिलना तो दूर तुम सारी उम्र उसके कभी दर्शन भी नहीं कर पाओगे. जैसा की अक्सर होता है की दारू पीने वाले बिना सिर पैर की बातो पर बहस करने लगते है. इसी तरह वीरू भी उस बुजर्ग के साथ इस विषय को लेकर उलझगया की में तुम्हारी यह फालतू की किसी बात को नहीं मानता, क्यू की भगवान इस दुनिया में है ही नहीं. क्या तुम मुझे किसी भी एक ऐसे आदमी से मिलवा सकते हो जिस ने भगवान को अपने जीवन में देखा हो? उस बुजर्ग ने वीरू से कहा की क्या तुम यह साबित कर सकते हो यदि भगवान नहीं है तो इतनी बड़ी दुनिया खुद ब खुद कैसे बन गयी? वीरू ने दारू का घूँट पीते हुए कहा की में यह तो नहीं जानता की इस दुनिया को किस ने और कैसे बनाया लेकिन में यह सिद्ध कर सकता हूँ की भगवान नाम की कोई चीज़ इस दुनिया में मौजूद नहीं है. वीरू के इस दावे को सुन कर एक बार तो वोह बजुर्ग भी सन्न रह गए. एक लंबी सी सांस लेने के बाद उस बजुर्ग ने कहा की तुम्हारे पास ऐसा कौन सा विज्ञान है जिस के दम पर तुम यह इतना बड़ा दावा कर रहे हो.
वीरू ने कहा जब कुछ दिन पहले भी हमारी इस मुद्दे पर बहस हुई थी तो आप ने कहा था की भगवान तो कण-कण में रहता है. मैंने उसी दिन एक पत्र भगवान के नाम लिख भेजा था. मैंने उस चिठ्ठी में भगवान को लिखा था की ऐह प्यारे भगवान जी यदि आप इस दुनिया में कही भी रहते हो तो एक बार हमारे मोहल्ले में ज़रूर आओ ताकि हम लोग यह फैसला कर सके की तुम सच में हो या नहीं. जैसा आप ने कहा था मैंने यह खत ईश्वर सर्वशक्तिमान सर्वत्र व्यापत के नाम से डाक में भेज दिया था. वैसे तो अब तक में भी इस बात को पूरी तरह से भूल चुका था लेकिन कल ही अचानक भगवान जी की चिठ्ठी डाकखाने वालों ने यह लिख कर वापिस भेज दी की इस पत्र को पाने वाला कोई नहीं मिला इसलिए भेजने वाले को वापिस किया जाता है. इस चिठ्ठी के वापिस आने से पहले तो मेरे मन में भी कई बार ग़लतफहमी होती थी की शायद भगवान दुनिया के किसी कोने में रहते होगे, परन्तु अब तो हमारी सरकार ने भी मेरी बात को मानते हुए इस पर अपनी मोहर लगा कर यह प्रमाणित कर दिया है की भगवान इस जगत में कही नहीं रहता.
वीरू की सारी दलीले सुनने के बाद यह बजुर्ग एक बार तो बुरी तरह से चकरा गए की इस नास्तिक को कैसे बताया जाये की जिस ने सूरज, चाँद और सारी दुनिया बनाई है जब तक हम उसके करीब नहीं जायेगे तो हम उसके बारे में कैसे जान सकते है. इतना तो हर कोई जानता है की ईश्वर का न कोई रंग है, न कोई रूप और न ही उस का कोई आकार होता है. मुश्किल की घडी में जब दिल के किसी कोने से भगवान के होने का हल्का सा भी एहसास होता है तो बड़ा ही सकून मिलता है. इस बात से हम कैसे इंकार कर सकते है की जब हमारे साथ कोई नहीं होता उस समय केवल भगवान ही हमारा साथ देते है. जिन लोगो ने इस चीज़ को अनुभव किया है उन लोगो का यकीन देखने लायक होता है. यह सारे तर्क सुनने के बाद वीरू ने बजुर्ग महाशय का मजाक उड़ाते हुए कहा की आप की इन सारी बातों से भगवान की मौजदूगी तो साबित नहीं होती.
बजुर्ग महाशय ने सोचा की इस अक्कल के अंधे से और अधिक बहस क्या की जाये की क्युकि जिस हालत में यह है उसमे तो यह खुद को भी नहीं पहचान पा रहा तो ऐसे में यह भगवान को क्या समझेगा. यही बात सोच कर वोह वहाँ से उठ कर उसी इमारत की छत पर चले गए. वीरू को थोड़ी हैरानगी हुई की यह आदमी इस समय रात के अँधेरे में छत पर क्या करने गया होगा. दारू का गिलास वोही छोड कर वीरू ने इस बुजर्ग से पुछा की इतने अँधेरे में यहाँ क्या कर रहे हो? बुजर्ग ने जवाब दिया की मेरा ऊंट गुम गया है उसे ढूँढने आया हूँ. वीरू ने कहा की कही आपका सिर तो नहीं चकरा गया जो ऊंट को इस छत पर ढूँढ रहे हो. बजुर्ग ने वीरू से कहा यदि इतनी बात समझते हो तो फिर यह भी ज़रूर जानते होगे की एक बीज से अच्छा पेड बनने और उस पर फल फूल पाने के लिए बीज को अपना अस्तित्व खत्म करके मिट्टी से प्रीत करनी पड़ती है. जब तक कोई बीज अपने अंदर का अंहकार खत्म करके पूर्ण रूप से खुद को मिट्टी में नहीं मिलाता उस समय तक वोह एक अच्छा पेड बनने की कल्पना भी नहीं कर सकता.
वीरू के कंधे पर हाथ रख कर बजुर्ग ने कहा मेरे भाई जब तक हमारी दृष्टि में खोट होता है उस समय तक हमें सारी दुनिया में ही खोट दिखाई देता है. ऐसी सोच रखने वाले इंसान को कोई कैसे समझा सकता है की भगवान में विश्वास तन से नहीं मन से अधिक होता है. पूजा पाठ, इबादत का आनंद भी तभी मिलता है जब हमारा मन हमारे साथ होता है. जब कुछ देर बाद वीरू का नशा उतरा तो वोह इन बजुर्ग सज्जन के पास माफ़ी मांगने के लिए आया. माफ़ी मांगने के साथ वीरू ने कहा की एक बात तो समझा दो की मुझ जैसे अनजान लोग भगवान को कैसे पा सकते है? बजुर्ग सज्जन ने कहा की उसको पाने का सबसे आसान तरीका है अच्छी संगत करना. इससे यह फायदा होता है की हमारी सोच भी अच्छी बनने लगती है. इसका एक उदारण यह है की जिस प्रकार पानी की एक बूँद भी कमल के फूल के ऊपर गिरते ही साधारण पानी की जगह एक मोती की तरह दिखाई देने लगती है. बजुर्ग सज्जन की बात कहने के तरीके से प्रभावित होकर जोली अंकल यही दुआ करते है की ऐह भगवान मेरे जैसे लाखो-करोडों नासमझ लोगो को सही राह पर लाने के लिए तू ही आवाज़ दे कर बता की तू कहाँ है.
Wednesday, November 23, 2011
चकर पे चकर - जोली अंकल का नया लेख
’’ चक्कर पे चक्कर ’’
बंसन्ती ने जब बार-बार खाना खाने के लिये मना किया तो उसकी मौसी ने डांटते हुए उससे खाना न खाने का कारण पूछा। बंसन्ती ने डरते हुए बताया कि उसे उल्टी के साथ चक्कर आ रहे है। मौसी ने पूछा कि तेरा पति तो तुझे कब से छोड़ कर जा चुका है, फिर अब यह कैसी उल्टी और कैसे चक्कर आ रहे है? बंसन्ती ने थोड़ा झिझकते हुए कहा मौसी वो बीच में कभी-कभी माफी मांगने आ जाते है बस उसी कारण से यह चक्कर आ रहे है। इतना सुनते ही मौसी को ऐसा लगा जैसे उसके सिर पर घड़ों पानी पड़ गया हो। इससे पहले की मौसी कुछ और कह पाती वो चक्कर खाने के साथ बेहोष होकर गिर पड़ी। कुछ देर जब मौसी को होष आया तो उसने कहा कि तेरा पति तो बहुत चलता-पुर्जा है ही तू भी चकमा देने में कम नही है। मेरे सामने तो हर समय उसकी बुराई करते नही थकती लेकिन मेरी पीठ पीछे झट से उसके साथ घी-खिचड़ी हो जाती है। तेरी इन्ही बेवकूफियों के कारण वो तुझे अपने चक्कर में फंसाने में कामयाब हो जाता है। यह सब कहते सुनते बंसन्ती का चेहरा फ़क पड़ता जा रहा था वही मौसी का चेहरा गुस्से में और अधिक तमतमाने लगा था।
वैसे तो चक्कर आने के अलग-अलग कारण और परिस्थितियां होती भी है। कभी सेहत की गड़बड़ी से, कभी दिल के लगाने से और कभी दिल के टूटने से। परंतु तेजी से बदलते जमाने में यदि मुहावरों पर गहराई से विचार किया जाये तो इन्हें देख कर भी कई लोगो को चक्कर आने लगते है। बहुत से ऐसे मुहावरे है जिन को बनाते समय लगता है, कि हमारे बर्जुगो ने बिल्कुल ध्यान नही दिया। सदियों पहले इनके क्या मायने थे यह तो हम नही जानते लेकिन आज के वक्त की पीढ़ी को इनका मतलब समझाते-समझाते सिर चक्कर खाने लगता है। एक बहुत ही पुराना लेकिन बड़ा ही लोकप्रिय मुहावरा है कि न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी। अरे भैया, नाचने के लिए राधा को नौ मन तेल की क्या जरूरत पड़ गई? अगर नाचने वाली जगह पर 50-100 ग्राम भी तेल गिर जाये तो राधा तो बेचारी फिसल कर गिर नही जायेगी। क्या मुहावरा बनाने वालों ने इतना भी नही सोचा कि नीचे गिरते ही राधा के हाथ पांव में प्लास्टर लगवाना पड़ेगा। वैसे भी जहां नाच गाने का कोई प्रोग्राम होता है, वहां तो साफ सफाई की जाती है न कि वहां तेल मंगवा कर गिराया जाता है। अब जहां इतना तेल होगा, वहां तो आदमी खड़ा भी नही हो सकता, नाचना गाना तो बहुत दूर की बात है। वैसे भी मंहगाई के इस दौर में नौ मन तेल लाना किस के बस की बात है? घर के लिये किलो-दो किलो तेल लाना ही आम आदमी को भारी पड़ता है। महीने के षुरू में तो कुछ दिन तेल-घी वाली रोटी के दर्षन हो भी जाते है, लेकिन बाकी का सारा महीना तो सूखी रोटी से ही पेट भरना पड़ता है। तेल की बढ़ती हुई कीमतो को देख कर तो बड़े से बडा रईस भी आज अपने घर में नौ मन तेल नही ला सकता। वैसे भी मुहावरा बनाने वालो से यह पूछा जाये कि इतना तेल मंगवा कर क्या राधा को उसमें नहलाना है? लोगो को नहाने के लिए पानी तक तो ठीक से नसीब होता नही, यह राधा को तेल से नहलायेगे क्या? इस मुहावरे को बनाने वालों ने यह भी नही बताया कि राधा को कौन सा तेल चाहिए? खाने वाला या गाड़ी में डालने वाला, सरसों का या नारियल का। क्या आज तक आपने कभी किसी को तेल पी कर नाचते देखा है। नाचने वालो को तो दारू के दो पैग मिल जाऐं बस वो ही काफी होते है। जिस आदमी ने जिंदगी में कभी डांस न किया हो, दारू के 2-4 पैग पीने के बाद तो वो भी डिस्को डांसर बन जाता है।
सिर्फ इंसानो के मुहावरे ही नही जानवरों के मुहावरे भी चक्कर देने में कम नही है। जी हंा यह मुहावरा है बिल्ली और चूहे का। एक बात तो हमें यह नही समझ आती की आदमियों के मुहावरो में बिल्ली चूहे का क्या काम? खैर हमें उससे क्या लेना-देना जिस किसी ने भी यह मुहावरा बनाया होगा, कुछ सोच समझ कर ही बनाया होगा, या उसे चूहे बिल्लियों से बहुत प्यार रहा होगा। हम बात कर रहे है 900 चूहें खाकर बिल्ली हज को चली। अब कोई मुहावरा बनाने वाले से यह पूछे कि क्या उसने गिनती की थी कि बिल्ली ने हज पर जाने से पहले कितने चूहे खाये थे? क्या बिल्ली ने हज में जाते हुए रास्ते में कोई चूहा नही खाया था। अगर उसने कोई चूहा नही खाया तो रास्ते में उसने क्या पीजा-बर्गर खाया था। मुहावरो बनाने वाले यह भी तो नही बताते कि बिल्लियां हज करने जाती कहां है? अजी छोड़ो इन बातो को हमें इससे क्या लेना है, बिल्ली जितने चूहे खाती है, खाने दो। वैसे यह बिल्ली तो बड़ी हिम्मत वाली होगी जो 900 चूहें खाकर हज को चली गई, क्योकि एक आम आदमी की तो दो-चार नान खाने से ही जान निकलने लगती है।
यह क्या, अगले मुहावरे में तो और भी कमाल हो गया, इसमें तो किसी ने बेचारी भैंसो को ही घसीट लिया है, जी आपका अंदाजा बिल्कुल ठीक है। यह मुहावरा है भैंस के आगे बीन बजाना। यार अगर भैंस को कुछ सुनाना ही है, तो कोई तबला या कोई बढि़या सी गिटार पर धुन सुना दो। यदि यह नही बजा सकते तो कम से कम ढोल ही बजा दो। भैंस को कुछ मजा तो आये। भैंस बेचारी बीन सुन कर क्या करेगी? वैसे भी बीन तो सांप को खुष करने के लिये बजाई जाती है। अब छोटी सी बीन से भैंस को क्या मजा आयेगा? क्या कहा आपको तो अभी से ही चक्कर आने लगे है। अभी तो भैंस की और भी बहुत सारी बाते आपसे करनी है। भैंस का एक और बहुत ही महषूर मुहावरा है, लो गई भैंस पानी में। अब एक बात बताओ कि भैंस यदि पानी में नही जायेगी तो क्या बाथरूम में नहाने जायेगी। हम सभी को गर्मी लगती है, हम भी तो पानी के साथ ही नहाते है, अब अगर भैंस पानी में चली गई तो उस बेचारी ने क्या गुनाह कर दिया?
मुहावरे बनाने वाले विद्वान लोग भाशा को अधिक प्रभावी बनाने के लिये तथ्य ढूंढने का काम करते हेै न कि उनमे दोश ढूंढने का। भाशा से अनजान लोगों को हो सकता है कि मुहावरे सुनते ही चक्कर आते हो। जौली अंकल की राय तो यही है कि असल में मुहावरो का इस्तेमाल तो इसलिये किया जाता है ताकि किसी बात को साधारण तरीके से न कह कर विषेश अर्थो के साथ आसानी से व्यक्त किया जा सके ताकि पढ़ने सुनने वालों को चक्कर पे चक्कर न आयें।
बंसन्ती ने जब बार-बार खाना खाने के लिये मना किया तो उसकी मौसी ने डांटते हुए उससे खाना न खाने का कारण पूछा। बंसन्ती ने डरते हुए बताया कि उसे उल्टी के साथ चक्कर आ रहे है। मौसी ने पूछा कि तेरा पति तो तुझे कब से छोड़ कर जा चुका है, फिर अब यह कैसी उल्टी और कैसे चक्कर आ रहे है? बंसन्ती ने थोड़ा झिझकते हुए कहा मौसी वो बीच में कभी-कभी माफी मांगने आ जाते है बस उसी कारण से यह चक्कर आ रहे है। इतना सुनते ही मौसी को ऐसा लगा जैसे उसके सिर पर घड़ों पानी पड़ गया हो। इससे पहले की मौसी कुछ और कह पाती वो चक्कर खाने के साथ बेहोष होकर गिर पड़ी। कुछ देर जब मौसी को होष आया तो उसने कहा कि तेरा पति तो बहुत चलता-पुर्जा है ही तू भी चकमा देने में कम नही है। मेरे सामने तो हर समय उसकी बुराई करते नही थकती लेकिन मेरी पीठ पीछे झट से उसके साथ घी-खिचड़ी हो जाती है। तेरी इन्ही बेवकूफियों के कारण वो तुझे अपने चक्कर में फंसाने में कामयाब हो जाता है। यह सब कहते सुनते बंसन्ती का चेहरा फ़क पड़ता जा रहा था वही मौसी का चेहरा गुस्से में और अधिक तमतमाने लगा था।
वैसे तो चक्कर आने के अलग-अलग कारण और परिस्थितियां होती भी है। कभी सेहत की गड़बड़ी से, कभी दिल के लगाने से और कभी दिल के टूटने से। परंतु तेजी से बदलते जमाने में यदि मुहावरों पर गहराई से विचार किया जाये तो इन्हें देख कर भी कई लोगो को चक्कर आने लगते है। बहुत से ऐसे मुहावरे है जिन को बनाते समय लगता है, कि हमारे बर्जुगो ने बिल्कुल ध्यान नही दिया। सदियों पहले इनके क्या मायने थे यह तो हम नही जानते लेकिन आज के वक्त की पीढ़ी को इनका मतलब समझाते-समझाते सिर चक्कर खाने लगता है। एक बहुत ही पुराना लेकिन बड़ा ही लोकप्रिय मुहावरा है कि न नौ मन तेल होगा, न राधा नाचेगी। अरे भैया, नाचने के लिए राधा को नौ मन तेल की क्या जरूरत पड़ गई? अगर नाचने वाली जगह पर 50-100 ग्राम भी तेल गिर जाये तो राधा तो बेचारी फिसल कर गिर नही जायेगी। क्या मुहावरा बनाने वालों ने इतना भी नही सोचा कि नीचे गिरते ही राधा के हाथ पांव में प्लास्टर लगवाना पड़ेगा। वैसे भी जहां नाच गाने का कोई प्रोग्राम होता है, वहां तो साफ सफाई की जाती है न कि वहां तेल मंगवा कर गिराया जाता है। अब जहां इतना तेल होगा, वहां तो आदमी खड़ा भी नही हो सकता, नाचना गाना तो बहुत दूर की बात है। वैसे भी मंहगाई के इस दौर में नौ मन तेल लाना किस के बस की बात है? घर के लिये किलो-दो किलो तेल लाना ही आम आदमी को भारी पड़ता है। महीने के षुरू में तो कुछ दिन तेल-घी वाली रोटी के दर्षन हो भी जाते है, लेकिन बाकी का सारा महीना तो सूखी रोटी से ही पेट भरना पड़ता है। तेल की बढ़ती हुई कीमतो को देख कर तो बड़े से बडा रईस भी आज अपने घर में नौ मन तेल नही ला सकता। वैसे भी मुहावरा बनाने वालो से यह पूछा जाये कि इतना तेल मंगवा कर क्या राधा को उसमें नहलाना है? लोगो को नहाने के लिए पानी तक तो ठीक से नसीब होता नही, यह राधा को तेल से नहलायेगे क्या? इस मुहावरे को बनाने वालों ने यह भी नही बताया कि राधा को कौन सा तेल चाहिए? खाने वाला या गाड़ी में डालने वाला, सरसों का या नारियल का। क्या आज तक आपने कभी किसी को तेल पी कर नाचते देखा है। नाचने वालो को तो दारू के दो पैग मिल जाऐं बस वो ही काफी होते है। जिस आदमी ने जिंदगी में कभी डांस न किया हो, दारू के 2-4 पैग पीने के बाद तो वो भी डिस्को डांसर बन जाता है।
सिर्फ इंसानो के मुहावरे ही नही जानवरों के मुहावरे भी चक्कर देने में कम नही है। जी हंा यह मुहावरा है बिल्ली और चूहे का। एक बात तो हमें यह नही समझ आती की आदमियों के मुहावरो में बिल्ली चूहे का क्या काम? खैर हमें उससे क्या लेना-देना जिस किसी ने भी यह मुहावरा बनाया होगा, कुछ सोच समझ कर ही बनाया होगा, या उसे चूहे बिल्लियों से बहुत प्यार रहा होगा। हम बात कर रहे है 900 चूहें खाकर बिल्ली हज को चली। अब कोई मुहावरा बनाने वाले से यह पूछे कि क्या उसने गिनती की थी कि बिल्ली ने हज पर जाने से पहले कितने चूहे खाये थे? क्या बिल्ली ने हज में जाते हुए रास्ते में कोई चूहा नही खाया था। अगर उसने कोई चूहा नही खाया तो रास्ते में उसने क्या पीजा-बर्गर खाया था। मुहावरो बनाने वाले यह भी तो नही बताते कि बिल्लियां हज करने जाती कहां है? अजी छोड़ो इन बातो को हमें इससे क्या लेना है, बिल्ली जितने चूहे खाती है, खाने दो। वैसे यह बिल्ली तो बड़ी हिम्मत वाली होगी जो 900 चूहें खाकर हज को चली गई, क्योकि एक आम आदमी की तो दो-चार नान खाने से ही जान निकलने लगती है।
यह क्या, अगले मुहावरे में तो और भी कमाल हो गया, इसमें तो किसी ने बेचारी भैंसो को ही घसीट लिया है, जी आपका अंदाजा बिल्कुल ठीक है। यह मुहावरा है भैंस के आगे बीन बजाना। यार अगर भैंस को कुछ सुनाना ही है, तो कोई तबला या कोई बढि़या सी गिटार पर धुन सुना दो। यदि यह नही बजा सकते तो कम से कम ढोल ही बजा दो। भैंस को कुछ मजा तो आये। भैंस बेचारी बीन सुन कर क्या करेगी? वैसे भी बीन तो सांप को खुष करने के लिये बजाई जाती है। अब छोटी सी बीन से भैंस को क्या मजा आयेगा? क्या कहा आपको तो अभी से ही चक्कर आने लगे है। अभी तो भैंस की और भी बहुत सारी बाते आपसे करनी है। भैंस का एक और बहुत ही महषूर मुहावरा है, लो गई भैंस पानी में। अब एक बात बताओ कि भैंस यदि पानी में नही जायेगी तो क्या बाथरूम में नहाने जायेगी। हम सभी को गर्मी लगती है, हम भी तो पानी के साथ ही नहाते है, अब अगर भैंस पानी में चली गई तो उस बेचारी ने क्या गुनाह कर दिया?
मुहावरे बनाने वाले विद्वान लोग भाशा को अधिक प्रभावी बनाने के लिये तथ्य ढूंढने का काम करते हेै न कि उनमे दोश ढूंढने का। भाशा से अनजान लोगों को हो सकता है कि मुहावरे सुनते ही चक्कर आते हो। जौली अंकल की राय तो यही है कि असल में मुहावरो का इस्तेमाल तो इसलिये किया जाता है ताकि किसी बात को साधारण तरीके से न कह कर विषेश अर्थो के साथ आसानी से व्यक्त किया जा सके ताकि पढ़ने सुनने वालों को चक्कर पे चक्कर न आयें।
चंद की सैर - जोली अंकल का रोचक लेख
’’ चांद की सैर ’’
एक षाम वीरू काम से लौट कर अपने घर में टीवी पर समाचार देख रहा था। हर चैनल पर मारपीट, हत्या, लूटपाट और सरकारी घौटालों के अलावा कोई ढंग का समाचार उसे देखने को नही मिल रहा था। इन खबरों से ऊब कर वीरू ने जैसे ही टीवी बंद करने के रिर्मोट उठाया तो एक चैनल पर बेै्रकिंग न्यूज आ रही थी कि वैज्ञनिकों ने दावा किया है कि उन्हें चांद पर पानी मिल गया है। इस खबर को सुनते ही वीरू ने पास बैठी अपनी पत्नी बंसन्ती से कहा कि अपने षहर में तो आऐ दिन पानी की किल्लत बहुत सताती रहती है, मैं सोच रहा हॅू कि क्यूं न ऐसे मैं चांद पर ही जाकर रहना षुरू कर दूं। बंसन्ती ने बिना एक क्षण भी व्यर्थ गवाएं हुए वीरू पर धावा बोलते हुए कहा कि कोई और चांद पर जायें या न जायें आप तो सबसे पहले वहां जाओगे। वीरू ने पत्नी से कहा कि तुम्हारी परेषानी क्या है, तुम्हारे से कोई घर की बात करो या बाहर की तुम मुझे हर बात में क्यूं घसीट लेती हो। वीरू की पत्नी ने कहा कि मैं सब कुछ जानती हॅू कि तुम चांद पर क्यूं जाना चाहते हो? कुछ दिन पहले खबर आई थी चांद पर बर्फ मिल गई है और आज पानी मिलने का नया वृतान्त टीवी वालों ने सुना दिया है। मैं तुम्हारे दारू पीने के चस्के को अच्छे से जानती हॅू। हर दिन षाम होते ही तुम्हें दारू पीकर गुलछर्रे उड़ाने के लिये सिर्फ इन्हीं दो चीजो की जरूरत होती है। अब तो सिर्फ दारू की बोतल अपने साथ ले जा कर तुम चांद पर चैन से आनंद उठाना चाहते हो।
वीरू ने बात को थोड़ा संभालने के प्रयास में बंसन्ती से कहा कि मेरा तुम्हारा तो जन्म-जन्म से चोली-दामन का साथ है। मेरे लिये तो तुम ही चांद से बढ़ कर हो। बंसन्ती ने भी घाट-घाट का पानी पीया हुआ है इसलिये वो इतनी जल्दी वीरू की इन चिकनी-चुपड़ी बातों में आने वाली नही थी। वीरू द्वारा बंसन्ती को समझाने की जब सभी कोषिषें बेकार होने लगी तो उसने अपना आपा खोते हुए कहा कि चांद की सैर करना कोई गुडियों का खेल नही। वैसे भी तुम क्या सोच रही हो कि सरकार ने चांद पर जाने के लिये मेरे राषन कार्ड पर मोहर लगा दी है और मैं सड़क से आटो लेकर अभी चांद पर चला जाऊगा। अब इसके बाद तुमने जरा सी भी ची-चुपड़ की तो तुम्हारी हड्डियां तोड़ दूंगा। वैसे एक बात बताओ कि आखिर तुम क्या चाहती हो कि सारी उम्र कोल्हू का बैल बन कर बस सिर्फ तुम्हारी सेवा में जुटा रहूं। तुम ने तो कसम खाई हुई है कि हम कभी भी कहीं न जायें बस कुएं के मैंढ़क की तरह सारा जीवन इसी धरती पर ही गुजार दें।
बसन्ती के साथ नोंक-झोंक में चांद की सैर के सपने लिए न जाने कब वीरू नींद के आगोष में खो गया। कुछ ही देर में वीरू ने देखा कि उसने चांद पर जाने की सारी तैयारियां पूरी कर ली है। वीरू जैसे ही अपना सामान लेकर चांद की सैर के लिये निकलने लगा तो बंसन्ती ने पूछा कि अभी थोड़ी देर पहले ही चांद के मसले को लेकर हमारा इतना झगड़ा हुआ है और अब तुम यह सामान लेकर कहां जाने के चक्कर में हो? वीरू ने उससे कहा कि तुम तो हर समय खामख्वाह परेषान होती रहती हो, मैं तो सिर्फ कुछ दिनों के लिये चांद की सैर पर जा रहा हॅू। वो तो ठीक है लेकिन पहले यह बताओ कि जिस आदमी ने दिल्ली जैसे षहर में रहते हुए आज तक लालकिला और कुतबमीनार नही देखे उसे चांद पर जाने की क्या जरूरत आन पड़ी है? इससे पहले की वीरू बंसन्ती के सवालों को समझ कर कोई जवाब देता बंसन्ती ने एक और सवाल का तीर छोड़ते हुए कहा कि यह बताओ कि किस के साथ जा रहे हो। क्योंकि मैं तुम्हारे बारे में इतना तो जानती हॅू कि तुममें इतनी हिम्मत भी नही है कि अकेले रेलवे स्टेषन तक जा सको, ऐसे में चांद पर अकेले कैसे जाओगे? मुझे यह भी ठीक से बताओ कि वापिस कब आओगे?
बंसन्ती के इस तरह खोद-खोद कर सवाल पूछने पर वीरू का मन तो उसे खरी-खरी सुनाने को कर रहा था। इसी के साथ वीरू के दिल से यही आवाज उठ रही थी कि बंसन्ती को कहे कि ऐ जहर की पुढि़या अब और जहर उगलना बंद कर। परंतु बंसन्ती हाव-भाव को देख ऐसा लग रहा था कि बंसन्ती ने भी कसम खा रखी है कि वो चुप नही बैठेगी। दूसरी और चांद की सैर को लेकर वीरू के मन में इतने लड्डू फूट रहे थे कि उसने महौल को और खराब करने की बजाए अपनी जुबान पर लगाम लगाऐ रखने में ही भलाई समझी। वीरू जैसे ही सामान उठा कर चलने लगा तो बंसन्ती ने कहा कि सारी दुनियां धरती से ही चांद को देखती है तुम भी यही से देख लो, इतनी दूर जाकर क्या करोगे? अगर यहां से तुम्हें चांद ठीक से नही दिखे तो अपनी छत पर जाकर देख लो। बंसन्ती ने जब देखा कि उसके सवालों के सभी आक्रमण बेकार हो रहे है तो उसने आत्मसमर्पण करते हुए वीरू से कहा कि अगर चांद पर जा ही रहे हो तो वापिसी में बच्चो के वहां से कुछ खिलाने और मिठाईयां लेते आना। वीरू ने भी उसे अपनी और खींचते हुए कहा कि तुम अपने बारे में भी बता दो, तुम्हारे लिये क्या लेकर आऊ? बंसन्ती ने कहा जी मुझे तो कुछ नही चाहिये हां आजकल यहां आलू, प्याज बहुत मंहगे हो रहे है, घर के लिये थोड़ी सब्जी लेते आना। कुछ देर से अपने सवालों पर काबू रख कर बेैठी बंसन्ती ने वीरू से पूछा कि जाने से पहले इतना तो बताते जाओ कि यह चांद दिखने में कैसा होता है? अब तक वीरू बंसन्ती के सवालों से बहुत चिढ़ चुका था, उसने कहा कि बिल्कुल नर्क की तरह। क्यूं वहां से कुछ और लाना हो तो वो भी बता दो। बंसन्ती ने अपना हाथ खींचते हुए कहा कि फिर तो वहां से अपनी एक वीडियो बनवा लाना, बच्चे तुम्हें वहां देख कर बहुत खुष हो जायेगे। कुछ ही देर में वीरू ने देखा कि वो राकेट में बैठ कर चांद की सैर करने जा रहा है। रास्ते में राकेट के ड्राईवर से बातचीत करते हुए मालूम हुआ कि आज तो अमावस है, आज चांद पर जाने से क्या फायदा क्योंकि आज के दिन तो चांद छुªट्टी पर रहता है।
इतने में गली से निकलते हुए अखबार वाले ने अखबार का बंडल बरामदे में सो रहे वीरू के मुंह पर फेंका तो उसे ऐसा लगा कि जैसे किसी ने उसे चांद से धक्का देकर नीचे धरती पर फैंक दिया हो। वीरू की इन हरकतों को देखकर तो कोई भी व्यक्ति यही कहेगा कि जो मूर्ख अपनी मूर्खता को जानता है, वह तो धीरे-धीरे सीख सकता है, परंतु जो मूर्ख खुद को सबसे अधिक बुद्विमान समझता हो, उसका रोग कोई नही ठीक कर सकता। वीरू के इस ख्वाब को देख जौली अंकल उसे यही सलाह देना चाहते है कि ख्वाब देखने पर हर किसी को पूरा अधिकार है। लेकिन यदि आपके कर्म अच्छे है और आप में एकाग्रता की कला है तो हर क्षेत्र में आपकी सफलता निष्चित है फिर चाहे वो चांद की सैर ही क्यूं न हो?
एक षाम वीरू काम से लौट कर अपने घर में टीवी पर समाचार देख रहा था। हर चैनल पर मारपीट, हत्या, लूटपाट और सरकारी घौटालों के अलावा कोई ढंग का समाचार उसे देखने को नही मिल रहा था। इन खबरों से ऊब कर वीरू ने जैसे ही टीवी बंद करने के रिर्मोट उठाया तो एक चैनल पर बेै्रकिंग न्यूज आ रही थी कि वैज्ञनिकों ने दावा किया है कि उन्हें चांद पर पानी मिल गया है। इस खबर को सुनते ही वीरू ने पास बैठी अपनी पत्नी बंसन्ती से कहा कि अपने षहर में तो आऐ दिन पानी की किल्लत बहुत सताती रहती है, मैं सोच रहा हॅू कि क्यूं न ऐसे मैं चांद पर ही जाकर रहना षुरू कर दूं। बंसन्ती ने बिना एक क्षण भी व्यर्थ गवाएं हुए वीरू पर धावा बोलते हुए कहा कि कोई और चांद पर जायें या न जायें आप तो सबसे पहले वहां जाओगे। वीरू ने पत्नी से कहा कि तुम्हारी परेषानी क्या है, तुम्हारे से कोई घर की बात करो या बाहर की तुम मुझे हर बात में क्यूं घसीट लेती हो। वीरू की पत्नी ने कहा कि मैं सब कुछ जानती हॅू कि तुम चांद पर क्यूं जाना चाहते हो? कुछ दिन पहले खबर आई थी चांद पर बर्फ मिल गई है और आज पानी मिलने का नया वृतान्त टीवी वालों ने सुना दिया है। मैं तुम्हारे दारू पीने के चस्के को अच्छे से जानती हॅू। हर दिन षाम होते ही तुम्हें दारू पीकर गुलछर्रे उड़ाने के लिये सिर्फ इन्हीं दो चीजो की जरूरत होती है। अब तो सिर्फ दारू की बोतल अपने साथ ले जा कर तुम चांद पर चैन से आनंद उठाना चाहते हो।
वीरू ने बात को थोड़ा संभालने के प्रयास में बंसन्ती से कहा कि मेरा तुम्हारा तो जन्म-जन्म से चोली-दामन का साथ है। मेरे लिये तो तुम ही चांद से बढ़ कर हो। बंसन्ती ने भी घाट-घाट का पानी पीया हुआ है इसलिये वो इतनी जल्दी वीरू की इन चिकनी-चुपड़ी बातों में आने वाली नही थी। वीरू द्वारा बंसन्ती को समझाने की जब सभी कोषिषें बेकार होने लगी तो उसने अपना आपा खोते हुए कहा कि चांद की सैर करना कोई गुडियों का खेल नही। वैसे भी तुम क्या सोच रही हो कि सरकार ने चांद पर जाने के लिये मेरे राषन कार्ड पर मोहर लगा दी है और मैं सड़क से आटो लेकर अभी चांद पर चला जाऊगा। अब इसके बाद तुमने जरा सी भी ची-चुपड़ की तो तुम्हारी हड्डियां तोड़ दूंगा। वैसे एक बात बताओ कि आखिर तुम क्या चाहती हो कि सारी उम्र कोल्हू का बैल बन कर बस सिर्फ तुम्हारी सेवा में जुटा रहूं। तुम ने तो कसम खाई हुई है कि हम कभी भी कहीं न जायें बस कुएं के मैंढ़क की तरह सारा जीवन इसी धरती पर ही गुजार दें।
बसन्ती के साथ नोंक-झोंक में चांद की सैर के सपने लिए न जाने कब वीरू नींद के आगोष में खो गया। कुछ ही देर में वीरू ने देखा कि उसने चांद पर जाने की सारी तैयारियां पूरी कर ली है। वीरू जैसे ही अपना सामान लेकर चांद की सैर के लिये निकलने लगा तो बंसन्ती ने पूछा कि अभी थोड़ी देर पहले ही चांद के मसले को लेकर हमारा इतना झगड़ा हुआ है और अब तुम यह सामान लेकर कहां जाने के चक्कर में हो? वीरू ने उससे कहा कि तुम तो हर समय खामख्वाह परेषान होती रहती हो, मैं तो सिर्फ कुछ दिनों के लिये चांद की सैर पर जा रहा हॅू। वो तो ठीक है लेकिन पहले यह बताओ कि जिस आदमी ने दिल्ली जैसे षहर में रहते हुए आज तक लालकिला और कुतबमीनार नही देखे उसे चांद पर जाने की क्या जरूरत आन पड़ी है? इससे पहले की वीरू बंसन्ती के सवालों को समझ कर कोई जवाब देता बंसन्ती ने एक और सवाल का तीर छोड़ते हुए कहा कि यह बताओ कि किस के साथ जा रहे हो। क्योंकि मैं तुम्हारे बारे में इतना तो जानती हॅू कि तुममें इतनी हिम्मत भी नही है कि अकेले रेलवे स्टेषन तक जा सको, ऐसे में चांद पर अकेले कैसे जाओगे? मुझे यह भी ठीक से बताओ कि वापिस कब आओगे?
बंसन्ती के इस तरह खोद-खोद कर सवाल पूछने पर वीरू का मन तो उसे खरी-खरी सुनाने को कर रहा था। इसी के साथ वीरू के दिल से यही आवाज उठ रही थी कि बंसन्ती को कहे कि ऐ जहर की पुढि़या अब और जहर उगलना बंद कर। परंतु बंसन्ती हाव-भाव को देख ऐसा लग रहा था कि बंसन्ती ने भी कसम खा रखी है कि वो चुप नही बैठेगी। दूसरी और चांद की सैर को लेकर वीरू के मन में इतने लड्डू फूट रहे थे कि उसने महौल को और खराब करने की बजाए अपनी जुबान पर लगाम लगाऐ रखने में ही भलाई समझी। वीरू जैसे ही सामान उठा कर चलने लगा तो बंसन्ती ने कहा कि सारी दुनियां धरती से ही चांद को देखती है तुम भी यही से देख लो, इतनी दूर जाकर क्या करोगे? अगर यहां से तुम्हें चांद ठीक से नही दिखे तो अपनी छत पर जाकर देख लो। बंसन्ती ने जब देखा कि उसके सवालों के सभी आक्रमण बेकार हो रहे है तो उसने आत्मसमर्पण करते हुए वीरू से कहा कि अगर चांद पर जा ही रहे हो तो वापिसी में बच्चो के वहां से कुछ खिलाने और मिठाईयां लेते आना। वीरू ने भी उसे अपनी और खींचते हुए कहा कि तुम अपने बारे में भी बता दो, तुम्हारे लिये क्या लेकर आऊ? बंसन्ती ने कहा जी मुझे तो कुछ नही चाहिये हां आजकल यहां आलू, प्याज बहुत मंहगे हो रहे है, घर के लिये थोड़ी सब्जी लेते आना। कुछ देर से अपने सवालों पर काबू रख कर बेैठी बंसन्ती ने वीरू से पूछा कि जाने से पहले इतना तो बताते जाओ कि यह चांद दिखने में कैसा होता है? अब तक वीरू बंसन्ती के सवालों से बहुत चिढ़ चुका था, उसने कहा कि बिल्कुल नर्क की तरह। क्यूं वहां से कुछ और लाना हो तो वो भी बता दो। बंसन्ती ने अपना हाथ खींचते हुए कहा कि फिर तो वहां से अपनी एक वीडियो बनवा लाना, बच्चे तुम्हें वहां देख कर बहुत खुष हो जायेगे। कुछ ही देर में वीरू ने देखा कि वो राकेट में बैठ कर चांद की सैर करने जा रहा है। रास्ते में राकेट के ड्राईवर से बातचीत करते हुए मालूम हुआ कि आज तो अमावस है, आज चांद पर जाने से क्या फायदा क्योंकि आज के दिन तो चांद छुªट्टी पर रहता है।
इतने में गली से निकलते हुए अखबार वाले ने अखबार का बंडल बरामदे में सो रहे वीरू के मुंह पर फेंका तो उसे ऐसा लगा कि जैसे किसी ने उसे चांद से धक्का देकर नीचे धरती पर फैंक दिया हो। वीरू की इन हरकतों को देखकर तो कोई भी व्यक्ति यही कहेगा कि जो मूर्ख अपनी मूर्खता को जानता है, वह तो धीरे-धीरे सीख सकता है, परंतु जो मूर्ख खुद को सबसे अधिक बुद्विमान समझता हो, उसका रोग कोई नही ठीक कर सकता। वीरू के इस ख्वाब को देख जौली अंकल उसे यही सलाह देना चाहते है कि ख्वाब देखने पर हर किसी को पूरा अधिकार है। लेकिन यदि आपके कर्म अच्छे है और आप में एकाग्रता की कला है तो हर क्षेत्र में आपकी सफलता निष्चित है फिर चाहे वो चांद की सैर ही क्यूं न हो?
Thursday, October 27, 2011
चूं-चूं का मुरब्बा
चूं-चूं का मुरब्बा
बंसन्ती के घर उसकी षादी की तैयारियां जोर-षोर से चल रही थी। सभी लोग दौड़-भाग कर रहे थे कि बारात के आने से पहले सारे काम ठीक से निपट जायें। इतने में बसन्ती की सबसे करीबी सहेली उसके घर आर्इ और बंसन्ती से बोली कि अब तुम षादी करके ससुराल जा रही हो। लेकिन एक बात याद रखना कि औरत घर की लक्ष्मी होती है, षादी के बाद तुम भी अपने इस लक्ष्मी वाले रूतबे को कायम ही रहना। बंसन्ती ने उससे पूछ लिया कि यदि औरत लक्ष्मी होती है तो फिर पति क्या होता है? सहेली ने जवाब देते हुए कहा कि मेरा माथा तो पहले ही ठनक गया था कि तुम दिखने में जितनी होषियार लगती हो, असल में उतनी है नही। बलिक तुम तो बिल्कुल मिêी की माधो ही हो, जो इतना भी नही जानती कि पति लक्ष्मी का वाहन होता है। बंसन्ती ने कहा कि मैं कुछ समझी नही। उसकी सहेली ने कहा कि तू भी कमाल करती है, सारी दुनियां जानती है कि लक्ष्मी का वाहन उल्लू होता है और यह बात अच्छे से पल्ले बांध कर ससुराल जाना कि पति उल्लू से बढ़ कर कुछ नही होता।
यह पति नाम के प्राणी षादी से पहले तो लड़कियों के पीछे गलियों में मारे-मारे फिरते है परंतु षादी होते ही गिरगिट की तरह रंग बदल लेते है। जब तक अपने पतियों को ठीक से काबू में न रखा जाये तो यह हर दिन कोर्इ न कोर्इ नया गुल खिलाने को तैयार रहते है। खुद तो सारा दिन दोस्तो के साथ गुलछर्रे उड़ाते रहेगे और घर आते ही बिना किसी बात पर सारा गुस्सा बीवियों पर निकालने लगते हैं। बंसन्ती ने कहा कि इस मामले में तो तुम बहुत नसीब वाली हो। तुम्हारे पति को जब भी देख लो उनका मुंह तो हर समय लटका रहता है। दूर से देखने में तो बिल्कुल ऐसे लगते है जैसे कि उनके मुंह में जुबान है ही नही। सहेली ने कहा मेरी बात छोड़ मेरे पति तो बहुत ही कायर किस्म के है। बंसन्ती ने कहा कि मुझे तो वो बेचारे कायर कम और सहमे से चूहे की तरह अधिक दिखार्इ देते है। बंसन्ती की सहेली ने कहा कि मेरे सामने चूहे का नाम मत ले। अगर मेरे पति चूहे कि तरह होते तो मै तो उनसे डर कर थर-थर कांप रही होती क्योंकि चुहों को देखते ही मैं बहुत भयभीत हो जाती हू। अब मेरी बात छोड़ और ससुराल में पहले दिन ही पति का मुरब्बा बनाने के लिये तैयारी करनी सीख ले। यदि तूने षुरू में थोड़ी ढ़ील दे दी तो फिर तेरा वोहि हाल होगा कि जैसे मुर्गी बेचारी की जान चली जाती है और खाने वाले कह देते हे कि आज खाने में स्वाद नही आया।
बंसन्ती ने कहा कि मैने 36 प्रकार के अचार मुरब्बों के बारे में सुना है। मैं यह भी जानती हू कि यह सारे बहुत गुणकारी होते है, लेकिन पति के मुरब्बे के बारे में तो आज तक किसी ने कुछ नही बताया कि ऐसा भी कोर्इ मुरब्बा होता है? बंसन्ती की सहेली ने उसे धीरे से बताते हुए कहा कि जिस तरह इंसान सदियों से हर तरह के मुरब्बों का उपयोग करता आ रहा है, ठीक उसी तरह समझदार औरते पति को चूं-चू का मुरब्बा बना कर रखती है। मेरा तो बस नही चलता वरना मैं तो पतियों के इस चंू-चूं वाले मुरब्बे की विधि का विस्तार और प्रचार विष्वस्तर पर करके सभी औरतो का जीवन सुखी बना दूं। इतना कहते-कहते जैसे ही बंसन्ती की सहेली की नजर पीछे खड़ी बंसन्ती की मां की और गर्इ तो वो उन्हें देख कर थोड़ा सा झेंप गर्इ।
बंसन्ती की मां ने उसकी सहेली के कधें पर हाथ रखते हुए कहा कि बेटी मैने तुम्हारी सारी बाते सुन ली है। मैं यह भी मानती हू कि मैं तुम्हारी तरह अधिक पढ़ी-लिखी तो है नही और न ही आज के जमानें के दस्तूर को जानती हू। परंतु दुनियां के हर प्रकार के उतार-चढ़ाव जीवन में अच्छे से देख चुकी हू। घर के बजर्ुगो द्वारा दी हुर्इ षिक्षा और ज्ञान से तो इतना ही सीखा है कि गृहस्थ की गाड़ी को चलाने के लिए अपने-अपने हिस्से के कर्म समय पर करना ही हर पति-पत्नी का कत्र्तव्य होना चाहिये। पति-पत्नी अपने सच्चे प्यार के साहरे ही हर प्रकार की परिसिथतियों को झेलते हुए जीवन को हंसते-हंसते बिता सकते है। बेटी इतना तो तुमने भी जरूर पढ़ा होगा कि केवल अपनी प्रषंसा का ब्खान करने वालों को कभी भी यष नही मिलता, वे केवल उपहास का पात्र बनते है। जबकि पति-पत्नी का सच्चा प्रेम न तो कभी किसी को कश्ट देता है और न ही यह कभी नश्ट होता है। जब दोनो प्राणी एक दूसरे को खुषी देते है और सामने वाला खुषी से खुषी को स्वीकार कर लेता है तो दोनो ही महान बन जाते है। जिस व्यकित के कर्म अच्छे होते है वो दूसरे इंसान को तो क्या अपनी किस्मत को भी अपनी दासी बना सकता है। इतना सब कुछ सुनते ही बंसन्ती की सहेली फबक कर रो पड़ी। बंसन्ती की मां के गले लगते हुए उसने कहा कि मैं तो आजतक यही समझती रही कि पति को सदा अगूठें के नीचे दबा कर रखने से ही औरत सुखी रह सकती है।
वैसे तो मुरब्बो के सेवन और बजर्ुगो की बात का असर कुछ समय के बाद ही दिखार्इ देता है, परंतु इन सभी लोगो की रस भरी बातचीत सुनने के बाद यह तो एकदम साफ हो गया है कि आचरण रहित विचार चाहे कितने भी अच्छे क्यूं न हो वो खोटे सिक्के की तरह ही होते है। वैवाहिक जीवन में सुख और दुख की बात की जाएं तो किसी भी सदस्य को कश्ट देना दुख से कम नही और दूसरों को खुषी देना ही सबसे बड़ा सुख और पुण्य होता है। मुरब्बों के बारे में इतनी मीठी बाते करने के बाद जौली अंकल के मन में ठंडक के साथ दिमाग भी चुस्त होते हुए यह सोचने लगा है दूसरों के साथ सदा वही व्यवहार करो जो आप दूसरों से चाहते हो। इसके बाद फालतू की बातो को सोच कर आपको कभी भी अपनी हुकूमत की षकित दिखाने के लिये चूं-चूं का मुरब्बा बनाने की जरूरत नही पड़ेगी।
जौली अंकल
बंसन्ती के घर उसकी षादी की तैयारियां जोर-षोर से चल रही थी। सभी लोग दौड़-भाग कर रहे थे कि बारात के आने से पहले सारे काम ठीक से निपट जायें। इतने में बसन्ती की सबसे करीबी सहेली उसके घर आर्इ और बंसन्ती से बोली कि अब तुम षादी करके ससुराल जा रही हो। लेकिन एक बात याद रखना कि औरत घर की लक्ष्मी होती है, षादी के बाद तुम भी अपने इस लक्ष्मी वाले रूतबे को कायम ही रहना। बंसन्ती ने उससे पूछ लिया कि यदि औरत लक्ष्मी होती है तो फिर पति क्या होता है? सहेली ने जवाब देते हुए कहा कि मेरा माथा तो पहले ही ठनक गया था कि तुम दिखने में जितनी होषियार लगती हो, असल में उतनी है नही। बलिक तुम तो बिल्कुल मिêी की माधो ही हो, जो इतना भी नही जानती कि पति लक्ष्मी का वाहन होता है। बंसन्ती ने कहा कि मैं कुछ समझी नही। उसकी सहेली ने कहा कि तू भी कमाल करती है, सारी दुनियां जानती है कि लक्ष्मी का वाहन उल्लू होता है और यह बात अच्छे से पल्ले बांध कर ससुराल जाना कि पति उल्लू से बढ़ कर कुछ नही होता।
यह पति नाम के प्राणी षादी से पहले तो लड़कियों के पीछे गलियों में मारे-मारे फिरते है परंतु षादी होते ही गिरगिट की तरह रंग बदल लेते है। जब तक अपने पतियों को ठीक से काबू में न रखा जाये तो यह हर दिन कोर्इ न कोर्इ नया गुल खिलाने को तैयार रहते है। खुद तो सारा दिन दोस्तो के साथ गुलछर्रे उड़ाते रहेगे और घर आते ही बिना किसी बात पर सारा गुस्सा बीवियों पर निकालने लगते हैं। बंसन्ती ने कहा कि इस मामले में तो तुम बहुत नसीब वाली हो। तुम्हारे पति को जब भी देख लो उनका मुंह तो हर समय लटका रहता है। दूर से देखने में तो बिल्कुल ऐसे लगते है जैसे कि उनके मुंह में जुबान है ही नही। सहेली ने कहा मेरी बात छोड़ मेरे पति तो बहुत ही कायर किस्म के है। बंसन्ती ने कहा कि मुझे तो वो बेचारे कायर कम और सहमे से चूहे की तरह अधिक दिखार्इ देते है। बंसन्ती की सहेली ने कहा कि मेरे सामने चूहे का नाम मत ले। अगर मेरे पति चूहे कि तरह होते तो मै तो उनसे डर कर थर-थर कांप रही होती क्योंकि चुहों को देखते ही मैं बहुत भयभीत हो जाती हू। अब मेरी बात छोड़ और ससुराल में पहले दिन ही पति का मुरब्बा बनाने के लिये तैयारी करनी सीख ले। यदि तूने षुरू में थोड़ी ढ़ील दे दी तो फिर तेरा वोहि हाल होगा कि जैसे मुर्गी बेचारी की जान चली जाती है और खाने वाले कह देते हे कि आज खाने में स्वाद नही आया।
बंसन्ती ने कहा कि मैने 36 प्रकार के अचार मुरब्बों के बारे में सुना है। मैं यह भी जानती हू कि यह सारे बहुत गुणकारी होते है, लेकिन पति के मुरब्बे के बारे में तो आज तक किसी ने कुछ नही बताया कि ऐसा भी कोर्इ मुरब्बा होता है? बंसन्ती की सहेली ने उसे धीरे से बताते हुए कहा कि जिस तरह इंसान सदियों से हर तरह के मुरब्बों का उपयोग करता आ रहा है, ठीक उसी तरह समझदार औरते पति को चूं-चू का मुरब्बा बना कर रखती है। मेरा तो बस नही चलता वरना मैं तो पतियों के इस चंू-चूं वाले मुरब्बे की विधि का विस्तार और प्रचार विष्वस्तर पर करके सभी औरतो का जीवन सुखी बना दूं। इतना कहते-कहते जैसे ही बंसन्ती की सहेली की नजर पीछे खड़ी बंसन्ती की मां की और गर्इ तो वो उन्हें देख कर थोड़ा सा झेंप गर्इ।
बंसन्ती की मां ने उसकी सहेली के कधें पर हाथ रखते हुए कहा कि बेटी मैने तुम्हारी सारी बाते सुन ली है। मैं यह भी मानती हू कि मैं तुम्हारी तरह अधिक पढ़ी-लिखी तो है नही और न ही आज के जमानें के दस्तूर को जानती हू। परंतु दुनियां के हर प्रकार के उतार-चढ़ाव जीवन में अच्छे से देख चुकी हू। घर के बजर्ुगो द्वारा दी हुर्इ षिक्षा और ज्ञान से तो इतना ही सीखा है कि गृहस्थ की गाड़ी को चलाने के लिए अपने-अपने हिस्से के कर्म समय पर करना ही हर पति-पत्नी का कत्र्तव्य होना चाहिये। पति-पत्नी अपने सच्चे प्यार के साहरे ही हर प्रकार की परिसिथतियों को झेलते हुए जीवन को हंसते-हंसते बिता सकते है। बेटी इतना तो तुमने भी जरूर पढ़ा होगा कि केवल अपनी प्रषंसा का ब्खान करने वालों को कभी भी यष नही मिलता, वे केवल उपहास का पात्र बनते है। जबकि पति-पत्नी का सच्चा प्रेम न तो कभी किसी को कश्ट देता है और न ही यह कभी नश्ट होता है। जब दोनो प्राणी एक दूसरे को खुषी देते है और सामने वाला खुषी से खुषी को स्वीकार कर लेता है तो दोनो ही महान बन जाते है। जिस व्यकित के कर्म अच्छे होते है वो दूसरे इंसान को तो क्या अपनी किस्मत को भी अपनी दासी बना सकता है। इतना सब कुछ सुनते ही बंसन्ती की सहेली फबक कर रो पड़ी। बंसन्ती की मां के गले लगते हुए उसने कहा कि मैं तो आजतक यही समझती रही कि पति को सदा अगूठें के नीचे दबा कर रखने से ही औरत सुखी रह सकती है।
वैसे तो मुरब्बो के सेवन और बजर्ुगो की बात का असर कुछ समय के बाद ही दिखार्इ देता है, परंतु इन सभी लोगो की रस भरी बातचीत सुनने के बाद यह तो एकदम साफ हो गया है कि आचरण रहित विचार चाहे कितने भी अच्छे क्यूं न हो वो खोटे सिक्के की तरह ही होते है। वैवाहिक जीवन में सुख और दुख की बात की जाएं तो किसी भी सदस्य को कश्ट देना दुख से कम नही और दूसरों को खुषी देना ही सबसे बड़ा सुख और पुण्य होता है। मुरब्बों के बारे में इतनी मीठी बाते करने के बाद जौली अंकल के मन में ठंडक के साथ दिमाग भी चुस्त होते हुए यह सोचने लगा है दूसरों के साथ सदा वही व्यवहार करो जो आप दूसरों से चाहते हो। इसके बाद फालतू की बातो को सोच कर आपको कभी भी अपनी हुकूमत की षकित दिखाने के लिये चूं-चूं का मुरब्बा बनाने की जरूरत नही पड़ेगी।
जौली अंकल
हँसी के जलवे - जोली अंकल
हंसी के जलवे
वीरू ने अपने दोस्त जय से गप-षप करते हुए कहा कि जब मेरी नर्इ-नर्इ षादी हुर्इ थी तो मुझे मेरी बीवी बंसन्ती इतनी प्यारी लगती थी कि मन करता था कि इसे कच्चा ही खा जाऊ। जय ने पूछा कि अब यह सब कुछ तुम मुझे खुषी से बता रहे हो या दुखी होकर। वीरू ने कहा कि अब सुबह-षाम इसकी फरमार्इषें पूरी करते-करते परेषान हो गया हू। कल जब बंसन्ती ने मेरे आगे एक और नर्इ मांग रखी तो मैने उससे कहा कि मैं अब तुम्हारी और कोर्इ्र भी मांग पूरी नही कर सकता, मैं तो जा रहा हू खुदकषी करने। जानते हो इस बेवकूफ औरत ने क्या कहा, कहने लगी खुदकषी करने से पहले एक अच्छी सी सफेद साड़ी तो ला दो। मेरे पास तुम्हारी कि्रया की रस्म पर पहनने के लिए कोर्इ अच्छी साड़ी नही है। इसकी ऐसी बेवकूफियों को देख कर तो यही सोचता हू कि अगर उस समय मैं इसे खा ही जाता तो अच्छा होता। जय ने कहा कि कल तक तो तू बंसन्ती के जलवों का दीवाना था। तेरे दिलोदिमाग पर हर समय बंसन्ती का जादू ही सिर चढ़ कर बोलता था। कभी कही भी जाना होता था तो तू सारे काम छोड़ कर इसके सौंदर्य की और खिंचा चला जाता था। वो एक चीज मांगती थी तो तू चार लेकर आता था। अब वही बंसन्ती तुम्हें एक आंख भी नही भा रही ऐसा क्या हो गया?
वीरू ने अपना दुखड़ा रोते हुए जय से कहा कि तुम जिस औरत के जलवों के बारे में तारीफ कर रहे हो, वो औरत नही जहर की पुडि़या है। मेरे तो कर्म फूटे थे जो मैं इसको जी का जंजाल बना कर अपने घर ले आया। सारा दिन उल्टी-सीधी बाते करने और ऊलजलूल बकने के सिवाए इसे कुछ आता ही नही। यह तो मैं हू कि खून के घूंट पीकर किसी तरह से इसके साथ अभी तक निभा रहा हू। मेरा तो इस औरत से ही मन खêा हो गया है। जय ने वीरू को रोकते हुए कहा कि अब यह अपनी बंदर घुड़किया देनी बंद करो, तुमने अपनी बेसिर पैर की बातो को अच्छे से नमक मिर्च लगा कर बहुत कुछ कह दिया है। क्या तुम मुझे एक बात बताओगे कि तुमने कभी भी अपनी पत्नी को प्यार से रास्ते पर लाने को प्रयास किया है। क्या सारी गलतियां उसी की है तुम्हारी कोइ्र्र गलती नही। मुझे तो तुम्हारी अक्कल पर हैरानगी हो रही है कि वो क्या घास चरने गर्इ हुइ्र्र है जो सारा दोश अपनी बीवी के माथे मढ़ कर खुद ही अपने मुंह मिया मिट्टू बनते जा रहे हो।
जय ने वीरू को आगे समझाते हुए कहा कि घरवालों की बात को यदि छोड़ भी दे तो हमारी अपनी आखें, कान, नाक, जीभ आदि सब कुछ अपनी मर्जी मुताबिक समय-समय पर कुछ न कुछ मांग करते रहते है। जब जिंदगी में कुछ चीजे कम होने लगती है या खत्म हो जाती है तो हमें बहुत तकलीफ होती है। अब इससे पहले कि तुम पूछो कि ऐसी कौन सी चीजे है जिन के कारण इंसान का जीवन कश्टदायक बन जाता है, मैं ही तुम्हें बता देता हू कि इसमें से कुछ खास है प्यार, रिष्ता, बचपन, दोस्ती, पैसा और सबसे जरूरी चीज है हंसी। वीरू ने जय को टोकते हुए कहा कि बाकी सभी चीजे तो समझ आ रही है, लेकिन हंसी के बिना हमारे जीवन पर क्या असर पड़ सकता है, यह बात कुछ मेरे पल्ले नही पड़ी। जय ने सामने रखी हुर्इ वीरू और बसन्ती की एक तस्वीर को देखते हुए कहा कि जब तुमने यह फोटो खिचवार्इ थी तो तुम षायद एक-दो सैंकड के लिए मुस्कराऐ होगे, परंतु उस एक-दो सैंकड की मुस्कराहट ने तुम्हारी यह तस्वीर सदा के लिए खूबसूरत बना दी। अब यदि आप लोग हर दिन कुछ पल हंसने की आदत बना लो तो फिर सोचो कि तुम्हारी सारी जिंदगी कितनी षानदार बन सकती है। मेरे यार घर परिवार में रूठने मनाने के साथ जो लोग थोड़ा मुस्कराहना सीख लेते है उन्हें जीवन में संतुलन बनाये रखने में कोर्इ दिक्कत नही आती। हंसी के जलवों की बात करे तो इस में वो षकित है कि यह हर प्रकार के तनाव को तो खत्म करती ही है साथ ही आपको कोर्ट-कहचरियों और पुलिस के चंगुल से बचा सकती है। वीरू तुम्हारी सम्सयां यह हेै कि तुम खुद तो हर समय खुष रहना चाहते हो, लेकिन दूसरों की कठिनार्इयों से तुम्हें कोर्इ लेना देना नही है। इसमें तुम्हारी भी गलती नही है क्योंकि आजकल किसी के पास भी दूसरों को खुषी देना तो दूर खुद को भी खुष रहने के लिए समय ही नही है। मेरे यार एक बात कभी मत भूलना कि जितनी मेहनत से लोग अपने लिये परेषनियां खड़ी करते है उससे आधी से हंसी के जलवों की बदौलत अपने घर को स्वर्ग बना सकते हंै।
हंसी के जलवों की इतनी सराहना सुनने के बाद जौली अंकल का भी रोम-रोम हर्श से छलकने लगा है। उनके अंग-अंग से यही आवाज आ रही हे कि जीवन का भरपूर आनन्द पाने के लिये जब भी हंसने का मौका मिले खिलखिलाकर हसों। आप भी यदि अपने जीवन को सुखों का सागर बनाना चाहते है तो इसका सबसे सरल उपाय है कि आप अपने मन में सकारात्मक राय रखते हुए हंसी के जलवे बिखेरते रहोे।
जौली अंकल
वीरू ने अपने दोस्त जय से गप-षप करते हुए कहा कि जब मेरी नर्इ-नर्इ षादी हुर्इ थी तो मुझे मेरी बीवी बंसन्ती इतनी प्यारी लगती थी कि मन करता था कि इसे कच्चा ही खा जाऊ। जय ने पूछा कि अब यह सब कुछ तुम मुझे खुषी से बता रहे हो या दुखी होकर। वीरू ने कहा कि अब सुबह-षाम इसकी फरमार्इषें पूरी करते-करते परेषान हो गया हू। कल जब बंसन्ती ने मेरे आगे एक और नर्इ मांग रखी तो मैने उससे कहा कि मैं अब तुम्हारी और कोर्इ्र भी मांग पूरी नही कर सकता, मैं तो जा रहा हू खुदकषी करने। जानते हो इस बेवकूफ औरत ने क्या कहा, कहने लगी खुदकषी करने से पहले एक अच्छी सी सफेद साड़ी तो ला दो। मेरे पास तुम्हारी कि्रया की रस्म पर पहनने के लिए कोर्इ अच्छी साड़ी नही है। इसकी ऐसी बेवकूफियों को देख कर तो यही सोचता हू कि अगर उस समय मैं इसे खा ही जाता तो अच्छा होता। जय ने कहा कि कल तक तो तू बंसन्ती के जलवों का दीवाना था। तेरे दिलोदिमाग पर हर समय बंसन्ती का जादू ही सिर चढ़ कर बोलता था। कभी कही भी जाना होता था तो तू सारे काम छोड़ कर इसके सौंदर्य की और खिंचा चला जाता था। वो एक चीज मांगती थी तो तू चार लेकर आता था। अब वही बंसन्ती तुम्हें एक आंख भी नही भा रही ऐसा क्या हो गया?
वीरू ने अपना दुखड़ा रोते हुए जय से कहा कि तुम जिस औरत के जलवों के बारे में तारीफ कर रहे हो, वो औरत नही जहर की पुडि़या है। मेरे तो कर्म फूटे थे जो मैं इसको जी का जंजाल बना कर अपने घर ले आया। सारा दिन उल्टी-सीधी बाते करने और ऊलजलूल बकने के सिवाए इसे कुछ आता ही नही। यह तो मैं हू कि खून के घूंट पीकर किसी तरह से इसके साथ अभी तक निभा रहा हू। मेरा तो इस औरत से ही मन खêा हो गया है। जय ने वीरू को रोकते हुए कहा कि अब यह अपनी बंदर घुड़किया देनी बंद करो, तुमने अपनी बेसिर पैर की बातो को अच्छे से नमक मिर्च लगा कर बहुत कुछ कह दिया है। क्या तुम मुझे एक बात बताओगे कि तुमने कभी भी अपनी पत्नी को प्यार से रास्ते पर लाने को प्रयास किया है। क्या सारी गलतियां उसी की है तुम्हारी कोइ्र्र गलती नही। मुझे तो तुम्हारी अक्कल पर हैरानगी हो रही है कि वो क्या घास चरने गर्इ हुइ्र्र है जो सारा दोश अपनी बीवी के माथे मढ़ कर खुद ही अपने मुंह मिया मिट्टू बनते जा रहे हो।
जय ने वीरू को आगे समझाते हुए कहा कि घरवालों की बात को यदि छोड़ भी दे तो हमारी अपनी आखें, कान, नाक, जीभ आदि सब कुछ अपनी मर्जी मुताबिक समय-समय पर कुछ न कुछ मांग करते रहते है। जब जिंदगी में कुछ चीजे कम होने लगती है या खत्म हो जाती है तो हमें बहुत तकलीफ होती है। अब इससे पहले कि तुम पूछो कि ऐसी कौन सी चीजे है जिन के कारण इंसान का जीवन कश्टदायक बन जाता है, मैं ही तुम्हें बता देता हू कि इसमें से कुछ खास है प्यार, रिष्ता, बचपन, दोस्ती, पैसा और सबसे जरूरी चीज है हंसी। वीरू ने जय को टोकते हुए कहा कि बाकी सभी चीजे तो समझ आ रही है, लेकिन हंसी के बिना हमारे जीवन पर क्या असर पड़ सकता है, यह बात कुछ मेरे पल्ले नही पड़ी। जय ने सामने रखी हुर्इ वीरू और बसन्ती की एक तस्वीर को देखते हुए कहा कि जब तुमने यह फोटो खिचवार्इ थी तो तुम षायद एक-दो सैंकड के लिए मुस्कराऐ होगे, परंतु उस एक-दो सैंकड की मुस्कराहट ने तुम्हारी यह तस्वीर सदा के लिए खूबसूरत बना दी। अब यदि आप लोग हर दिन कुछ पल हंसने की आदत बना लो तो फिर सोचो कि तुम्हारी सारी जिंदगी कितनी षानदार बन सकती है। मेरे यार घर परिवार में रूठने मनाने के साथ जो लोग थोड़ा मुस्कराहना सीख लेते है उन्हें जीवन में संतुलन बनाये रखने में कोर्इ दिक्कत नही आती। हंसी के जलवों की बात करे तो इस में वो षकित है कि यह हर प्रकार के तनाव को तो खत्म करती ही है साथ ही आपको कोर्ट-कहचरियों और पुलिस के चंगुल से बचा सकती है। वीरू तुम्हारी सम्सयां यह हेै कि तुम खुद तो हर समय खुष रहना चाहते हो, लेकिन दूसरों की कठिनार्इयों से तुम्हें कोर्इ लेना देना नही है। इसमें तुम्हारी भी गलती नही है क्योंकि आजकल किसी के पास भी दूसरों को खुषी देना तो दूर खुद को भी खुष रहने के लिए समय ही नही है। मेरे यार एक बात कभी मत भूलना कि जितनी मेहनत से लोग अपने लिये परेषनियां खड़ी करते है उससे आधी से हंसी के जलवों की बदौलत अपने घर को स्वर्ग बना सकते हंै।
हंसी के जलवों की इतनी सराहना सुनने के बाद जौली अंकल का भी रोम-रोम हर्श से छलकने लगा है। उनके अंग-अंग से यही आवाज आ रही हे कि जीवन का भरपूर आनन्द पाने के लिये जब भी हंसने का मौका मिले खिलखिलाकर हसों। आप भी यदि अपने जीवन को सुखों का सागर बनाना चाहते है तो इसका सबसे सरल उपाय है कि आप अपने मन में सकारात्मक राय रखते हुए हंसी के जलवे बिखेरते रहोे।
जौली अंकल
Thursday, September 8, 2011
’’ हास्य दिवस ’’
’’ हास्य दिवस ’’
नेता जी अपने दफतर में दाखिल होते ही बिना किसी को दुआ सलाम किए हुए प्रसाधन कक्ष की और दौड़ गये। पास बैठे एक सज्जन ने कहा कि नेता जी को क्या हुआ अभी तो घर से तरोताजा होकर आये है और आते ही फिर से प्रसाधन कक्ष में घुस गये है। उनके सेैक्ट्री ने कहा कि अभी दफतर में बैठते ही कई किस्म के ऊपर से प्रेषर आने षुरू हो जाते है, इसी के साथ यदि कोई दूसरे प्रेषर भी बन जाये तो नेता जी को काम करने मेें बहुत कठिनाई होती है, इसीलिये वो काम षुरू करने से पहले अपने आप को हल्का करके ही बैठते है। जैसे ही नेता जी वापिस अपनी सीट पर आकर बैठे तो उनके सेैक्ट्री ने कहा कि हास्य दिवस के मौके पर इलाके के कुछ लोग प्रसन्नता, मुस्कुराहट एवं हास्य पर अधारित एक अनूठे कार्यक्रम का आयोजन कर रहेे है। उनका अनुरोध है कि आप इस खास मौके पर मुख्य अतिथि के रूप में आकर आम जनता को हास्य के बारे जानकारी देते हुए इसके गुणों से अवगत कराऐं। जिससे कि आम आदमी आज के इस तनाव भरे दौर में हंसी-खुषी या यूं कहिए कि लाफ्टर थरैपी का भरपूर फायदा उठा सके। हालिक नेता जी को इस विशय के बारे में कुछ अधिक ज्ञान तो था नही परंतु उन्होनेे चुनावों के मद्देनजर अपनी लोकप्रियता बढ़ाने की चाह में झट से न्योता स्वीकार करते हुए मुख्य अतिथि बनने की हामी भर दी।
अगले दिन जब नेता जी हास्य के इस कार्यक्रम के लिये तैयार होकर घर से निकले तो उन्हें ध्यान आया कि उनके सेैक्ट्री ने इस मौके के लिये भाशण तो लिख कर दिया ही नही। अब नेता जी दुनियां को हास्य के महत्व को बताने से पहले खुद ही बुरी तरह से तनाव में आ चुके थे। एक बार उनके मन में आया कि अपने किसी कर्मचारी से फोन पर हास्य के बारे में बात करके अच्छे से जानकारी ले ली जाये। लेकिन फिर नेता जी को लगा कि अपने ड्राईवर के सामने अगर वो किसी कर्मचारी से इस बारे में बात करते है तो यह गंवार ड्राईवर क्या समझेगा कि मैं हास्य में बारे में कुछ जानता ही नही। इसी के साथ सड़क पर टैªफ्रिक जाॅम के कारण उनकी परेषानी एवं घबराहट और अधिक बढ़ने लगी थी। जैसे-जैसे कार्यक्रम में पहुंचने के लिये देरी हो रही थी, नेता जी की टेंषन भी उसी तेजी से बढ़ती जा रही थी। उनके मन में बार-बार यही आ रहा था कि गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस आदि के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी तो है लेकिन यह हास्य दिवस क्या बला है? यह कब और किस ने षुरू किया, इस बारे में तो कभी कुछ देखने-सुनने को नही मिला। मुझे लगता है कि फादर डे, मदर डे और वैलेटाईन्स डे की तरह इसे भी जरूर किसी अग्रेंज ने षुरू किया होगा। मैने भी न जानें बिना सोचे-समझे इस कार्यक्रम के लिये हां करके मुसीबत मोल ले ली।
नेता जी का ड्राईवर कार में लगे हुए छोटे से षीषे में उनके चेहरे के हाव-भाव को अच्छे से समझ रहा था। उसने कहा सर, अगर आपकी इजाजत हो तो मैं इस बारे में कुछ कहूं। नेता जी ने कहा कि तुम ठीक से अपनी गाड़ी चलाओ, तुम मेरी क्या मदद करोगेे? आज जिस कार्यक्रम में हम जा रहे है वहां सारे षहर के मीडिया के अलावा सभी नामी-ग्रामी लोग आये होगे। ड्राईवर ने कहा कि मैं ज्यादा पढ़ा-लिखा तो है नही, लेकिन इतना जरूर जानता हॅू कि हम हास्य दिवस के किसी समारोह में जा रहे है। परंतु यह तो कोई ऐसा विशय नही है जिसके बारे में इतनी चिंता की जाये। नेता जी ने अपना पसीना पोछते हुए उससे कहा कि तुम हास्य के बारे में क्या जानते हो? ड्राईवर ने कहा साहब जी गुस्ताखी माफ हो तो मैं इतना ही कहना चाहूंगा कि चाहे हमारे जीवन में कैसे ही हालात क्यूं न आ जाये, हमें कभी भी अपना आत्मविष्वास नही खोना चाहिए। जब आप पूरे साहस के साथ किसी भी कार्य को करने का मन बना लेते है तो उस समय आप महान कार्य को भी आसानी से कर लेते है। नेता जी ने ड्राईवर से कहा कि यह फालतू के भाशण छोड़ अगर कुछ थोड़ा बहुत हास्य के बारे में बता सकता है तो वो बता दें।
ड्राईवर ने नेता जी की बात का जवाब देते हुए कहा कि हंसी मजाक का सबसे बड़ा फायदा तो यह है कि सदा खुष रहने वालों का मानसिक संतुलन कभी नही बिगड़ता। एक बात और, हंसने की विधि तो सबसे आसान योग है और इसीलिये खुष रहने वाले सदा आषावादी रहते है। खुषमिजाज लोगो के अपने सभी मिलने वालों से रिष्ते और गहरे हो जाते है। जहां तक मुमकिन हो सके हमें हर किसी को खुषी देने का प्रयास करते रहना चाहिये क्योंकि रूठने मनाने के साथ थोड़ा बहुत मुस्कराने से जीवन में बहुत लाभ मिलता है। लोग मन की षांति पाने के लिये न जाने कहां-कहां भटकते रहते है, लेकिन आज तक किसी को भी न तो काबा में और न ही कांषी में खुषी मिली है। खुषी तो हर किसी के मन में ही होती है लेकिन इसका आंनद सिर्फ वोहि लोग पा सकते है जो इस ज्ञान के गुणों को समझ कर जीवन में अपना लेते है।
ड्राईवर से इतना सब कुछ सुनने के बाद नेता जी का खोया हुआ आत्मविष्वास काफी हद तक फिर से वापिस लोट आया था। उन्होने समारोह में जाते ही अपना भाशण षुरू करते हुए वो सब कुछ कह डाला जो कुछ भी उन्होने अपने ड्राईवर से सुना था। नेता जी की हर बात पर सारा हाल तालियों से गूंज उठता। अपनी बात खत्म करने से पहले उन्होने कहा कि हास्य के साथ हमारे षहर का टैªफ्रिक जाॅम भी बहुत ही कमाल की चीज है। पास खड़े स्टेज सेैक्ट्री ने कहा नेता जी आज यहा हास्य दिवस मनाया जा रहा है, आपको केवल हास्य दिवस के बारे में बोलना है। नेता जी ने उसे चुप करवाते हुए कहा कि मैं जानता हॅू कि मुझे हास्य दिवस के मौके पर ही बोलने के लिये बुलाया गया हैं। परंतु आज मुझे इस सच्चाइ्र्र को स्वीकार करने मे कोई सन्देंह नही है कि हास्य जैसे महत्वपूर्ण विशय के बारे में जो कुछ मेैं अपने जीवन के 60 साल में नही सीख सका वो आज के टैªफ्रिक जाॅम की बदौलत अपने ड्राईवर से सीख पाया हॅू।
हास्य की गौरवमई महिमा से प्रभावित होकर जौली अंकल का खिला हुआ चेहरा तो यही ब्यां कर रहा है कि कोई भी व्यक्ति जीवन की तमाम परेषानियों को खत्म करने के लिये हंसने-हंसाने पर पूर्ण रूप से भरोसा कर सकता है। अब यदि हम अपने दिल और दिमाग को हास्य के माध्यम से षांत रखने की कोषिष करे ंतो जहां एक और हमारे मन में रचनामात्मक विचार पैदा होगे वही हमें साल में एक दिन हास्य दिवस मनाने की जरूरत नही पड़ेगी बल्कि फिर तो हमारा हर दिन ही हास्य दिवस बन जायेगा।
नेता जी अपने दफतर में दाखिल होते ही बिना किसी को दुआ सलाम किए हुए प्रसाधन कक्ष की और दौड़ गये। पास बैठे एक सज्जन ने कहा कि नेता जी को क्या हुआ अभी तो घर से तरोताजा होकर आये है और आते ही फिर से प्रसाधन कक्ष में घुस गये है। उनके सेैक्ट्री ने कहा कि अभी दफतर में बैठते ही कई किस्म के ऊपर से प्रेषर आने षुरू हो जाते है, इसी के साथ यदि कोई दूसरे प्रेषर भी बन जाये तो नेता जी को काम करने मेें बहुत कठिनाई होती है, इसीलिये वो काम षुरू करने से पहले अपने आप को हल्का करके ही बैठते है। जैसे ही नेता जी वापिस अपनी सीट पर आकर बैठे तो उनके सेैक्ट्री ने कहा कि हास्य दिवस के मौके पर इलाके के कुछ लोग प्रसन्नता, मुस्कुराहट एवं हास्य पर अधारित एक अनूठे कार्यक्रम का आयोजन कर रहेे है। उनका अनुरोध है कि आप इस खास मौके पर मुख्य अतिथि के रूप में आकर आम जनता को हास्य के बारे जानकारी देते हुए इसके गुणों से अवगत कराऐं। जिससे कि आम आदमी आज के इस तनाव भरे दौर में हंसी-खुषी या यूं कहिए कि लाफ्टर थरैपी का भरपूर फायदा उठा सके। हालिक नेता जी को इस विशय के बारे में कुछ अधिक ज्ञान तो था नही परंतु उन्होनेे चुनावों के मद्देनजर अपनी लोकप्रियता बढ़ाने की चाह में झट से न्योता स्वीकार करते हुए मुख्य अतिथि बनने की हामी भर दी।
अगले दिन जब नेता जी हास्य के इस कार्यक्रम के लिये तैयार होकर घर से निकले तो उन्हें ध्यान आया कि उनके सेैक्ट्री ने इस मौके के लिये भाशण तो लिख कर दिया ही नही। अब नेता जी दुनियां को हास्य के महत्व को बताने से पहले खुद ही बुरी तरह से तनाव में आ चुके थे। एक बार उनके मन में आया कि अपने किसी कर्मचारी से फोन पर हास्य के बारे में बात करके अच्छे से जानकारी ले ली जाये। लेकिन फिर नेता जी को लगा कि अपने ड्राईवर के सामने अगर वो किसी कर्मचारी से इस बारे में बात करते है तो यह गंवार ड्राईवर क्या समझेगा कि मैं हास्य में बारे में कुछ जानता ही नही। इसी के साथ सड़क पर टैªफ्रिक जाॅम के कारण उनकी परेषानी एवं घबराहट और अधिक बढ़ने लगी थी। जैसे-जैसे कार्यक्रम में पहुंचने के लिये देरी हो रही थी, नेता जी की टेंषन भी उसी तेजी से बढ़ती जा रही थी। उनके मन में बार-बार यही आ रहा था कि गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस आदि के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी तो है लेकिन यह हास्य दिवस क्या बला है? यह कब और किस ने षुरू किया, इस बारे में तो कभी कुछ देखने-सुनने को नही मिला। मुझे लगता है कि फादर डे, मदर डे और वैलेटाईन्स डे की तरह इसे भी जरूर किसी अग्रेंज ने षुरू किया होगा। मैने भी न जानें बिना सोचे-समझे इस कार्यक्रम के लिये हां करके मुसीबत मोल ले ली।
नेता जी का ड्राईवर कार में लगे हुए छोटे से षीषे में उनके चेहरे के हाव-भाव को अच्छे से समझ रहा था। उसने कहा सर, अगर आपकी इजाजत हो तो मैं इस बारे में कुछ कहूं। नेता जी ने कहा कि तुम ठीक से अपनी गाड़ी चलाओ, तुम मेरी क्या मदद करोगेे? आज जिस कार्यक्रम में हम जा रहे है वहां सारे षहर के मीडिया के अलावा सभी नामी-ग्रामी लोग आये होगे। ड्राईवर ने कहा कि मैं ज्यादा पढ़ा-लिखा तो है नही, लेकिन इतना जरूर जानता हॅू कि हम हास्य दिवस के किसी समारोह में जा रहे है। परंतु यह तो कोई ऐसा विशय नही है जिसके बारे में इतनी चिंता की जाये। नेता जी ने अपना पसीना पोछते हुए उससे कहा कि तुम हास्य के बारे में क्या जानते हो? ड्राईवर ने कहा साहब जी गुस्ताखी माफ हो तो मैं इतना ही कहना चाहूंगा कि चाहे हमारे जीवन में कैसे ही हालात क्यूं न आ जाये, हमें कभी भी अपना आत्मविष्वास नही खोना चाहिए। जब आप पूरे साहस के साथ किसी भी कार्य को करने का मन बना लेते है तो उस समय आप महान कार्य को भी आसानी से कर लेते है। नेता जी ने ड्राईवर से कहा कि यह फालतू के भाशण छोड़ अगर कुछ थोड़ा बहुत हास्य के बारे में बता सकता है तो वो बता दें।
ड्राईवर ने नेता जी की बात का जवाब देते हुए कहा कि हंसी मजाक का सबसे बड़ा फायदा तो यह है कि सदा खुष रहने वालों का मानसिक संतुलन कभी नही बिगड़ता। एक बात और, हंसने की विधि तो सबसे आसान योग है और इसीलिये खुष रहने वाले सदा आषावादी रहते है। खुषमिजाज लोगो के अपने सभी मिलने वालों से रिष्ते और गहरे हो जाते है। जहां तक मुमकिन हो सके हमें हर किसी को खुषी देने का प्रयास करते रहना चाहिये क्योंकि रूठने मनाने के साथ थोड़ा बहुत मुस्कराने से जीवन में बहुत लाभ मिलता है। लोग मन की षांति पाने के लिये न जाने कहां-कहां भटकते रहते है, लेकिन आज तक किसी को भी न तो काबा में और न ही कांषी में खुषी मिली है। खुषी तो हर किसी के मन में ही होती है लेकिन इसका आंनद सिर्फ वोहि लोग पा सकते है जो इस ज्ञान के गुणों को समझ कर जीवन में अपना लेते है।
ड्राईवर से इतना सब कुछ सुनने के बाद नेता जी का खोया हुआ आत्मविष्वास काफी हद तक फिर से वापिस लोट आया था। उन्होने समारोह में जाते ही अपना भाशण षुरू करते हुए वो सब कुछ कह डाला जो कुछ भी उन्होने अपने ड्राईवर से सुना था। नेता जी की हर बात पर सारा हाल तालियों से गूंज उठता। अपनी बात खत्म करने से पहले उन्होने कहा कि हास्य के साथ हमारे षहर का टैªफ्रिक जाॅम भी बहुत ही कमाल की चीज है। पास खड़े स्टेज सेैक्ट्री ने कहा नेता जी आज यहा हास्य दिवस मनाया जा रहा है, आपको केवल हास्य दिवस के बारे में बोलना है। नेता जी ने उसे चुप करवाते हुए कहा कि मैं जानता हॅू कि मुझे हास्य दिवस के मौके पर ही बोलने के लिये बुलाया गया हैं। परंतु आज मुझे इस सच्चाइ्र्र को स्वीकार करने मे कोई सन्देंह नही है कि हास्य जैसे महत्वपूर्ण विशय के बारे में जो कुछ मेैं अपने जीवन के 60 साल में नही सीख सका वो आज के टैªफ्रिक जाॅम की बदौलत अपने ड्राईवर से सीख पाया हॅू।
हास्य की गौरवमई महिमा से प्रभावित होकर जौली अंकल का खिला हुआ चेहरा तो यही ब्यां कर रहा है कि कोई भी व्यक्ति जीवन की तमाम परेषानियों को खत्म करने के लिये हंसने-हंसाने पर पूर्ण रूप से भरोसा कर सकता है। अब यदि हम अपने दिल और दिमाग को हास्य के माध्यम से षांत रखने की कोषिष करे ंतो जहां एक और हमारे मन में रचनामात्मक विचार पैदा होगे वही हमें साल में एक दिन हास्य दिवस मनाने की जरूरत नही पड़ेगी बल्कि फिर तो हमारा हर दिन ही हास्य दिवस बन जायेगा।
’’ हास्य दिवस ’’
नेता जी अपने दफतर में दाखिल होते ही बिना किसी को दुआ सलाम किए हुए प्रसाधन कक्ष की और दौड़ गये। पास बैठे एक सज्जन ने कहा कि नेता जी को क्या हुआ अभी तो घर से तरोताजा होकर आये है और आते ही फिर से प्रसाधन कक्ष में घुस गये है। उनके सेैक्ट्री ने कहा कि अभी दफतर में बैठते ही कई किस्म के ऊपर से प्रेषर आने षुरू हो जाते है, इसी के साथ यदि कोई दूसरे प्रेषर भी बन जाये तो नेता जी को काम करने मेें बहुत कठिनाई होती है, इसीलिये वो काम षुरू करने से पहले अपने आप को हल्का करके ही बैठते है। जैसे ही नेता जी वापिस अपनी सीट पर आकर बैठे तो उनके सेैक्ट्री ने कहा कि हास्य दिवस के मौके पर इलाके के कुछ लोग प्रसन्नता, मुस्कुराहट एवं हास्य पर अधारित एक अनूठे कार्यक्रम का आयोजन कर रहेे है। उनका अनुरोध है कि आप इस खास मौके पर मुख्य अतिथि के रूप में आकर आम जनता को हास्य के बारे जानकारी देते हुए इसके गुणों से अवगत कराऐं। जिससे कि आम आदमी आज के इस तनाव भरे दौर में हंसी-खुषी या यूं कहिए कि लाफ्टर थरैपी का भरपूर फायदा उठा सके। हालिक नेता जी को इस विशय के बारे में कुछ अधिक ज्ञान तो था नही परंतु उन्होनेे चुनावों के मद्देनजर अपनी लोकप्रियता बढ़ाने की चाह में झट से न्योता स्वीकार करते हुए मुख्य अतिथि बनने की हामी भर दी।
अगले दिन जब नेता जी हास्य के इस कार्यक्रम के लिये तैयार होकर घर से निकले तो उन्हें ध्यान आया कि उनके सेैक्ट्री ने इस मौके के लिये भाशण तो लिख कर दिया ही नही। अब नेता जी दुनियां को हास्य के महत्व को बताने से पहले खुद ही बुरी तरह से तनाव में आ चुके थे। एक बार उनके मन में आया कि अपने किसी कर्मचारी से फोन पर हास्य के बारे में बात करके अच्छे से जानकारी ले ली जाये। लेकिन फिर नेता जी को लगा कि अपने ड्राईवर के सामने अगर वो किसी कर्मचारी से इस बारे में बात करते है तो यह गंवार ड्राईवर क्या समझेगा कि मैं हास्य में बारे में कुछ जानता ही नही। इसी के साथ सड़क पर टैªफ्रिक जाॅम के कारण उनकी परेषानी एवं घबराहट और अधिक बढ़ने लगी थी। जैसे-जैसे कार्यक्रम में पहुंचने के लिये देरी हो रही थी, नेता जी की टेंषन भी उसी तेजी से बढ़ती जा रही थी। उनके मन में बार-बार यही आ रहा था कि गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस आदि के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी तो है लेकिन यह हास्य दिवस क्या बला है? यह कब और किस ने षुरू किया, इस बारे में तो कभी कुछ देखने-सुनने को नही मिला। मुझे लगता है कि फादर डे, मदर डे और वैलेटाईन्स डे की तरह इसे भी जरूर किसी अग्रेंज ने षुरू किया होगा। मैने भी न जानें बिना सोचे-समझे इस कार्यक्रम के लिये हां करके मुसीबत मोल ले ली।
नेता जी का ड्राईवर कार में लगे हुए छोटे से षीषे में उनके चेहरे के हाव-भाव को अच्छे से समझ रहा था। उसने कहा सर, अगर आपकी इजाजत हो तो मैं इस बारे में कुछ कहूं। नेता जी ने कहा कि तुम ठीक से अपनी गाड़ी चलाओ, तुम मेरी क्या मदद करोगेे? आज जिस कार्यक्रम में हम जा रहे है वहां सारे षहर के मीडिया के अलावा सभी नामी-ग्रामी लोग आये होगे। ड्राईवर ने कहा कि मैं ज्यादा पढ़ा-लिखा तो है नही, लेकिन इतना जरूर जानता हॅू कि हम हास्य दिवस के किसी समारोह में जा रहे है। परंतु यह तो कोई ऐसा विशय नही है जिसके बारे में इतनी चिंता की जाये। नेता जी ने अपना पसीना पोछते हुए उससे कहा कि तुम हास्य के बारे में क्या जानते हो? ड्राईवर ने कहा साहब जी गुस्ताखी माफ हो तो मैं इतना ही कहना चाहूंगा कि चाहे हमारे जीवन में कैसे ही हालात क्यूं न आ जाये, हमें कभी भी अपना आत्मविष्वास नही खोना चाहिए। जब आप पूरे साहस के साथ किसी भी कार्य को करने का मन बना लेते है तो उस समय आप महान कार्य को भी आसानी से कर लेते है। नेता जी ने ड्राईवर से कहा कि यह फालतू के भाशण छोड़ अगर कुछ थोड़ा बहुत हास्य के बारे में बता सकता है तो वो बता दें।
ड्राईवर ने नेता जी की बात का जवाब देते हुए कहा कि हंसी मजाक का सबसे बड़ा फायदा तो यह है कि सदा खुष रहने वालों का मानसिक संतुलन कभी नही बिगड़ता। एक बात और, हंसने की विधि तो सबसे आसान योग है और इसीलिये खुष रहने वाले सदा आषावादी रहते है। खुषमिजाज लोगो के अपने सभी मिलने वालों से रिष्ते और गहरे हो जाते है। जहां तक मुमकिन हो सके हमें हर किसी को खुषी देने का प्रयास करते रहना चाहिये क्योंकि रूठने मनाने के साथ थोड़ा बहुत मुस्कराने से जीवन में बहुत लाभ मिलता है। लोग मन की षांति पाने के लिये न जाने कहां-कहां भटकते रहते है, लेकिन आज तक किसी को भी न तो काबा में और न ही कांषी में खुषी मिली है। खुषी तो हर किसी के मन में ही होती है लेकिन इसका आंनद सिर्फ वोहि लोग पा सकते है जो इस ज्ञान के गुणों को समझ कर जीवन में अपना लेते है।
ड्राईवर से इतना सब कुछ सुनने के बाद नेता जी का खोया हुआ आत्मविष्वास काफी हद तक फिर से वापिस लोट आया था। उन्होने समारोह में जाते ही अपना भाशण षुरू करते हुए वो सब कुछ कह डाला जो कुछ भी उन्होने अपने ड्राईवर से सुना था। नेता जी की हर बात पर सारा हाल तालियों से गूंज उठता। अपनी बात खत्म करने से पहले उन्होने कहा कि हास्य के साथ हमारे षहर का टैªफ्रिक जाॅम भी बहुत ही कमाल की चीज है। पास खड़े स्टेज सेैक्ट्री ने कहा नेता जी आज यहा हास्य दिवस मनाया जा रहा है, आपको केवल हास्य दिवस के बारे में बोलना है। नेता जी ने उसे चुप करवाते हुए कहा कि मैं जानता हॅू कि मुझे हास्य दिवस के मौके पर ही बोलने के लिये बुलाया गया हैं। परंतु आज मुझे इस सच्चाइ्र्र को स्वीकार करने मे कोई सन्देंह नही है कि हास्य जैसे महत्वपूर्ण विशय के बारे में जो कुछ मेैं अपने जीवन के 60 साल में नही सीख सका वो आज के टैªफ्रिक जाॅम की बदौलत अपने ड्राईवर से सीख पाया हॅू।
हास्य की गौरवमई महिमा से प्रभावित होकर जौली अंकल का खिला हुआ चेहरा तो यही ब्यां कर रहा है कि कोई भी व्यक्ति जीवन की तमाम परेषानियों को खत्म करने के लिये हंसने-हंसाने पर पूर्ण रूप से भरोसा कर सकता है। अब यदि हम अपने दिल और दिमाग को हास्य के माध्यम से षांत रखने की कोषिष करे ंतो जहां एक और हमारे मन में रचनामात्मक विचार पैदा होगे वही हमें साल में एक दिन हास्य दिवस मनाने की जरूरत नही पड़ेगी बल्कि फिर तो हमारा हर दिन ही हास्य दिवस बन जायेगा।
अगले दिन जब नेता जी हास्य के इस कार्यक्रम के लिये तैयार होकर घर से निकले तो उन्हें ध्यान आया कि उनके सेैक्ट्री ने इस मौके के लिये भाशण तो लिख कर दिया ही नही। अब नेता जी दुनियां को हास्य के महत्व को बताने से पहले खुद ही बुरी तरह से तनाव में आ चुके थे। एक बार उनके मन में आया कि अपने किसी कर्मचारी से फोन पर हास्य के बारे में बात करके अच्छे से जानकारी ले ली जाये। लेकिन फिर नेता जी को लगा कि अपने ड्राईवर के सामने अगर वो किसी कर्मचारी से इस बारे में बात करते है तो यह गंवार ड्राईवर क्या समझेगा कि मैं हास्य में बारे में कुछ जानता ही नही। इसी के साथ सड़क पर टैªफ्रिक जाॅम के कारण उनकी परेषानी एवं घबराहट और अधिक बढ़ने लगी थी। जैसे-जैसे कार्यक्रम में पहुंचने के लिये देरी हो रही थी, नेता जी की टेंषन भी उसी तेजी से बढ़ती जा रही थी। उनके मन में बार-बार यही आ रहा था कि गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस आदि के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी तो है लेकिन यह हास्य दिवस क्या बला है? यह कब और किस ने षुरू किया, इस बारे में तो कभी कुछ देखने-सुनने को नही मिला। मुझे लगता है कि फादर डे, मदर डे और वैलेटाईन्स डे की तरह इसे भी जरूर किसी अग्रेंज ने षुरू किया होगा। मैने भी न जानें बिना सोचे-समझे इस कार्यक्रम के लिये हां करके मुसीबत मोल ले ली।
नेता जी का ड्राईवर कार में लगे हुए छोटे से षीषे में उनके चेहरे के हाव-भाव को अच्छे से समझ रहा था। उसने कहा सर, अगर आपकी इजाजत हो तो मैं इस बारे में कुछ कहूं। नेता जी ने कहा कि तुम ठीक से अपनी गाड़ी चलाओ, तुम मेरी क्या मदद करोगेे? आज जिस कार्यक्रम में हम जा रहे है वहां सारे षहर के मीडिया के अलावा सभी नामी-ग्रामी लोग आये होगे। ड्राईवर ने कहा कि मैं ज्यादा पढ़ा-लिखा तो है नही, लेकिन इतना जरूर जानता हॅू कि हम हास्य दिवस के किसी समारोह में जा रहे है। परंतु यह तो कोई ऐसा विशय नही है जिसके बारे में इतनी चिंता की जाये। नेता जी ने अपना पसीना पोछते हुए उससे कहा कि तुम हास्य के बारे में क्या जानते हो? ड्राईवर ने कहा साहब जी गुस्ताखी माफ हो तो मैं इतना ही कहना चाहूंगा कि चाहे हमारे जीवन में कैसे ही हालात क्यूं न आ जाये, हमें कभी भी अपना आत्मविष्वास नही खोना चाहिए। जब आप पूरे साहस के साथ किसी भी कार्य को करने का मन बना लेते है तो उस समय आप महान कार्य को भी आसानी से कर लेते है। नेता जी ने ड्राईवर से कहा कि यह फालतू के भाशण छोड़ अगर कुछ थोड़ा बहुत हास्य के बारे में बता सकता है तो वो बता दें।
ड्राईवर ने नेता जी की बात का जवाब देते हुए कहा कि हंसी मजाक का सबसे बड़ा फायदा तो यह है कि सदा खुष रहने वालों का मानसिक संतुलन कभी नही बिगड़ता। एक बात और, हंसने की विधि तो सबसे आसान योग है और इसीलिये खुष रहने वाले सदा आषावादी रहते है। खुषमिजाज लोगो के अपने सभी मिलने वालों से रिष्ते और गहरे हो जाते है। जहां तक मुमकिन हो सके हमें हर किसी को खुषी देने का प्रयास करते रहना चाहिये क्योंकि रूठने मनाने के साथ थोड़ा बहुत मुस्कराने से जीवन में बहुत लाभ मिलता है। लोग मन की षांति पाने के लिये न जाने कहां-कहां भटकते रहते है, लेकिन आज तक किसी को भी न तो काबा में और न ही कांषी में खुषी मिली है। खुषी तो हर किसी के मन में ही होती है लेकिन इसका आंनद सिर्फ वोहि लोग पा सकते है जो इस ज्ञान के गुणों को समझ कर जीवन में अपना लेते है।
ड्राईवर से इतना सब कुछ सुनने के बाद नेता जी का खोया हुआ आत्मविष्वास काफी हद तक फिर से वापिस लोट आया था। उन्होने समारोह में जाते ही अपना भाशण षुरू करते हुए वो सब कुछ कह डाला जो कुछ भी उन्होने अपने ड्राईवर से सुना था। नेता जी की हर बात पर सारा हाल तालियों से गूंज उठता। अपनी बात खत्म करने से पहले उन्होने कहा कि हास्य के साथ हमारे षहर का टैªफ्रिक जाॅम भी बहुत ही कमाल की चीज है। पास खड़े स्टेज सेैक्ट्री ने कहा नेता जी आज यहा हास्य दिवस मनाया जा रहा है, आपको केवल हास्य दिवस के बारे में बोलना है। नेता जी ने उसे चुप करवाते हुए कहा कि मैं जानता हॅू कि मुझे हास्य दिवस के मौके पर ही बोलने के लिये बुलाया गया हैं। परंतु आज मुझे इस सच्चाइ्र्र को स्वीकार करने मे कोई सन्देंह नही है कि हास्य जैसे महत्वपूर्ण विशय के बारे में जो कुछ मेैं अपने जीवन के 60 साल में नही सीख सका वो आज के टैªफ्रिक जाॅम की बदौलत अपने ड्राईवर से सीख पाया हॅू।
हास्य की गौरवमई महिमा से प्रभावित होकर जौली अंकल का खिला हुआ चेहरा तो यही ब्यां कर रहा है कि कोई भी व्यक्ति जीवन की तमाम परेषानियों को खत्म करने के लिये हंसने-हंसाने पर पूर्ण रूप से भरोसा कर सकता है। अब यदि हम अपने दिल और दिमाग को हास्य के माध्यम से षांत रखने की कोषिष करे ंतो जहां एक और हमारे मन में रचनामात्मक विचार पैदा होगे वही हमें साल में एक दिन हास्य दिवस मनाने की जरूरत नही पड़ेगी बल्कि फिर तो हमारा हर दिन ही हास्य दिवस बन जायेगा।
Tuesday, August 2, 2011
खानापूर्ति
’’ खानापूर्ति ’’
मसुद्वी लाल जी घर का कुछ जरूरी समान लेने के लिए बाजार की और निकले ही थे कि रास्ते में उन्हें मालूम पड़ा कि पड़ोस में रहने वाली मौसी का देहान्त हो गया है। वैसे तो मसुद्वी लाल को मुहल्ले की यह चुगलखोर नाम से महषूर मौसी एक आंख भी न भाती थी लेकिन आज अब दिखावे के लिए ऊपरी मन से खानापूर्ति करने के लिए बाजार का रास्ता छोड़ कर सीधा मौसी के घर उसकी मौत पर अफसोस करने जा पहुंचे। सिर्फ मसुद्वी लाल ही नही मुहल्ले के सभी लोग मौसी को देखते ही कतराकर निकलने में अपनी भलाई समझते थे। हर कोई जानता था कि अगर एक बार मौसी के पास नमस्ते करने के लिये भी रूक गये तो फिर मौसी उसे तब तक नही छोड़ेगी जब तक वो सारे मुहल्ले की खबरों को अच्छे से नमक मिर्च लगा कर न सुना ले।
मौसी के घर में घुसते ही वहां बैठे सभी लोगो के बीच मसुद्वी लाल जी ने लीपापोती करने की मंषा से अपना चेहरा ऐसे लटका लिया जैसे मौसी के जाने का सबसे अधिक दुख उन्हीं को ही हो। सभी लोग एक दूसरे से कुछ न कुछ मौसी की अच्छाईयों के बारे में बातचीत कर रहे थे। परंतु मसुद्वी लाल जी किसी बात पर ध्यान देने की बजाए उसे एक कान से सुनकर दूसरे से निकाले जा रहे थे। चंद क्षण किसी तरह चुप बैठने के बाद मसु़द्वी लाल जी ने मौसी के बेटे से पूछा कि सुबह तक तो ठीक ठाक थी फिर यह सब कुछ अचानक क्या हो गया मौसी जी को? इससे पहले कि मौसी का बेटा उनकी मौत के बारे में कुछ बताता मसुद्वी लाल जी ने कहा कि जरा पानी तो मंगवा दो, बहुत गर्मी लग रही है। जैसे ही एक लड़का इनके लिये पानी का गिलास लेकर आया तो उसे देखते ही बोले कि यह तो बहुत गर्म है, घर में बर्फ वगैरहा नही है क्या? थोड़ी बर्फ ही मंगवा लेते। पंखा भी नही चलाया आप लोगो ने, कम से कम पंखा तो चला देते। सभी लोग मसुद्वी लाल की और ढेड़ी नजरों से देखने लगे कि यह इस तरह के दुखद मौके पर भी कैसी अजीब बाते कर रहे है।
मसुद्वी लाल जी फिर मौसी के बेटे से बोले कि तुमने बताया नही कि क्या हुआ था मौसी जी को? उनके बेटे ने कहना षुरू किया कि बस ऐसे ही घर में चल फिर रही थी कि। मसुद्वी लाल ने बीच में ही उसे टोकते हुए कहा क्यूं कुछ घर का काम काज नही करती थी। बेटे ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा कि नही मेरा मतलब यह नही था, दिन में खाना खाया और सो गई थी। मसुद्वी लाल जी ने कहा क्यूं खाना खाते-खाते ही सो गई थी क्या? बेटे ने बात साफ करते हुए कहा नही जी थोड़ी देर बाद सोई थी। मसुद्वी लाल जी ने उसे टोकते हुए कहा बेटा ठीक से सारी बात बताओ न, तुम तो मुझे भी खामख्वाह कन्फूज कर रहे हो। इसी के साथ मसुद्वी लाल जी ने मौसी के बेटे से पूछ लिया कि तुम्हारे पिता जी दिखाई्र नही दे रहे, वो कही गये हुए है? मौसी के बेटे ने बताया कि पिता जी को तो हार्ट-अटैक आया था वो तो पिछले 15-20 दिन से अस्पताल में दाखिल है।
मसुद्वी लाल जी ने हैरान-परेषान होते हुए कहा कि आप भी कमाल करते हो, मुझे आज तक किसी ने बताया ही नही, कम से कम मैं एक बार उनसे मिल तो आता। चलो अब उनको अफसोस करने अस्पताल तो जाना ही पड़ेगा, साथ ही उनका हाल भी पूछ आऊगा। इसी के साथ मसुद्वी जी बोले कि देखो जी जिसे हार्ट-अटैक से मरना था वो तो अस्पताल में बैठा अपना इलाज करवा रहा है और जो ठीक-ठाक थी वो हम सब को छोड़ कर चली गई। वैसे मेरा तुम्हारी मां से बहुत प्यार था, पूरे मुहल्ले में नंबर वन थी तुम्हारी मां। तुम्हारी मां के बिना मेरा दिल नही लगना इस मुहल्ले में। मौसी के बेटे ने जैसे ही घूर कर देखा तो मसुद्वी लाल जी ने पासा पलटते हुए कहा कि मुझे तो वो अपना छोटा भाई मानती थी, बहुत प्यार करती थी मुझें। महौल को बिगड़ता देख मुसद्वी लाल ने सभी को हाथ जोड़ कर वहां से खिसकना ही उचित समझा। जाते-जाते घरवालों से पूछने लगे कि अब इस मुर्दे को कितने बजे घर से निकालना है, मैं फिर उसी समय आ जाऊगा।
मुसद्वी लाल के जाते ही वहां बैठे लोगो में कुछ बोलने लगे कि इनके अपने घर में तो कोई इनकी बात तक नही पूछता और दूसरों के यहां आकर यह बाल की खाल निकालने से बाज नही आते। मुसद्वी जी तो बिना सोचे विचारे ऐसे बोले जा रहे थे जैसे कोई पागल बिना लक्ष्य के गोली चलाता हो। इन सज्जन की बात सुनते ही मौसी के बेटे ने इषारे से चुप करवाते हुए कहा कि इसी लिये हमारे बर्जुग कहते है कि जिंदगी में रिष्ते निभाना उतना ही मुष्किल होता है जितना हाथ में लिए हुए पानी को गिरने से बचाना। इससे भी बड़ा सच तो यह है कि हर इंसान जिंदगी भर दो चेहरे नही भूल पाता एक जो मुष्किल समय में आपका साथ देते है और दूसरा जो मुष्किल समय में आपका साथ छोड़ जाते है। जौली अंकल सभी लोगो के रंग-ढंग पहचानाने की कोषिष में इतना ही जान पायें है कि एक दूसरे के बारे में बाते करने की बजाए यदि हम एक दूसरे से ढंग से बात करें तो बहुत हद तक हमारी आपसी परेषनियां तो खत्म होगी ही वही खानापूर्ति जैसे समाजिक ढ़ोंग से भी छुटकारा मिल पायेगा।
’’जौली अंकल’’
मसुद्वी लाल जी घर का कुछ जरूरी समान लेने के लिए बाजार की और निकले ही थे कि रास्ते में उन्हें मालूम पड़ा कि पड़ोस में रहने वाली मौसी का देहान्त हो गया है। वैसे तो मसुद्वी लाल को मुहल्ले की यह चुगलखोर नाम से महषूर मौसी एक आंख भी न भाती थी लेकिन आज अब दिखावे के लिए ऊपरी मन से खानापूर्ति करने के लिए बाजार का रास्ता छोड़ कर सीधा मौसी के घर उसकी मौत पर अफसोस करने जा पहुंचे। सिर्फ मसुद्वी लाल ही नही मुहल्ले के सभी लोग मौसी को देखते ही कतराकर निकलने में अपनी भलाई समझते थे। हर कोई जानता था कि अगर एक बार मौसी के पास नमस्ते करने के लिये भी रूक गये तो फिर मौसी उसे तब तक नही छोड़ेगी जब तक वो सारे मुहल्ले की खबरों को अच्छे से नमक मिर्च लगा कर न सुना ले।
मौसी के घर में घुसते ही वहां बैठे सभी लोगो के बीच मसुद्वी लाल जी ने लीपापोती करने की मंषा से अपना चेहरा ऐसे लटका लिया जैसे मौसी के जाने का सबसे अधिक दुख उन्हीं को ही हो। सभी लोग एक दूसरे से कुछ न कुछ मौसी की अच्छाईयों के बारे में बातचीत कर रहे थे। परंतु मसुद्वी लाल जी किसी बात पर ध्यान देने की बजाए उसे एक कान से सुनकर दूसरे से निकाले जा रहे थे। चंद क्षण किसी तरह चुप बैठने के बाद मसु़द्वी लाल जी ने मौसी के बेटे से पूछा कि सुबह तक तो ठीक ठाक थी फिर यह सब कुछ अचानक क्या हो गया मौसी जी को? इससे पहले कि मौसी का बेटा उनकी मौत के बारे में कुछ बताता मसुद्वी लाल जी ने कहा कि जरा पानी तो मंगवा दो, बहुत गर्मी लग रही है। जैसे ही एक लड़का इनके लिये पानी का गिलास लेकर आया तो उसे देखते ही बोले कि यह तो बहुत गर्म है, घर में बर्फ वगैरहा नही है क्या? थोड़ी बर्फ ही मंगवा लेते। पंखा भी नही चलाया आप लोगो ने, कम से कम पंखा तो चला देते। सभी लोग मसुद्वी लाल की और ढेड़ी नजरों से देखने लगे कि यह इस तरह के दुखद मौके पर भी कैसी अजीब बाते कर रहे है।
मसुद्वी लाल जी फिर मौसी के बेटे से बोले कि तुमने बताया नही कि क्या हुआ था मौसी जी को? उनके बेटे ने कहना षुरू किया कि बस ऐसे ही घर में चल फिर रही थी कि। मसुद्वी लाल ने बीच में ही उसे टोकते हुए कहा क्यूं कुछ घर का काम काज नही करती थी। बेटे ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा कि नही मेरा मतलब यह नही था, दिन में खाना खाया और सो गई थी। मसुद्वी लाल जी ने कहा क्यूं खाना खाते-खाते ही सो गई थी क्या? बेटे ने बात साफ करते हुए कहा नही जी थोड़ी देर बाद सोई थी। मसुद्वी लाल जी ने उसे टोकते हुए कहा बेटा ठीक से सारी बात बताओ न, तुम तो मुझे भी खामख्वाह कन्फूज कर रहे हो। इसी के साथ मसुद्वी लाल जी ने मौसी के बेटे से पूछ लिया कि तुम्हारे पिता जी दिखाई्र नही दे रहे, वो कही गये हुए है? मौसी के बेटे ने बताया कि पिता जी को तो हार्ट-अटैक आया था वो तो पिछले 15-20 दिन से अस्पताल में दाखिल है।
मसुद्वी लाल जी ने हैरान-परेषान होते हुए कहा कि आप भी कमाल करते हो, मुझे आज तक किसी ने बताया ही नही, कम से कम मैं एक बार उनसे मिल तो आता। चलो अब उनको अफसोस करने अस्पताल तो जाना ही पड़ेगा, साथ ही उनका हाल भी पूछ आऊगा। इसी के साथ मसुद्वी जी बोले कि देखो जी जिसे हार्ट-अटैक से मरना था वो तो अस्पताल में बैठा अपना इलाज करवा रहा है और जो ठीक-ठाक थी वो हम सब को छोड़ कर चली गई। वैसे मेरा तुम्हारी मां से बहुत प्यार था, पूरे मुहल्ले में नंबर वन थी तुम्हारी मां। तुम्हारी मां के बिना मेरा दिल नही लगना इस मुहल्ले में। मौसी के बेटे ने जैसे ही घूर कर देखा तो मसुद्वी लाल जी ने पासा पलटते हुए कहा कि मुझे तो वो अपना छोटा भाई मानती थी, बहुत प्यार करती थी मुझें। महौल को बिगड़ता देख मुसद्वी लाल ने सभी को हाथ जोड़ कर वहां से खिसकना ही उचित समझा। जाते-जाते घरवालों से पूछने लगे कि अब इस मुर्दे को कितने बजे घर से निकालना है, मैं फिर उसी समय आ जाऊगा।
मुसद्वी लाल के जाते ही वहां बैठे लोगो में कुछ बोलने लगे कि इनके अपने घर में तो कोई इनकी बात तक नही पूछता और दूसरों के यहां आकर यह बाल की खाल निकालने से बाज नही आते। मुसद्वी जी तो बिना सोचे विचारे ऐसे बोले जा रहे थे जैसे कोई पागल बिना लक्ष्य के गोली चलाता हो। इन सज्जन की बात सुनते ही मौसी के बेटे ने इषारे से चुप करवाते हुए कहा कि इसी लिये हमारे बर्जुग कहते है कि जिंदगी में रिष्ते निभाना उतना ही मुष्किल होता है जितना हाथ में लिए हुए पानी को गिरने से बचाना। इससे भी बड़ा सच तो यह है कि हर इंसान जिंदगी भर दो चेहरे नही भूल पाता एक जो मुष्किल समय में आपका साथ देते है और दूसरा जो मुष्किल समय में आपका साथ छोड़ जाते है। जौली अंकल सभी लोगो के रंग-ढंग पहचानाने की कोषिष में इतना ही जान पायें है कि एक दूसरे के बारे में बाते करने की बजाए यदि हम एक दूसरे से ढंग से बात करें तो बहुत हद तक हमारी आपसी परेषनियां तो खत्म होगी ही वही खानापूर्ति जैसे समाजिक ढ़ोंग से भी छुटकारा मिल पायेगा।
’’जौली अंकल’’
असली नकली - जोली अंकल का रोचक लेख
’’ असली नकली ’’
जैसे ही हवाई जहाज ने दिल्ली के एयरपोर्ट की धरती को छुआ तो नटवर लाल ने चैन की सांस लेते हुए कहा कि भगवान तेरा लाख-लाख षुक्र है। अभी नटवर लाल की यह दुआ पूरी भी नही हुई थी कि पुलिस वालों ने उसे चारों और से घेर लिया। पुलिस अफसरों ने जैसे ही उसका सामान चैक किया गया उसमें से लाखों रूप्ये के नकली नोट बरामद हो गये। अगले ही पल उसे सरकारी मेहमान बना कर पुलिस की गाड़ी से जज साहब के सामने पेष कर दिया गया। नटवर लाल को गौर से देखते हुए जज साहब ने पूछा कि तुमने यह नकली नोट क्यूं बनाए? नटवर लाल ने हाथ जोड़ कर प्रार्थना करते हुए कहा जज साहब मैने तो इस बार सारे नोट बिल्कुल असली बनाने की पूरी कोषिष की थी, लेकिन न जानें पुलिस वालों को यह किस कमी के कारण नकली लग रहे है। इसी दौरान जज साहब ने अपनी याददाष्त पर थोड़ा जोर डाला तो उन्हें याद आया कि नटवर लाल तो पहले भी नकली नोट बनाने के जुर्म में सजा काट चुका है। इससे पहले कि जज साहब कुछ और कहते नटवर लाल ने कहा जी हजूर उस समय तो मेरे से ही नकली नोट बनाने में गलती हो गई थी। मैने अपनी बीवी की जिद्द को मानते हुए बापू की फोटो लगाने की बजाए अपने बेटे की फोटो लगा दी थी। इससे पहले कि जज साहब नटवर लाल को सजा सुना कर जेल भेजने का आदेष देते, नटवर लाल ने सीने में बहुत जोर से दर्द होने की नौंटकी षुरू कर दी। जज साहब को भी मजबूरन पुलिस वालों को कह कर इसे फौरन अस्पताल में भर्ती करने का आदेष सुनाना पड़ा।
अस्पताल के बिस्तर पर नटवर लाल को लिटाते हुए डाॅक्टर साहब ने उससे पूछा कि कहां-कहां दर्द हो रहा है? अब असल में कोई तकलीफ तो थी ही नही तो नटवर लाल डाक्टर साहब को क्या बताता कि दर्द कहां हो रहा है? बात को और अधिक उलझाने के मकसद से नटवर लाल ने कहा कि डाॅक्टर साहब एक जगह दर्द हो तो आपको बताऊ। इसी के साथ नटवर लाल ने चंद नोट डाॅक्टर साहब की हथेली पर रखते हुए कहा कि आप कुछ देर के लिये पुलिस वालों के सामने अंधे बन जाओ, बाकी सब मैं खुद ही संभाल लूंगा। डाॅक्टर साहब ने नटवर लाल को कुछ भी उल्टा सीधा कहने की बजाए इतनी राय जरूर दे डाली कि यदि वास्तव में कोई तकलीफ हो रही है तो किसी अच्छे से प्राईवेट अस्पताल में इलाज करवाना। हमारे यहां तो दवाईयों से लेकर डाॅक्टर तक तुम किसी पर भी भरोसा नही कर सकते कि कौन असली है और कौन नकली। तुम यहां रह कर कुछ भी करो बस इस बात का ध्यान रहे कि मेरी नौकरी पर उंगली नही उठनी चाहिए। डाॅक्टर के चेहरे के हाव-भाव को देखते ही नटवर लाल समझ गया कि यह भी कुछ न कुछ गौरख धंधे की बदोलत ही डाॅक्टर बना बैठा है, नही तो यह आदमी इतनी जल्दी चंद रूप्यों के लिए अपना ईमान नही बेचता।
अस्पताल के बिस्तर पर लेटे-लेटे नटवर लाल ने सामने पड़ी अखबार उठाई तो उसमें कई चैकानें वाली खबरें छपी हुई थी। कुछ दगाबाजों ने तो नकली इन्कमटैक्स अफसर बन कर एक गहनों की दुकान को ही लूट लिया था। कुछ ढ़ोंगी कलाकारों के बारे में छपा था कि वो फिल्मों में नकली ढाड़ी मूछ लगा कर दुनियां को धोखा दे रहेे है। आजकल तो यहां तक भी देखने में आ रहा है कि कुछ लोग अपनी षक्ल और बालो को रंग-रूप बदल कर खुद को डुप्लीकेट हीरो हीरोईन की जगह असली की तरह ही पेष करने लगे है। नटवर लाल ने अस्पताल में आते जाते मरीजों को बड़ी ही हैरानगी से देखते हुए सोचा कि मैं तो सिर्फ नकली नोटो का कारोबार करता हॅू परंतु इस अस्पताल में तो कोई नकली टांग लगा कर घूम रहा है, कोई नकली आंख लगवाने आया हुआ है। नकली दांत लगवाने वालों की लाईन तो न जाने कहां तक जा रही थी। जैसे ही नटवर लाल के नकली नोटो के साथ पकड़े जाने की खबर मीडिया में आई तो जज साहब को उसे वहां भेजने का आदेष देना पड़ा जहां से नटवर लाल नकली नोट लेकर आया था।
कहचरी से निकलते हुए नटवर लाल ने हंसते हुए जज साहब से कहा कि बचपन से ही सुनते आये है कि घोड़ी चाहे लकड़ी की हो घोड़ी तो घोड़ी ही होती है। इसी तरह डिग्री असली हो या नकली डिग्री तो डिग्री ही होती है। हमारे मंत्री असली तो क्या नकली डिग्री के बिना ही देष की सरकार को बरसों से चला रहे है, उन्हें तो कोई कुछ नही कहता। हर कोई जानता है कि इन लोगो की बातो में सिर्फ दिखावा और प्यार में छलावा होता है। ऐसे लोग जब कभी आसूं भी बहाते है तो वो भी नकली खारे पानी के होते है। आप मुझे अकेले को सजा देकर क्या सुधार कर लोगे। इस दुनियां में असल बचा ही क्या है सब कुछ नकली ही रह गया है। जिस हवाई जहाज से नटवर लाल को भेजने का प्रबंन्ध किया गया उसके उड़ने से पहले ही यह मालूम हुआ कि इस जहाज का पायलट भी नकली है। पुलिस की अपराध षाखा ने बताया कि इस पायलट ने जाली दस्तावेज जमां करवा कर नकली पायलट का लाइसेंस हासिल किया था।
जौली अंकल का तो यही मानना है कि नकली वस्तुओं का व्यापार करने वाले चाहे किसी भी भेस में हो एक सभी एक ही थैली के चट्टे के बट्टे है। आज यदि हमें पूरी कीमत देकर भी हर चीज नकली मिल रही है तो उसका एक ही कारण हेै कि हम लोग खुलकर ऐसे दोशियों के खिलाफ आवाज नही उठाते। नकली वस्त्ुओ का कारोबार करने वालों के मन में मानवता के प्रति कोई दया नही होती इसलिये ऐसे लोगो को मानव कहना ही गलत है। हर नकली चीज को असली बना कर अमीर बनने वालो को यह नही भूलना चाहिये कि अमीर वो नही जिसके पास बहुत धन है या जिसने बहुत धन जमा किया हो। असली अमीर तो वो है जिसे और अधिक धन की जरूरत नही रहती। जिसे हर समय धन की भूख रहती हो वो तो सदा निर्धन ही कहलाता है। छल, कपट, बेईमानी और धोखा देकर चाहे कोई लाख कोषिष कर ले लेकिन असली सदा असली और नकली हमेषा नकली ही होता है।
’’ जौली अंकल ’’
जैसे ही हवाई जहाज ने दिल्ली के एयरपोर्ट की धरती को छुआ तो नटवर लाल ने चैन की सांस लेते हुए कहा कि भगवान तेरा लाख-लाख षुक्र है। अभी नटवर लाल की यह दुआ पूरी भी नही हुई थी कि पुलिस वालों ने उसे चारों और से घेर लिया। पुलिस अफसरों ने जैसे ही उसका सामान चैक किया गया उसमें से लाखों रूप्ये के नकली नोट बरामद हो गये। अगले ही पल उसे सरकारी मेहमान बना कर पुलिस की गाड़ी से जज साहब के सामने पेष कर दिया गया। नटवर लाल को गौर से देखते हुए जज साहब ने पूछा कि तुमने यह नकली नोट क्यूं बनाए? नटवर लाल ने हाथ जोड़ कर प्रार्थना करते हुए कहा जज साहब मैने तो इस बार सारे नोट बिल्कुल असली बनाने की पूरी कोषिष की थी, लेकिन न जानें पुलिस वालों को यह किस कमी के कारण नकली लग रहे है। इसी दौरान जज साहब ने अपनी याददाष्त पर थोड़ा जोर डाला तो उन्हें याद आया कि नटवर लाल तो पहले भी नकली नोट बनाने के जुर्म में सजा काट चुका है। इससे पहले कि जज साहब कुछ और कहते नटवर लाल ने कहा जी हजूर उस समय तो मेरे से ही नकली नोट बनाने में गलती हो गई थी। मैने अपनी बीवी की जिद्द को मानते हुए बापू की फोटो लगाने की बजाए अपने बेटे की फोटो लगा दी थी। इससे पहले कि जज साहब नटवर लाल को सजा सुना कर जेल भेजने का आदेष देते, नटवर लाल ने सीने में बहुत जोर से दर्द होने की नौंटकी षुरू कर दी। जज साहब को भी मजबूरन पुलिस वालों को कह कर इसे फौरन अस्पताल में भर्ती करने का आदेष सुनाना पड़ा।
अस्पताल के बिस्तर पर नटवर लाल को लिटाते हुए डाॅक्टर साहब ने उससे पूछा कि कहां-कहां दर्द हो रहा है? अब असल में कोई तकलीफ तो थी ही नही तो नटवर लाल डाक्टर साहब को क्या बताता कि दर्द कहां हो रहा है? बात को और अधिक उलझाने के मकसद से नटवर लाल ने कहा कि डाॅक्टर साहब एक जगह दर्द हो तो आपको बताऊ। इसी के साथ नटवर लाल ने चंद नोट डाॅक्टर साहब की हथेली पर रखते हुए कहा कि आप कुछ देर के लिये पुलिस वालों के सामने अंधे बन जाओ, बाकी सब मैं खुद ही संभाल लूंगा। डाॅक्टर साहब ने नटवर लाल को कुछ भी उल्टा सीधा कहने की बजाए इतनी राय जरूर दे डाली कि यदि वास्तव में कोई तकलीफ हो रही है तो किसी अच्छे से प्राईवेट अस्पताल में इलाज करवाना। हमारे यहां तो दवाईयों से लेकर डाॅक्टर तक तुम किसी पर भी भरोसा नही कर सकते कि कौन असली है और कौन नकली। तुम यहां रह कर कुछ भी करो बस इस बात का ध्यान रहे कि मेरी नौकरी पर उंगली नही उठनी चाहिए। डाॅक्टर के चेहरे के हाव-भाव को देखते ही नटवर लाल समझ गया कि यह भी कुछ न कुछ गौरख धंधे की बदोलत ही डाॅक्टर बना बैठा है, नही तो यह आदमी इतनी जल्दी चंद रूप्यों के लिए अपना ईमान नही बेचता।
अस्पताल के बिस्तर पर लेटे-लेटे नटवर लाल ने सामने पड़ी अखबार उठाई तो उसमें कई चैकानें वाली खबरें छपी हुई थी। कुछ दगाबाजों ने तो नकली इन्कमटैक्स अफसर बन कर एक गहनों की दुकान को ही लूट लिया था। कुछ ढ़ोंगी कलाकारों के बारे में छपा था कि वो फिल्मों में नकली ढाड़ी मूछ लगा कर दुनियां को धोखा दे रहेे है। आजकल तो यहां तक भी देखने में आ रहा है कि कुछ लोग अपनी षक्ल और बालो को रंग-रूप बदल कर खुद को डुप्लीकेट हीरो हीरोईन की जगह असली की तरह ही पेष करने लगे है। नटवर लाल ने अस्पताल में आते जाते मरीजों को बड़ी ही हैरानगी से देखते हुए सोचा कि मैं तो सिर्फ नकली नोटो का कारोबार करता हॅू परंतु इस अस्पताल में तो कोई नकली टांग लगा कर घूम रहा है, कोई नकली आंख लगवाने आया हुआ है। नकली दांत लगवाने वालों की लाईन तो न जाने कहां तक जा रही थी। जैसे ही नटवर लाल के नकली नोटो के साथ पकड़े जाने की खबर मीडिया में आई तो जज साहब को उसे वहां भेजने का आदेष देना पड़ा जहां से नटवर लाल नकली नोट लेकर आया था।
कहचरी से निकलते हुए नटवर लाल ने हंसते हुए जज साहब से कहा कि बचपन से ही सुनते आये है कि घोड़ी चाहे लकड़ी की हो घोड़ी तो घोड़ी ही होती है। इसी तरह डिग्री असली हो या नकली डिग्री तो डिग्री ही होती है। हमारे मंत्री असली तो क्या नकली डिग्री के बिना ही देष की सरकार को बरसों से चला रहे है, उन्हें तो कोई कुछ नही कहता। हर कोई जानता है कि इन लोगो की बातो में सिर्फ दिखावा और प्यार में छलावा होता है। ऐसे लोग जब कभी आसूं भी बहाते है तो वो भी नकली खारे पानी के होते है। आप मुझे अकेले को सजा देकर क्या सुधार कर लोगे। इस दुनियां में असल बचा ही क्या है सब कुछ नकली ही रह गया है। जिस हवाई जहाज से नटवर लाल को भेजने का प्रबंन्ध किया गया उसके उड़ने से पहले ही यह मालूम हुआ कि इस जहाज का पायलट भी नकली है। पुलिस की अपराध षाखा ने बताया कि इस पायलट ने जाली दस्तावेज जमां करवा कर नकली पायलट का लाइसेंस हासिल किया था।
जौली अंकल का तो यही मानना है कि नकली वस्तुओं का व्यापार करने वाले चाहे किसी भी भेस में हो एक सभी एक ही थैली के चट्टे के बट्टे है। आज यदि हमें पूरी कीमत देकर भी हर चीज नकली मिल रही है तो उसका एक ही कारण हेै कि हम लोग खुलकर ऐसे दोशियों के खिलाफ आवाज नही उठाते। नकली वस्त्ुओ का कारोबार करने वालों के मन में मानवता के प्रति कोई दया नही होती इसलिये ऐसे लोगो को मानव कहना ही गलत है। हर नकली चीज को असली बना कर अमीर बनने वालो को यह नही भूलना चाहिये कि अमीर वो नही जिसके पास बहुत धन है या जिसने बहुत धन जमा किया हो। असली अमीर तो वो है जिसे और अधिक धन की जरूरत नही रहती। जिसे हर समय धन की भूख रहती हो वो तो सदा निर्धन ही कहलाता है। छल, कपट, बेईमानी और धोखा देकर चाहे कोई लाख कोषिष कर ले लेकिन असली सदा असली और नकली हमेषा नकली ही होता है।
’’ जौली अंकल ’’
Monday, July 18, 2011
असली नकली - जोली अंकल का रोचक लेख
’’ असली नकली ’’
जैसे ही हवाई जहाज ने दिल्ली के एयरपोर्ट की धरती को छुआ तो नटवर लाल ने चैन की सांस लेते हुए कहा कि भगवान तेरा लाख-लाख षुक्र है। अभी नटवर लाल की यह दुआ पूरी भी नही हुई थी कि पुलिस वालों ने उसे चारों और से घेर लिया। पुलिस अफसरों ने जैसे ही उसका सामान चैक किया गया उसमें से लाखों रूप्ये के नकली नोट बरामद हो गये। अगले ही पल उसे सरकारी मेहमान बना कर पुलिस की गाड़ी से जज साहब के सामने पेष कर दिया गया। नटवर लाल को गौर से देखते हुए जज साहब ने पूछा कि तुमने यह नकली नोट क्यूं बनाए? नटवर लाल ने हाथ जोड़ कर प्रार्थना करते हुए कहा जज साहब मैने तो इस बार सारे नोट बिल्कुल असली बनाने की पूरी कोषिष की थी, लेकिन न जानें पुलिस वालों को यह किस कमी के कारण नकली लग रहे है। इसी दौरान जज साहब ने अपनी याददाष्त पर थोड़ा जोर डाला तो उन्हें याद आया कि नटवर लाल तो पहले भी नकली नोट बनाने के जुर्म में सजा काट चुका है। इससे पहले कि जज साहब कुछ और कहते नटवर लाल ने कहा जी हजूर उस समय तो मेरे से ही नकली नोट बनाने में गलती हो गई थी। मैने अपनी बीवी की जिद्द को मानते हुए बापू की फोटो लगाने की बजाए अपने बेटे की फोटो लगा दी थी। इससे पहले कि जज साहब नटवर लाल को सजा सुना कर जेल भेजने का आदेष देते, नटवर लाल ने सीने में बहुत जोर से दर्द होने की नौंटकी षुरू कर दी। जज साहब को भी मजबूरन पुलिस वालों को कह कर इसे फौरन अस्पताल में भर्ती करने का आदेष सुनाना पड़ा।
अस्पताल के बिस्तर पर नटवर लाल को लिटाते हुए डॉक्टर साहब ने उससे पूछा कि कहां-कहां दर्द हो रहा है? अब असल में कोई तकलीफ तो थी ही नही तो नटवर लाल डाक्टर साहब को क्या बताता कि दर्द कहां हो रहा है? बात को और अधिक उलझाने के मकसद से नटवर लाल ने कहा कि डॉक्टर साहब एक जगह दर्द हो तो आपको बताऊ। इसी के साथ नटवर लाल ने चंद नोट डॉक्टर साहब की हथेली पर रखते हुए कहा कि आप कुछ देर के लिये पुलिस वालों के सामने अंधे बन जाओ, बाकी सब मैं खुद ही संभाल लूंगा। डॉक्टर साहब ने नटवर लाल को कुछ भी उल्टा सीधा कहने की बजाए इतनी राय जरूर दे डाली कि यदि वास्तव में कोई तकलीफ हो रही है तो किसी अच्छे से प्राईवेट अस्पताल में इलाज करवाना। हमारे यहां तो दवाईयों से लेकर डॉक्टर तक तुम किसी पर भी भरोसा नही कर सकते कि कौन असली है और कौन नकली। तुम यहां रह कर कुछ भी करो बस इस बात का ध्यान रहे कि मेरी नौकरी पर उंगली नही उठनी चाहिए। डॉक्टर के चेहरे के हाव-भाव को देखते ही नटवर लाल समझ गया कि यह भी कुछ न कुछ गौरख धंधे की बदोलत ही डॉक्टर बना बैठा है, नही तो यह आदमी इतनी जल्दी चंद रूप्यों के लिए अपना ईमान नही बेचता।
अस्पताल के बिस्तर पर लेटे-लेटे नटवर लाल ने सामने पड़ी अखबार उठाई तो उसमें कई चौकानें वाली खबरें छपी हुई थी। कुछ दगाबाजों ने तो नकली इन्कमटैक्स अफसर बन कर एक गहनों की दुकान को ही लूट लिया था। कुछ ढ़ोंगी कलाकारों के बारे में छपा था कि वो फिल्मों में नकली ढाड़ी मूछ लगा कर दुनियां को धोखा दे रहेे है। आजकल तो यहां तक भी देखने में आ रहा है कि कुछ लोग अपनी षक्ल और बालो को रंग-रूप बदल कर खुद को डुप्लीकेट हीरो हीरोईन की जगह असली की तरह ही पेष करने लगे है। नटवर लाल ने अस्पताल में आते जाते मरीजों को बड़ी ही हैरानगी से देखते हुए सोचा कि मैं तो सिर्फ नकली नोटो का कारोबार करता हॅू परंतु इस अस्पताल में तो कोई नकली टांग लगा कर घूम रहा है, कोई नकली आंख लगवाने आया हुआ है। नकली दांत लगवाने वालों की लाईन तो न जाने कहां तक जा रही थी। जैसे ही नटवर लाल के नकली नोटो के साथ पकड़े जाने की खबर मीडिया में आई तो जज साहब को उसे वहां भेजने का आदेष देना पड़ा जहां से नटवर लाल नकली नोट लेकर आया था।
कहचरी से निकलते हुए नटवर लाल ने हंसते हुए जज साहब से कहा कि बचपन से ही सुनते आये है कि घोड़ी चाहे लकड़ी की हो घोड़ी तो घोड़ी ही होती है। इसी तरह डिग्री असली हो या नकली डिग्री तो डिग्री ही होती है। हमारे मंत्री असली तो क्या नकली डिग्री के बिना ही देष की सरकार को बरसों से चला रहे है, उन्हें तो कोई कुछ नही कहता। हर कोई जानता है कि इन लोगो की बातो में सिर्फ दिखावा और प्यार में छलावा होता है। ऐसे लोग जब कभी आसूं भी बहाते है तो वो भी नकली खारे पानी के होते है। आप मुझे अकेले को सजा देकर क्या सुधार कर लोगे। इस दुनियां में असल बचा ही क्या है सब कुछ नकली ही रह गया है। जिस हवाई जहाज से नटवर लाल को भेजने का प्रबंन्ध किया गया उसके उड़ने से पहले ही यह मालूम हुआ कि इस जहाज का पायलट भी नकली है। पुलिस की अपराध षाखा ने बताया कि इस पायलट ने जाली दस्तावेज जमां करवा कर नकली पायलट का लाइसेंस हासिल किया था।
जौली अंकल का तो यही मानना है कि नकली वस्तुओं का व्यापार करने वाले चाहे किसी भी भेस में हो एक सभी एक ही थैली के चट्टे के बट्टे है। आज यदि हमें पूरी कीमत देकर भी हर चीज नकली मिल रही है तो उसका एक ही कारण हेै कि हम लोग खुलकर ऐसे दोशियों के खिलाफ आवाज नही उठाते। नकली वस्त्ुओ का कारोबार करने वालों के मन में मानवता के प्रति कोई दया नही होती इसलिये ऐसे लोगो को मानव कहना ही गलत है। हर नकली चीज को असली बना कर अमीर बनने वालो को यह नही भूलना चाहिये कि अमीर वो नही जिसके पास बहुत धन है या जिसने बहुत धन जमा किया हो। असली अमीर तो वो है जिसे और अधिक धन की जरूरत नही रहती। जिसे हर समय धन की भूख रहती हो वो तो सदा निर्धन ही कहलाता है। छल, कपट, बेईमानी और धोखा देकर चाहे कोई लाख कोषिष कर ले लेकिन असली सदा असली और नकली हमेषा नकली ही होता है।
’’ जौली अंकल ’’
जैसे ही हवाई जहाज ने दिल्ली के एयरपोर्ट की धरती को छुआ तो नटवर लाल ने चैन की सांस लेते हुए कहा कि भगवान तेरा लाख-लाख षुक्र है। अभी नटवर लाल की यह दुआ पूरी भी नही हुई थी कि पुलिस वालों ने उसे चारों और से घेर लिया। पुलिस अफसरों ने जैसे ही उसका सामान चैक किया गया उसमें से लाखों रूप्ये के नकली नोट बरामद हो गये। अगले ही पल उसे सरकारी मेहमान बना कर पुलिस की गाड़ी से जज साहब के सामने पेष कर दिया गया। नटवर लाल को गौर से देखते हुए जज साहब ने पूछा कि तुमने यह नकली नोट क्यूं बनाए? नटवर लाल ने हाथ जोड़ कर प्रार्थना करते हुए कहा जज साहब मैने तो इस बार सारे नोट बिल्कुल असली बनाने की पूरी कोषिष की थी, लेकिन न जानें पुलिस वालों को यह किस कमी के कारण नकली लग रहे है। इसी दौरान जज साहब ने अपनी याददाष्त पर थोड़ा जोर डाला तो उन्हें याद आया कि नटवर लाल तो पहले भी नकली नोट बनाने के जुर्म में सजा काट चुका है। इससे पहले कि जज साहब कुछ और कहते नटवर लाल ने कहा जी हजूर उस समय तो मेरे से ही नकली नोट बनाने में गलती हो गई थी। मैने अपनी बीवी की जिद्द को मानते हुए बापू की फोटो लगाने की बजाए अपने बेटे की फोटो लगा दी थी। इससे पहले कि जज साहब नटवर लाल को सजा सुना कर जेल भेजने का आदेष देते, नटवर लाल ने सीने में बहुत जोर से दर्द होने की नौंटकी षुरू कर दी। जज साहब को भी मजबूरन पुलिस वालों को कह कर इसे फौरन अस्पताल में भर्ती करने का आदेष सुनाना पड़ा।
अस्पताल के बिस्तर पर नटवर लाल को लिटाते हुए डॉक्टर साहब ने उससे पूछा कि कहां-कहां दर्द हो रहा है? अब असल में कोई तकलीफ तो थी ही नही तो नटवर लाल डाक्टर साहब को क्या बताता कि दर्द कहां हो रहा है? बात को और अधिक उलझाने के मकसद से नटवर लाल ने कहा कि डॉक्टर साहब एक जगह दर्द हो तो आपको बताऊ। इसी के साथ नटवर लाल ने चंद नोट डॉक्टर साहब की हथेली पर रखते हुए कहा कि आप कुछ देर के लिये पुलिस वालों के सामने अंधे बन जाओ, बाकी सब मैं खुद ही संभाल लूंगा। डॉक्टर साहब ने नटवर लाल को कुछ भी उल्टा सीधा कहने की बजाए इतनी राय जरूर दे डाली कि यदि वास्तव में कोई तकलीफ हो रही है तो किसी अच्छे से प्राईवेट अस्पताल में इलाज करवाना। हमारे यहां तो दवाईयों से लेकर डॉक्टर तक तुम किसी पर भी भरोसा नही कर सकते कि कौन असली है और कौन नकली। तुम यहां रह कर कुछ भी करो बस इस बात का ध्यान रहे कि मेरी नौकरी पर उंगली नही उठनी चाहिए। डॉक्टर के चेहरे के हाव-भाव को देखते ही नटवर लाल समझ गया कि यह भी कुछ न कुछ गौरख धंधे की बदोलत ही डॉक्टर बना बैठा है, नही तो यह आदमी इतनी जल्दी चंद रूप्यों के लिए अपना ईमान नही बेचता।
अस्पताल के बिस्तर पर लेटे-लेटे नटवर लाल ने सामने पड़ी अखबार उठाई तो उसमें कई चौकानें वाली खबरें छपी हुई थी। कुछ दगाबाजों ने तो नकली इन्कमटैक्स अफसर बन कर एक गहनों की दुकान को ही लूट लिया था। कुछ ढ़ोंगी कलाकारों के बारे में छपा था कि वो फिल्मों में नकली ढाड़ी मूछ लगा कर दुनियां को धोखा दे रहेे है। आजकल तो यहां तक भी देखने में आ रहा है कि कुछ लोग अपनी षक्ल और बालो को रंग-रूप बदल कर खुद को डुप्लीकेट हीरो हीरोईन की जगह असली की तरह ही पेष करने लगे है। नटवर लाल ने अस्पताल में आते जाते मरीजों को बड़ी ही हैरानगी से देखते हुए सोचा कि मैं तो सिर्फ नकली नोटो का कारोबार करता हॅू परंतु इस अस्पताल में तो कोई नकली टांग लगा कर घूम रहा है, कोई नकली आंख लगवाने आया हुआ है। नकली दांत लगवाने वालों की लाईन तो न जाने कहां तक जा रही थी। जैसे ही नटवर लाल के नकली नोटो के साथ पकड़े जाने की खबर मीडिया में आई तो जज साहब को उसे वहां भेजने का आदेष देना पड़ा जहां से नटवर लाल नकली नोट लेकर आया था।
कहचरी से निकलते हुए नटवर लाल ने हंसते हुए जज साहब से कहा कि बचपन से ही सुनते आये है कि घोड़ी चाहे लकड़ी की हो घोड़ी तो घोड़ी ही होती है। इसी तरह डिग्री असली हो या नकली डिग्री तो डिग्री ही होती है। हमारे मंत्री असली तो क्या नकली डिग्री के बिना ही देष की सरकार को बरसों से चला रहे है, उन्हें तो कोई कुछ नही कहता। हर कोई जानता है कि इन लोगो की बातो में सिर्फ दिखावा और प्यार में छलावा होता है। ऐसे लोग जब कभी आसूं भी बहाते है तो वो भी नकली खारे पानी के होते है। आप मुझे अकेले को सजा देकर क्या सुधार कर लोगे। इस दुनियां में असल बचा ही क्या है सब कुछ नकली ही रह गया है। जिस हवाई जहाज से नटवर लाल को भेजने का प्रबंन्ध किया गया उसके उड़ने से पहले ही यह मालूम हुआ कि इस जहाज का पायलट भी नकली है। पुलिस की अपराध षाखा ने बताया कि इस पायलट ने जाली दस्तावेज जमां करवा कर नकली पायलट का लाइसेंस हासिल किया था।
जौली अंकल का तो यही मानना है कि नकली वस्तुओं का व्यापार करने वाले चाहे किसी भी भेस में हो एक सभी एक ही थैली के चट्टे के बट्टे है। आज यदि हमें पूरी कीमत देकर भी हर चीज नकली मिल रही है तो उसका एक ही कारण हेै कि हम लोग खुलकर ऐसे दोशियों के खिलाफ आवाज नही उठाते। नकली वस्त्ुओ का कारोबार करने वालों के मन में मानवता के प्रति कोई दया नही होती इसलिये ऐसे लोगो को मानव कहना ही गलत है। हर नकली चीज को असली बना कर अमीर बनने वालो को यह नही भूलना चाहिये कि अमीर वो नही जिसके पास बहुत धन है या जिसने बहुत धन जमा किया हो। असली अमीर तो वो है जिसे और अधिक धन की जरूरत नही रहती। जिसे हर समय धन की भूख रहती हो वो तो सदा निर्धन ही कहलाता है। छल, कपट, बेईमानी और धोखा देकर चाहे कोई लाख कोषिष कर ले लेकिन असली सदा असली और नकली हमेषा नकली ही होता है।
’’ जौली अंकल ’’
असली नकली - जोली अंकल का रोचक लेख
’’ असली नकली ’’
जैसे ही हवाई जहाज ने दिल्ली के एयरपोर्ट की धरती को छुआ तो नटवर लाल ने चैन की सांस लेते हुए कहा कि भगवान तेरा लाख-लाख षुक्र है। अभी नटवर लाल की यह दुआ पूरी भी नही हुई थी कि पुलिस वालों ने उसे चारों और से घेर लिया। पुलिस अफसरों ने जैसे ही उसका सामान चैक किया गया उसमें से लाखों रूप्ये के नकली नोट बरामद हो गये। अगले ही पल उसे सरकारी मेहमान बना कर पुलिस की गाड़ी से जज साहब के सामने पेष कर दिया गया। नटवर लाल को गौर से देखते हुए जज साहब ने पूछा कि तुमने यह नकली नोट क्यूं बनाए? नटवर लाल ने हाथ जोड़ कर प्रार्थना करते हुए कहा जज साहब मैने तो इस बार सारे नोट बिल्कुल असली बनाने की पूरी कोषिष की थी, लेकिन न जानें पुलिस वालों को यह किस कमी के कारण नकली लग रहे है। इसी दौरान जज साहब ने अपनी याददाष्त पर थोड़ा जोर डाला तो उन्हें याद आया कि नटवर लाल तो पहले भी नकली नोट बनाने के जुर्म में सजा काट चुका है। इससे पहले कि जज साहब कुछ और कहते नटवर लाल ने कहा जी हजूर उस समय तो मेरे से ही नकली नोट बनाने में गलती हो गई थी। मैने अपनी बीवी की जिद्द को मानते हुए बापू की फोटो लगाने की बजाए अपने बेटे की फोटो लगा दी थी। इससे पहले कि जज साहब नटवर लाल को सजा सुना कर जेल भेजने का आदेष देते, नटवर लाल ने सीने में बहुत जोर से दर्द होने की नौंटकी षुरू कर दी। जज साहब को भी मजबूरन पुलिस वालों को कह कर इसे फौरन अस्पताल में भर्ती करने का आदेष सुनाना पड़ा।
अस्पताल के बिस्तर पर नटवर लाल को लिटाते हुए डॉक्टर साहब ने उससे पूछा कि कहां-कहां दर्द हो रहा है? अब असल में कोई तकलीफ तो थी ही नही तो नटवर लाल डाक्टर साहब को क्या बताता कि दर्द कहां हो रहा है? बात को और अधिक उलझाने के मकसद से नटवर लाल ने कहा कि डॉक्टर साहब एक जगह दर्द हो तो आपको बताऊ। इसी के साथ नटवर लाल ने चंद नोट डॉक्टर साहब की हथेली पर रखते हुए कहा कि आप कुछ देर के लिये पुलिस वालों के सामने अंधे बन जाओ, बाकी सब मैं खुद ही संभाल लूंगा। डॉक्टर साहब ने नटवर लाल को कुछ भी उल्टा सीधा कहने की बजाए इतनी राय जरूर दे डाली कि यदि वास्तव में कोई तकलीफ हो रही है तो किसी अच्छे से प्राईवेट अस्पताल में इलाज करवाना। हमारे यहां तो दवाईयों से लेकर डॉक्टर तक तुम किसी पर भी भरोसा नही कर सकते कि कौन असली है और कौन नकली। तुम यहां रह कर कुछ भी करो बस इस बात का ध्यान रहे कि मेरी नौकरी पर उंगली नही उठनी चाहिए। डॉक्टर के चेहरे के हाव-भाव को देखते ही नटवर लाल समझ गया कि यह भी कुछ न कुछ गौरख धंधे की बदोलत ही डॉक्टर बना बैठा है, नही तो यह आदमी इतनी जल्दी चंद रूप्यों के लिए अपना ईमान नही बेचता।
अस्पताल के बिस्तर पर लेटे-लेटे नटवर लाल ने सामने पड़ी अखबार उठाई तो उसमें कई चौकानें वाली खबरें छपी हुई थी। कुछ दगाबाजों ने तो नकली इन्कमटैक्स अफसर बन कर एक गहनों की दुकान को ही लूट लिया था। कुछ ढ़ोंगी कलाकारों के बारे में छपा था कि वो फिल्मों में नकली ढाड़ी मूछ लगा कर दुनियां को धोखा दे रहेे है। आजकल तो यहां तक भी देखने में आ रहा है कि कुछ लोग अपनी षक्ल और बालो को रंग-रूप बदल कर खुद को डुप्लीकेट हीरो हीरोईन की जगह असली की तरह ही पेष करने लगे है। नटवर लाल ने अस्पताल में आते जाते मरीजों को बड़ी ही हैरानगी से देखते हुए सोचा कि मैं तो सिर्फ नकली नोटो का कारोबार करता हॅू परंतु इस अस्पताल में तो कोई नकली टांग लगा कर घूम रहा है, कोई नकली आंख लगवाने आया हुआ है। नकली दांत लगवाने वालों की लाईन तो न जाने कहां तक जा रही थी। जैसे ही नटवर लाल के नकली नोटो के साथ पकड़े जाने की खबर मीडिया में आई तो जज साहब को उसे वहां भेजने का आदेष देना पड़ा जहां से नटवर लाल नकली नोट लेकर आया था।
कहचरी से निकलते हुए नटवर लाल ने हंसते हुए जज साहब से कहा कि बचपन से ही सुनते आये है कि घोड़ी चाहे लकड़ी की हो घोड़ी तो घोड़ी ही होती है। इसी तरह डिग्री असली हो या नकली डिग्री तो डिग्री ही होती है। हमारे मंत्री असली तो क्या नकली डिग्री के बिना ही देष की सरकार को बरसों से चला रहे है, उन्हें तो कोई कुछ नही कहता। हर कोई जानता है कि इन लोगो की बातो में सिर्फ दिखावा और प्यार में छलावा होता है। ऐसे लोग जब कभी आसूं भी बहाते है तो वो भी नकली खारे पानी के होते है। आप मुझे अकेले को सजा देकर क्या सुधार कर लोगे। इस दुनियां में असल बचा ही क्या है सब कुछ नकली ही रह गया है। जिस हवाई जहाज से नटवर लाल को भेजने का प्रबंन्ध किया गया उसके उड़ने से पहले ही यह मालूम हुआ कि इस जहाज का पायलट भी नकली है। पुलिस की अपराध षाखा ने बताया कि इस पायलट ने जाली दस्तावेज जमां करवा कर नकली पायलट का लाइसेंस हासिल किया था।
जौली अंकल का तो यही मानना है कि नकली वस्तुओं का व्यापार करने वाले चाहे किसी भी भेस में हो एक सभी एक ही थैली के चट्टे के बट्टे है। आज यदि हमें पूरी कीमत देकर भी हर चीज नकली मिल रही है तो उसका एक ही कारण हेै कि हम लोग खुलकर ऐसे दोशियों के खिलाफ आवाज नही उठाते। नकली वस्त्ुओ का कारोबार करने वालों के मन में मानवता के प्रति कोई दया नही होती इसलिये ऐसे लोगो को मानव कहना ही गलत है। हर नकली चीज को असली बना कर अमीर बनने वालो को यह नही भूलना चाहिये कि अमीर वो नही जिसके पास बहुत धन है या जिसने बहुत धन जमा किया हो। असली अमीर तो वो है जिसे और अधिक धन की जरूरत नही रहती। जिसे हर समय धन की भूख रहती हो वो तो सदा निर्धन ही कहलाता है। छल, कपट, बेईमानी और धोखा देकर चाहे कोई लाख कोषिष कर ले लेकिन असली सदा असली और नकली हमेषा नकली ही होता है।
’’ जौली अंकल ’’
जैसे ही हवाई जहाज ने दिल्ली के एयरपोर्ट की धरती को छुआ तो नटवर लाल ने चैन की सांस लेते हुए कहा कि भगवान तेरा लाख-लाख षुक्र है। अभी नटवर लाल की यह दुआ पूरी भी नही हुई थी कि पुलिस वालों ने उसे चारों और से घेर लिया। पुलिस अफसरों ने जैसे ही उसका सामान चैक किया गया उसमें से लाखों रूप्ये के नकली नोट बरामद हो गये। अगले ही पल उसे सरकारी मेहमान बना कर पुलिस की गाड़ी से जज साहब के सामने पेष कर दिया गया। नटवर लाल को गौर से देखते हुए जज साहब ने पूछा कि तुमने यह नकली नोट क्यूं बनाए? नटवर लाल ने हाथ जोड़ कर प्रार्थना करते हुए कहा जज साहब मैने तो इस बार सारे नोट बिल्कुल असली बनाने की पूरी कोषिष की थी, लेकिन न जानें पुलिस वालों को यह किस कमी के कारण नकली लग रहे है। इसी दौरान जज साहब ने अपनी याददाष्त पर थोड़ा जोर डाला तो उन्हें याद आया कि नटवर लाल तो पहले भी नकली नोट बनाने के जुर्म में सजा काट चुका है। इससे पहले कि जज साहब कुछ और कहते नटवर लाल ने कहा जी हजूर उस समय तो मेरे से ही नकली नोट बनाने में गलती हो गई थी। मैने अपनी बीवी की जिद्द को मानते हुए बापू की फोटो लगाने की बजाए अपने बेटे की फोटो लगा दी थी। इससे पहले कि जज साहब नटवर लाल को सजा सुना कर जेल भेजने का आदेष देते, नटवर लाल ने सीने में बहुत जोर से दर्द होने की नौंटकी षुरू कर दी। जज साहब को भी मजबूरन पुलिस वालों को कह कर इसे फौरन अस्पताल में भर्ती करने का आदेष सुनाना पड़ा।
अस्पताल के बिस्तर पर नटवर लाल को लिटाते हुए डॉक्टर साहब ने उससे पूछा कि कहां-कहां दर्द हो रहा है? अब असल में कोई तकलीफ तो थी ही नही तो नटवर लाल डाक्टर साहब को क्या बताता कि दर्द कहां हो रहा है? बात को और अधिक उलझाने के मकसद से नटवर लाल ने कहा कि डॉक्टर साहब एक जगह दर्द हो तो आपको बताऊ। इसी के साथ नटवर लाल ने चंद नोट डॉक्टर साहब की हथेली पर रखते हुए कहा कि आप कुछ देर के लिये पुलिस वालों के सामने अंधे बन जाओ, बाकी सब मैं खुद ही संभाल लूंगा। डॉक्टर साहब ने नटवर लाल को कुछ भी उल्टा सीधा कहने की बजाए इतनी राय जरूर दे डाली कि यदि वास्तव में कोई तकलीफ हो रही है तो किसी अच्छे से प्राईवेट अस्पताल में इलाज करवाना। हमारे यहां तो दवाईयों से लेकर डॉक्टर तक तुम किसी पर भी भरोसा नही कर सकते कि कौन असली है और कौन नकली। तुम यहां रह कर कुछ भी करो बस इस बात का ध्यान रहे कि मेरी नौकरी पर उंगली नही उठनी चाहिए। डॉक्टर के चेहरे के हाव-भाव को देखते ही नटवर लाल समझ गया कि यह भी कुछ न कुछ गौरख धंधे की बदोलत ही डॉक्टर बना बैठा है, नही तो यह आदमी इतनी जल्दी चंद रूप्यों के लिए अपना ईमान नही बेचता।
अस्पताल के बिस्तर पर लेटे-लेटे नटवर लाल ने सामने पड़ी अखबार उठाई तो उसमें कई चौकानें वाली खबरें छपी हुई थी। कुछ दगाबाजों ने तो नकली इन्कमटैक्स अफसर बन कर एक गहनों की दुकान को ही लूट लिया था। कुछ ढ़ोंगी कलाकारों के बारे में छपा था कि वो फिल्मों में नकली ढाड़ी मूछ लगा कर दुनियां को धोखा दे रहेे है। आजकल तो यहां तक भी देखने में आ रहा है कि कुछ लोग अपनी षक्ल और बालो को रंग-रूप बदल कर खुद को डुप्लीकेट हीरो हीरोईन की जगह असली की तरह ही पेष करने लगे है। नटवर लाल ने अस्पताल में आते जाते मरीजों को बड़ी ही हैरानगी से देखते हुए सोचा कि मैं तो सिर्फ नकली नोटो का कारोबार करता हॅू परंतु इस अस्पताल में तो कोई नकली टांग लगा कर घूम रहा है, कोई नकली आंख लगवाने आया हुआ है। नकली दांत लगवाने वालों की लाईन तो न जाने कहां तक जा रही थी। जैसे ही नटवर लाल के नकली नोटो के साथ पकड़े जाने की खबर मीडिया में आई तो जज साहब को उसे वहां भेजने का आदेष देना पड़ा जहां से नटवर लाल नकली नोट लेकर आया था।
कहचरी से निकलते हुए नटवर लाल ने हंसते हुए जज साहब से कहा कि बचपन से ही सुनते आये है कि घोड़ी चाहे लकड़ी की हो घोड़ी तो घोड़ी ही होती है। इसी तरह डिग्री असली हो या नकली डिग्री तो डिग्री ही होती है। हमारे मंत्री असली तो क्या नकली डिग्री के बिना ही देष की सरकार को बरसों से चला रहे है, उन्हें तो कोई कुछ नही कहता। हर कोई जानता है कि इन लोगो की बातो में सिर्फ दिखावा और प्यार में छलावा होता है। ऐसे लोग जब कभी आसूं भी बहाते है तो वो भी नकली खारे पानी के होते है। आप मुझे अकेले को सजा देकर क्या सुधार कर लोगे। इस दुनियां में असल बचा ही क्या है सब कुछ नकली ही रह गया है। जिस हवाई जहाज से नटवर लाल को भेजने का प्रबंन्ध किया गया उसके उड़ने से पहले ही यह मालूम हुआ कि इस जहाज का पायलट भी नकली है। पुलिस की अपराध षाखा ने बताया कि इस पायलट ने जाली दस्तावेज जमां करवा कर नकली पायलट का लाइसेंस हासिल किया था।
जौली अंकल का तो यही मानना है कि नकली वस्तुओं का व्यापार करने वाले चाहे किसी भी भेस में हो एक सभी एक ही थैली के चट्टे के बट्टे है। आज यदि हमें पूरी कीमत देकर भी हर चीज नकली मिल रही है तो उसका एक ही कारण हेै कि हम लोग खुलकर ऐसे दोशियों के खिलाफ आवाज नही उठाते। नकली वस्त्ुओ का कारोबार करने वालों के मन में मानवता के प्रति कोई दया नही होती इसलिये ऐसे लोगो को मानव कहना ही गलत है। हर नकली चीज को असली बना कर अमीर बनने वालो को यह नही भूलना चाहिये कि अमीर वो नही जिसके पास बहुत धन है या जिसने बहुत धन जमा किया हो। असली अमीर तो वो है जिसे और अधिक धन की जरूरत नही रहती। जिसे हर समय धन की भूख रहती हो वो तो सदा निर्धन ही कहलाता है। छल, कपट, बेईमानी और धोखा देकर चाहे कोई लाख कोषिष कर ले लेकिन असली सदा असली और नकली हमेषा नकली ही होता है।
’’ जौली अंकल ’’
Saturday, July 2, 2011
सहनशीलता - जोली अंकल का नया लेख
’’ सहनषीलता ’’
जैसे ही बंसन्ती के बेटे ने घर आकर अपनी मां को बताया कि मिश्रा जी के बेटे ने उसको गालियां निकाली है वो झट से षिकायत करने उनके घर पहुंच गई। मिश्रा जी ने बंसन्ती से पूछा कि थोड़ा षांति से बताओ कि मेरे बेटे ने ऐसी कौन सी गाली दे दी जो तुम इतना भड़क रही हो? बंसन्ती ने कहा कि वो तो मैं आपको नही बता सकती। मिश्रा जी ने फिर से पूछा कि क्या बहुत गंदी-गंदी गालियां दी है तुम्हारे बेटे को? बंसन्ती ने तपाक् से कहा कि मिश्रा जी आप दिमाग तो ठीक है, क्या आप इतना भी नही जानते कि गालियां हमेषा गंदी ही होती है। आपने क्या कभी अच्छी गालियां भी सुनी है? बंसन्ती और उसका बेटा जिस तरह से मिश्रा जी को उल्टे सीधे जवाब दे रहे थे उनके दिलों-दिमाग का सतंुलन भी बिगड़ने लगा था।
सारी उम्र सहनषीलता का पाठ पढ़ने और पढ़ाने वाले मिश्रा जी को कुछ समझ नही आ रहा था कि इस औरत को कैसे समझाया जाये कि जब तक सभी तथ्यों को अच्छे से न जान लिया जाये उस समय तक किसी से झगड़ा करना तो दूर उन पर कभी भरोसा भी नही करना चाहिए। इतनी छोटी सी बात पर बंसन्ती ने इतना झगड़ा कर दिया कि मिश्रा जी का दिल कर रहा था कि इन लोगो को धक्के मार कर अपने घर से निकाल दे। लेकिन फिर यह सोच कर सहम गये कि यदि मैने भी इन्हें कुछ उल्टा सीधा कह दिया तो बंसन्ती का पति आ जायेगा। वो तो मेरे से सेहत में बहुत तगड़ा है और उसके आने से परेषानी और भी बढ़ जायेगी। इसी के साथ मिश्रा जी मन ही मन यह सोचने लगे कि हर आदमी की सोच उसकी बुद्वि अनुसार अलग-अलग होती है। वैसे भी बच्चोे की इस आधी अधूरी बात को सुन कर आपे से बाहर होने को मैं तो क्या कोई भी व्यक्ति इसे समझदारी नही मानेगा। ऐसे महौल में किसी तरह से खुद को षांत रखते हुए हमें अपनी सहनषक्ति की परीक्षा लेनी चाहिए। इस विचार के मन में आते ही मिश्रा जी ने बात को बदलते हुए बंसन्ती से कहा कि आप दुनियां की दूसरी सबसे खूबसूरत औरत हो? बंसन्ती तिलमिलाते हुए बोली वो तो ठीक है मुझे पहले यह बताओ कि दुनियां की पहली खूबसूरत औरत कौन है? मिश्रा जी ने हंसते हुए कहा कि पहली खूबसूरत औरत भी तुम ही हो लेकिन वो सिर्फ उस समय जब तुम हंसती और मुस्कराहती हो।
मिश्रा जी ने बंसन्ती को थोड़ा और समझाने का प्रयास करते हुए कहा कि इर इंसान को हमेषा यह मान कर चलना चलिए कि आप सारी दुनियां को अपनी मर्जी मुताबिक नही चला सकते और न ही आपकी हर इच्छा पूरी हो सकती हैं। जिस प्रकार हम यह सोचते है कि हर कोई हमारे कुछ भी बोले बिना सभी कार्य हमारी इच्छानुसार कर दे। इसी तरह हमें यह भी यह सोचना चाहिए कि हम भी वोहि सभी काम करे जो दूसरे लोग बिना बोले हम से चाहते है। जिस तरह पानी हर जगह अपना स्तर ढूंढ लेता है, हमें भी सहनषीलता अपनाते हुए खुद को भी अपने स्तर व गरिमा के अनुसार दूसरों से मधुर संबंध बनाए रखने चाहिए। सहनषीलता का महत्व इसी बात से समझा जा सकता है कि नदियां जब तक षांत भाव से अपने किनारों के बीच बहती रहती है तो दुनियां उनकी पूजा करती है। परंतु जब कोई नदी अपने किनारों को तोड़ कर बाढ़ का रूप धारण कर लेती है तो वही नदियां हत्यारी बन जाती है।
सहनषीलता की खूबियों को यदि गौर से देखे तो यही समझ आता है कि सहनषीलता से जहां हमें जीवन में हर चीज बड़ी सुगमता से मिल जाती है वहीं यह हमारे व्यक्तित्व को निखारती है। दूसरों से हर समय अपेक्षा रखने की बजाए खुद अपने आप से अधिक उम्मीद करनी चाहिए क्योंकि दूसरों से जब हमारी उम्मीद पूरी नही होती तो हमारे मन को बहुत दुख होता है। जबकि खुद से उम्मीद करने पर हमें सहनषीलता की प्रेरणा मिलती है। सहनषीलता ही एक मात्र ऐसा अस्त्र है जिससे आप ताकतवर इंसान को भी षिकस्त देने में कामयाब हो सकते है।
मिश्रा जी की बात खत्म होने के साथ ही बंसन्ती ने कहा कि आज तक हर कोई यह तो जरूर समझाता था कि यदि षांति को पाना है तो धैर्य का समझो, धीरज को समझो। परंतु इतने सब्र से किसी ने भी सहनषीलता को समझाने की हिम्मत नही दिखाई। षायद इसीलिये जिस चीज को समझने की चाह बरसों से मन में थी उसे भी ठीक से न तो कोई समझा पाया न ही मैं समझ पाई। जो बात कई किताबी कीड़े भी ठीक से नही कह पाते आपने तो वो भी सादगी से कहते हुए मेरे मन से षंका के सारे कांटे निकाल दिये। अब जो कुछ मेरी तरफ से कहा-सुनी हुई हो उसके लिये नम्रतापूर्वक आप से क्षमा मांगती हॅू। मिश्रा जी ने बंसन्ती को इस बात का तर्क देते हुए कहा कि सिर्फ कोरी बाते करने से कुछ नही होता, किसी को कुछ भी समझाने से पहले उसे जीवन में अपनाना पड़ता है तभी तो आप किसी दूसरे की दिषा को बदल सकते हैे।
मिश्रा जी द्वारा सहनषीलता के गुणो के ब्खान से प्रभावित होकर जौली अंकल को यह स्वीकार करने में कोई संदेह नही है कि जैसे चमक के बिना हीरे मोतियों की कोई कद्र नही होती, ठीक इसी प्रकार सदाचार और सहनषीलता के बिना मनुश्य किसी काम का नही होता। सहनषीलता ही हमारे मन को षीतलता देने के साथ संतुश्टता एवं खुषी देती है। सहनषीलता के इन्हीं गुणों से ही हमारा स्वभाव सरल बनने के साथ दूसरों को स्वतः हमारी और आकर्शित करते है। अंत में तो इतना ही कहा जा सकता है कि जैसे क्रिकेट व्लर्ड कप जीतने से घर-घर में जुनून व ऊर्जा पैदा हुई है यदि ऐसे ही सहनषीलता जैसे बहुमूल्य और दुर्लभ गुण को हर देषवासी अपना ले तो हमारे घर संसार से लेकर सारा देष सुंदर और खूबसूरत बन जायेगा।
’’जौली अंकल’’
जैसे ही बंसन्ती के बेटे ने घर आकर अपनी मां को बताया कि मिश्रा जी के बेटे ने उसको गालियां निकाली है वो झट से षिकायत करने उनके घर पहुंच गई। मिश्रा जी ने बंसन्ती से पूछा कि थोड़ा षांति से बताओ कि मेरे बेटे ने ऐसी कौन सी गाली दे दी जो तुम इतना भड़क रही हो? बंसन्ती ने कहा कि वो तो मैं आपको नही बता सकती। मिश्रा जी ने फिर से पूछा कि क्या बहुत गंदी-गंदी गालियां दी है तुम्हारे बेटे को? बंसन्ती ने तपाक् से कहा कि मिश्रा जी आप दिमाग तो ठीक है, क्या आप इतना भी नही जानते कि गालियां हमेषा गंदी ही होती है। आपने क्या कभी अच्छी गालियां भी सुनी है? बंसन्ती और उसका बेटा जिस तरह से मिश्रा जी को उल्टे सीधे जवाब दे रहे थे उनके दिलों-दिमाग का सतंुलन भी बिगड़ने लगा था।
सारी उम्र सहनषीलता का पाठ पढ़ने और पढ़ाने वाले मिश्रा जी को कुछ समझ नही आ रहा था कि इस औरत को कैसे समझाया जाये कि जब तक सभी तथ्यों को अच्छे से न जान लिया जाये उस समय तक किसी से झगड़ा करना तो दूर उन पर कभी भरोसा भी नही करना चाहिए। इतनी छोटी सी बात पर बंसन्ती ने इतना झगड़ा कर दिया कि मिश्रा जी का दिल कर रहा था कि इन लोगो को धक्के मार कर अपने घर से निकाल दे। लेकिन फिर यह सोच कर सहम गये कि यदि मैने भी इन्हें कुछ उल्टा सीधा कह दिया तो बंसन्ती का पति आ जायेगा। वो तो मेरे से सेहत में बहुत तगड़ा है और उसके आने से परेषानी और भी बढ़ जायेगी। इसी के साथ मिश्रा जी मन ही मन यह सोचने लगे कि हर आदमी की सोच उसकी बुद्वि अनुसार अलग-अलग होती है। वैसे भी बच्चोे की इस आधी अधूरी बात को सुन कर आपे से बाहर होने को मैं तो क्या कोई भी व्यक्ति इसे समझदारी नही मानेगा। ऐसे महौल में किसी तरह से खुद को षांत रखते हुए हमें अपनी सहनषक्ति की परीक्षा लेनी चाहिए। इस विचार के मन में आते ही मिश्रा जी ने बात को बदलते हुए बंसन्ती से कहा कि आप दुनियां की दूसरी सबसे खूबसूरत औरत हो? बंसन्ती तिलमिलाते हुए बोली वो तो ठीक है मुझे पहले यह बताओ कि दुनियां की पहली खूबसूरत औरत कौन है? मिश्रा जी ने हंसते हुए कहा कि पहली खूबसूरत औरत भी तुम ही हो लेकिन वो सिर्फ उस समय जब तुम हंसती और मुस्कराहती हो।
मिश्रा जी ने बंसन्ती को थोड़ा और समझाने का प्रयास करते हुए कहा कि इर इंसान को हमेषा यह मान कर चलना चलिए कि आप सारी दुनियां को अपनी मर्जी मुताबिक नही चला सकते और न ही आपकी हर इच्छा पूरी हो सकती हैं। जिस प्रकार हम यह सोचते है कि हर कोई हमारे कुछ भी बोले बिना सभी कार्य हमारी इच्छानुसार कर दे। इसी तरह हमें यह भी यह सोचना चाहिए कि हम भी वोहि सभी काम करे जो दूसरे लोग बिना बोले हम से चाहते है। जिस तरह पानी हर जगह अपना स्तर ढूंढ लेता है, हमें भी सहनषीलता अपनाते हुए खुद को भी अपने स्तर व गरिमा के अनुसार दूसरों से मधुर संबंध बनाए रखने चाहिए। सहनषीलता का महत्व इसी बात से समझा जा सकता है कि नदियां जब तक षांत भाव से अपने किनारों के बीच बहती रहती है तो दुनियां उनकी पूजा करती है। परंतु जब कोई नदी अपने किनारों को तोड़ कर बाढ़ का रूप धारण कर लेती है तो वही नदियां हत्यारी बन जाती है।
सहनषीलता की खूबियों को यदि गौर से देखे तो यही समझ आता है कि सहनषीलता से जहां हमें जीवन में हर चीज बड़ी सुगमता से मिल जाती है वहीं यह हमारे व्यक्तित्व को निखारती है। दूसरों से हर समय अपेक्षा रखने की बजाए खुद अपने आप से अधिक उम्मीद करनी चाहिए क्योंकि दूसरों से जब हमारी उम्मीद पूरी नही होती तो हमारे मन को बहुत दुख होता है। जबकि खुद से उम्मीद करने पर हमें सहनषीलता की प्रेरणा मिलती है। सहनषीलता ही एक मात्र ऐसा अस्त्र है जिससे आप ताकतवर इंसान को भी षिकस्त देने में कामयाब हो सकते है।
मिश्रा जी की बात खत्म होने के साथ ही बंसन्ती ने कहा कि आज तक हर कोई यह तो जरूर समझाता था कि यदि षांति को पाना है तो धैर्य का समझो, धीरज को समझो। परंतु इतने सब्र से किसी ने भी सहनषीलता को समझाने की हिम्मत नही दिखाई। षायद इसीलिये जिस चीज को समझने की चाह बरसों से मन में थी उसे भी ठीक से न तो कोई समझा पाया न ही मैं समझ पाई। जो बात कई किताबी कीड़े भी ठीक से नही कह पाते आपने तो वो भी सादगी से कहते हुए मेरे मन से षंका के सारे कांटे निकाल दिये। अब जो कुछ मेरी तरफ से कहा-सुनी हुई हो उसके लिये नम्रतापूर्वक आप से क्षमा मांगती हॅू। मिश्रा जी ने बंसन्ती को इस बात का तर्क देते हुए कहा कि सिर्फ कोरी बाते करने से कुछ नही होता, किसी को कुछ भी समझाने से पहले उसे जीवन में अपनाना पड़ता है तभी तो आप किसी दूसरे की दिषा को बदल सकते हैे।
मिश्रा जी द्वारा सहनषीलता के गुणो के ब्खान से प्रभावित होकर जौली अंकल को यह स्वीकार करने में कोई संदेह नही है कि जैसे चमक के बिना हीरे मोतियों की कोई कद्र नही होती, ठीक इसी प्रकार सदाचार और सहनषीलता के बिना मनुश्य किसी काम का नही होता। सहनषीलता ही हमारे मन को षीतलता देने के साथ संतुश्टता एवं खुषी देती है। सहनषीलता के इन्हीं गुणों से ही हमारा स्वभाव सरल बनने के साथ दूसरों को स्वतः हमारी और आकर्शित करते है। अंत में तो इतना ही कहा जा सकता है कि जैसे क्रिकेट व्लर्ड कप जीतने से घर-घर में जुनून व ऊर्जा पैदा हुई है यदि ऐसे ही सहनषीलता जैसे बहुमूल्य और दुर्लभ गुण को हर देषवासी अपना ले तो हमारे घर संसार से लेकर सारा देष सुंदर और खूबसूरत बन जायेगा।
’’जौली अंकल’’
Tuesday, June 7, 2011
बेवकूफ - जोली अंकल का एक नया रोचक लेख
’’ बेवकूफ ’’
मिश्रा जी की पत्नी ने बाजार में खरीददारी करते हुए उनसे पूछ लिया कि ऐ जी, यह सामने गहनों वाली दुकान पर लगे हुए बोर्ड पर क्या लिखा है, कुछ ठीक से समझ नही आ रहा। मिश्रा जी ने कहा कि बिल्कुल साफ-साफ तो लिखा है कि कही दूसरी जगह पर धोखा खाने या बेवकूफ बनने से पहले हमें एक मौका जरूर दे। मिश्रा जी ने नाराज़ होते हुए कहा कि मुझे लगता है कि भगवान ने सारी बेवकूफियांे करने का ठेका तुम मां-बेटे को ही दे कर भेजा है। इतना सुनते ही पास खड़े मिश्रा जी के बेटे ने कहा कि घर में चाहे कोई भी सदस्य कुछ गलती करें आप मुझे साथ में बेवकूफ क्यूं बना देते हो?
मिश्रा जी ने कहा कि तुम्हें बेवकूफ न कहूं तो क्या कहू? तुमसे बड़ा बेवकूफ तो इस सारे जहां में कोई हो ही नही सकता। अपना पेट काट-काट कर और कितने पापड़ बेलने के बाद मुष्किल से तुम्हारी बी,ए, की पढ़ाई पूरी करवाई थी कि तुम मेरे कारोबार में कुछ सहायता करोगे। परंतु अब दुकान पर मेरे काम मे कुछ मदद करने की बजाए सारा दिन गोबर गणेष की तरह घर में बैठ कर न जाने कौन से हवाई किले बनाते रहते हो। तुम्हारे साथ तो कोई कितना ही सिर पीट ले परंतु तुम्हारे कान पर तो जूं तक नही रेंगती। मुझे एक बात समझाओं की सारा दिन घर में घोड़े बेच कर सोने और मक्खियां मारने के सिवाए तुम करते क्या हो? मैं तो आज तक यह भी नही समझ पाया कि तुम किस चिकनी मिट्टी से बने हुए हो कि तुम्हारे ऊपर मेरी किसी बात का कोई असर क्यूं नही होता?
मिश्रा जी को और नीला-पीला होते देख उनकी पत्नी ने गाल फुलाते हुए कहा कि यहां बाजार में सबके सामने मेरे कलेजे के टुकड़े को नीचा दिखा कर यदि तुम्हारे कलेजे में ठंडक पड़ गई हो तो अब घर वापिस चले क्या? मिश्रा जी ने किसी तरह अपने गुस्से पर काबू करते हुए अपनी पत्नी से कहा कि तुम्हारे लाड़-प्यार की वजह से ही इस अक्कल के दुष्मन की अक्कल घास चरने चली गई है। मुझे तो हर समय यही डर सताता हेै कि तुम्हारा यह लाड़ला किसी दिन जरूर कोई्र उल्टा सीधा गुल खिलायेगा। मैं अभी तक तो यही सोचता था कि पढ़ाई लिखाई करके एक दिन यह काठ का उल्लू अपने पैरां पर खड़ा हो जायेगा, लेेकिन मुझे ऐसा लगने लगा है कि मेरी तो किस्मत ही फूटी हुई है। हर समय कौऐ उड़ाने वाला और ख्याली पुलाव पकाने वाला तुम्हारा यह बेटा तो बिल्कुल कुत्ते की दुम की तरह है जो कभी नही सीधी हो सकती।
मिश्रा जी की पत्नी ने अपने मन का गुबार निकालते हुए कहा कि आप एक बार अपने तेवर चढ़ाने थोड़े कम करो तो फिर देखना कि हमारा बेटा कैसे दिन-दूनी और रात चौगुनी तरक्की करता है। आप जिस लड़के के बारे में यह कह रहे हो कि वो अपने पैरों पर खड़ा नही हो सकता उसमें तो पहाड़ से टक्कर लेने की हिम्मत है। यह तो कुछ दिनों का फेर है कि उसका भाग्य उसका साथ नही दे रहा। बहुत जल्दी ऐसा समय आयेगा कि चारों और हमारे बेटे की तूती बोलेगी उस समय तो आप भी दातों तले उंगली दबाने से नही रह पाओगे। मिश्रा जी का बेटा जो अभी तक पसीने-पसीने हो रहा था अब तो उसकी भी बत्तीसी निकलने लगी थी।
अपनी पत्नी की बिना सिर पैर की बाते सुन कर मिश्रा जी का खून खोलने लगा था। बेटे की तरफदारी ने उल्टा जलती आग में घी डालने का काम अधिक कर दिया। मिश्रा जी ने पत्नी को समझाते हुए हुआ कहा कि मैने भी कोई धूप में बाल सफेद नही किए, मैं भी अपने बेटे की नब्ज को अच्छे से पहचानता हॅू। सिर्फ कागजी घोड़े दौड़ने से या तीन-पांच करने से कभी डंके नही बजा करते। ऐसे लोग तो लाख के घर को भी खाक कर देते है। तुम पता नही सब कुछ समझते हुए भी बेटे के साथ मिल कर सारा दिन क्या खिचड़ी पकाती रहती हो? क्या तुम इतना भी नही जानती कि जिन लोगो के सिर पर गहरा हाथ मारने का भूत सवार होता है उन्हें हमेषा लेने के देने पड़ते है। यह जो जोड़-तोड़ और हर समय गिरगिट की तरह रंग बदलने वाले लोग होते है उन्हें एक दिन बड़े घर की हवा भी खानी पड़ती है।
मिश्रा जी के घर की महाभारत को देखने के बाद जौली अंकल कोई परामर्ष या सलाह देने की बजाए यही मंत्र देना चाहते है कि किसी काम से अनजान होना इतने षर्म की बात नही होती जितना की उस काम को करने के लिए कतराना। इसीलिये हर मां-बाप यही चाहते है कि स्ंातान अच्छी होनी चाहिए जो कहने में हो तो वो ही लोक और परलोक में सुख दे सकती है। इस बात को तो कोई भी नही झुठला सकता कि भाग्य के सहारे बैठे रहने वाले को कभी कुछ नही मिलता और ऐसे लोगो को सारी उम्र पछताना पड़ता है इसीलिए जमाना षायद उन्हें बेवकूफ कहता है।
’’जौली अंकल’’
मिश्रा जी की पत्नी ने बाजार में खरीददारी करते हुए उनसे पूछ लिया कि ऐ जी, यह सामने गहनों वाली दुकान पर लगे हुए बोर्ड पर क्या लिखा है, कुछ ठीक से समझ नही आ रहा। मिश्रा जी ने कहा कि बिल्कुल साफ-साफ तो लिखा है कि कही दूसरी जगह पर धोखा खाने या बेवकूफ बनने से पहले हमें एक मौका जरूर दे। मिश्रा जी ने नाराज़ होते हुए कहा कि मुझे लगता है कि भगवान ने सारी बेवकूफियांे करने का ठेका तुम मां-बेटे को ही दे कर भेजा है। इतना सुनते ही पास खड़े मिश्रा जी के बेटे ने कहा कि घर में चाहे कोई भी सदस्य कुछ गलती करें आप मुझे साथ में बेवकूफ क्यूं बना देते हो?
मिश्रा जी ने कहा कि तुम्हें बेवकूफ न कहूं तो क्या कहू? तुमसे बड़ा बेवकूफ तो इस सारे जहां में कोई हो ही नही सकता। अपना पेट काट-काट कर और कितने पापड़ बेलने के बाद मुष्किल से तुम्हारी बी,ए, की पढ़ाई पूरी करवाई थी कि तुम मेरे कारोबार में कुछ सहायता करोगे। परंतु अब दुकान पर मेरे काम मे कुछ मदद करने की बजाए सारा दिन गोबर गणेष की तरह घर में बैठ कर न जाने कौन से हवाई किले बनाते रहते हो। तुम्हारे साथ तो कोई कितना ही सिर पीट ले परंतु तुम्हारे कान पर तो जूं तक नही रेंगती। मुझे एक बात समझाओं की सारा दिन घर में घोड़े बेच कर सोने और मक्खियां मारने के सिवाए तुम करते क्या हो? मैं तो आज तक यह भी नही समझ पाया कि तुम किस चिकनी मिट्टी से बने हुए हो कि तुम्हारे ऊपर मेरी किसी बात का कोई असर क्यूं नही होता?
मिश्रा जी को और नीला-पीला होते देख उनकी पत्नी ने गाल फुलाते हुए कहा कि यहां बाजार में सबके सामने मेरे कलेजे के टुकड़े को नीचा दिखा कर यदि तुम्हारे कलेजे में ठंडक पड़ गई हो तो अब घर वापिस चले क्या? मिश्रा जी ने किसी तरह अपने गुस्से पर काबू करते हुए अपनी पत्नी से कहा कि तुम्हारे लाड़-प्यार की वजह से ही इस अक्कल के दुष्मन की अक्कल घास चरने चली गई है। मुझे तो हर समय यही डर सताता हेै कि तुम्हारा यह लाड़ला किसी दिन जरूर कोई्र उल्टा सीधा गुल खिलायेगा। मैं अभी तक तो यही सोचता था कि पढ़ाई लिखाई करके एक दिन यह काठ का उल्लू अपने पैरां पर खड़ा हो जायेगा, लेेकिन मुझे ऐसा लगने लगा है कि मेरी तो किस्मत ही फूटी हुई है। हर समय कौऐ उड़ाने वाला और ख्याली पुलाव पकाने वाला तुम्हारा यह बेटा तो बिल्कुल कुत्ते की दुम की तरह है जो कभी नही सीधी हो सकती।
मिश्रा जी की पत्नी ने अपने मन का गुबार निकालते हुए कहा कि आप एक बार अपने तेवर चढ़ाने थोड़े कम करो तो फिर देखना कि हमारा बेटा कैसे दिन-दूनी और रात चौगुनी तरक्की करता है। आप जिस लड़के के बारे में यह कह रहे हो कि वो अपने पैरों पर खड़ा नही हो सकता उसमें तो पहाड़ से टक्कर लेने की हिम्मत है। यह तो कुछ दिनों का फेर है कि उसका भाग्य उसका साथ नही दे रहा। बहुत जल्दी ऐसा समय आयेगा कि चारों और हमारे बेटे की तूती बोलेगी उस समय तो आप भी दातों तले उंगली दबाने से नही रह पाओगे। मिश्रा जी का बेटा जो अभी तक पसीने-पसीने हो रहा था अब तो उसकी भी बत्तीसी निकलने लगी थी।
अपनी पत्नी की बिना सिर पैर की बाते सुन कर मिश्रा जी का खून खोलने लगा था। बेटे की तरफदारी ने उल्टा जलती आग में घी डालने का काम अधिक कर दिया। मिश्रा जी ने पत्नी को समझाते हुए हुआ कहा कि मैने भी कोई धूप में बाल सफेद नही किए, मैं भी अपने बेटे की नब्ज को अच्छे से पहचानता हॅू। सिर्फ कागजी घोड़े दौड़ने से या तीन-पांच करने से कभी डंके नही बजा करते। ऐसे लोग तो लाख के घर को भी खाक कर देते है। तुम पता नही सब कुछ समझते हुए भी बेटे के साथ मिल कर सारा दिन क्या खिचड़ी पकाती रहती हो? क्या तुम इतना भी नही जानती कि जिन लोगो के सिर पर गहरा हाथ मारने का भूत सवार होता है उन्हें हमेषा लेने के देने पड़ते है। यह जो जोड़-तोड़ और हर समय गिरगिट की तरह रंग बदलने वाले लोग होते है उन्हें एक दिन बड़े घर की हवा भी खानी पड़ती है।
मिश्रा जी के घर की महाभारत को देखने के बाद जौली अंकल कोई परामर्ष या सलाह देने की बजाए यही मंत्र देना चाहते है कि किसी काम से अनजान होना इतने षर्म की बात नही होती जितना की उस काम को करने के लिए कतराना। इसीलिये हर मां-बाप यही चाहते है कि स्ंातान अच्छी होनी चाहिए जो कहने में हो तो वो ही लोक और परलोक में सुख दे सकती है। इस बात को तो कोई भी नही झुठला सकता कि भाग्य के सहारे बैठे रहने वाले को कभी कुछ नही मिलता और ऐसे लोगो को सारी उम्र पछताना पड़ता है इसीलिए जमाना षायद उन्हें बेवकूफ कहता है।
’’जौली अंकल’’
Friday, May 20, 2011
जोली अंकल का एक और रोचक लेख आप के लिए
’’ पारखी नजर ’’
बंसन्ती ने वीरू से कहा कि आप तो हर समय अपनी अक्कल के घोड़े दौड़ाते रहते हो, क्या मैं आपको 35 साल की लगती हॅू। वीरू ने कहा कि कौन बेवकूफ अब तुम्हें 35 साल की कहता है, जब थी उस समय लगती थी। बंसन्ती ने थोड़ा नाराज़ होते हुए कहा कि मैं तो तुम्हें बहुत पारखी समझती थी लेकिन तुम हो अक्ल के पीछे लठ लिए फिरते रहते हो। अच्छा अब फालतू की बाते छोड़ो मुझे बस इतना बता दो कि तुम मुझे कितना प्यार करते हो? वीरू ने कहा कि यह कोई कहने की बात है, इतना तो तुम भी जरूर जानती होगी कि मै तो तुम्हे बेहिसाब प्यार करता हॅू। बंसन्ती ऐसे नही फिर भी ठीक से बताओ तो सही, मुझे अच्छा लगेगाा। वीरू ने कहा कि मै तो तुम्हारा झूठा जहर भी पी सकता हॅू, अगर एतबार न हो तो किसी दिन भी परख लेना क्योकि तुम तो खुद ही बहुत बड़ी पारखी नजर रखती हो।
एक दिन वीरू अपने बाल कटवाने के लिये नाई की दुकान पर गये। जैसा कि हर कोई जानता है कि अधिकांश नाई लोग अपना काम करते समय एक पल भी चुप नहीं रह सकते। वो किसी न किसी विषय पर अपनी राय देते ही रहते हैं। फिर चाहे वो गली-मुहल्ले की कोई परेषानी हो या देष की कोई गम्भीर समस्या। वीरू से बात करते-करते मुद्दा भगवान के होने या न होने पर आकर रुक गया। वीरू के लाख समझाने पर भी नाई अपनी बात पर अड़ा रहा कि दुनिया में भगवान नाम की कोई चीज नहीं है।
यदि भगवान सचमुच होता, तो फिर दुनियॉ में हर तरफ यह दुख ही दुख, गरीबी, भुखमरी, कत्ल और लूटपाट क्यो होते? लोग बीमार क्यूं होते? बच्चे अनाथ क्यंू होते? अस्पताल मरीजों से यंू तो न भरे रहते, गरीबी और लाचारी की वजह से लोग आत्महत्या क्यंू करते? आप कहते हो कि भगवान सबको बहुत प्यार करते हैं। तो क्या भगवान को अपने प्रियजनों का तड़पते देख यह सब कुछ अच्छा लगता है? जब वीरू की भगवान के आस्तित्व के बारे में सभी दलीलें फेल हो गईं तो वो बुझे मन से अपना काम खत्म होते ही एक समझदार इन्सान की तरह चुपचाप उस नाई को पैसे देकर चल दिय, क्योंकि मुसद्दी लाल जी इस बात को अच्छी तरह से समझते है कि कभी भी किसी मूर्ख से नही उलझना चहिये क्योंकि ऐसे में वहां खड़े सभी देखने वाले को दोनों ही मूर्ख प्रतीत होते है।
जैसे ही वीरू उस नाई की दुकान से बाहर आया, तो उन्होंने देखा की उस बस्ती में काफी सारे लोग बहुत ही लबंे और गन्दे बालों के साथ इधर-उधर घूम रहे थे। मुसद्दी लाल तुरन्त वापिस आये और उस नाई से बोले कि मुझे लगता है, कि तुम्हारी सारी बस्ती में कोई भी नाई नहीं है। नाई ने हैरान होते हुए कहा, कि यह आप क्या कह रहे हो? अभी तो मैने तुम्हारे बाल काटकर ठीक किये है, और तुम कह रहे हो कि यहां कोई नाई नहीं रहता। वीरू ने अब अपनी बात कहनी षुरू की, जैसे ही मैं तुम्हारी दुकान से बाहर निकला तो मैंने देखा कि बहुत से लोग बहुत ही लबंे और गन्दे बालों के साथ यहां-वहां घूम रहे हैं। नाई बोला उससे क्या होता है? मैं तो यहां अपना काम कर रहा हूं,। अब जब तक कोई मेरे पास आयेगा ही नहींे तो मैं उसके पीछे-पीछे दौड़ कर तो उनके बाल नही संवार सकता।
अब बात पूरी तरह से वीरू की पकड़ में आ गई। उन्होंने उस नाई को समझाना षुरू किया कि तुम बिल्कुल ठीक कह रहे हो। जैसे यह लोग जब तक तुम्हारे पास नहीं आते, तब तक तुम इनके लिये कुछ नहीं कर सकते, ठीक वैसे ही भगवान तो इसी दुनिया में है, लेकिन जब तक हम लोग उसके करीब नही जायंेगे, तब तक वो हमारे लिये क्या कर सकता है? उसकी मदद और आषीर्वाद के बिना तो हमें हर प्रकार के दुख और तकलीफों का सामना करना ही पड़ेगा। प्रभु का आर्षीवाद पाने के लिए हमें ने कर्म करने होगे। कर्म किए बिना फल की इच्छा करना ठीक वैसा ही है जैसे पेड़ लगाए बगैर फल की उम्मीद में बैठे रहना। जो व्यक्ति इस तरह की छोटी-छोटी बातों को सही-सही समझ लेता है उसी की नज़र पारखी बन जाती है।
कहने को तो विज्ञान तेज़ी से तरक्की कर रहा है, परंतु सच्चाई यह है कि हम वास्वतिक जिंदगी की असलियत को भूलते जा रहे हैं। नतीजतन हम अपने परिवार, और समाज के साथ-साथ भगवान से भी दूर होते जा रहे हैं। जो कोई भगवान के बारे में थोड़ा बहुत ज्ञान या आस्था रखता है, वो खुद को अंहकारवश बड़ा विद्ववान और दूसरो को मूर्ख समझने लगता है। किसी धर्म के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी या यू कहियें कि आधा-अधूरा ज्ञान रखने वालों का घंमड तो सातवें आसमान पर देखने को मिलता है। वो बाकी समाज के लोगो को हर समय यह जताना नहीं भूलते की वो भगवान के सबसे नज़दीक और खास है। जबकि पारखी नज़र वाले तो यही मानते है कि जिस तरह सूरज एक, चांद एक है उसी तरह भगवान भी एक है बस सिर्फ उसके नाम अनेक है। ऐसे लोगो का यह अटूट विष्वास होता है कि प्रभु को किसी भी नाम से पुकारा जायें वो हर किसी की सुनता है।
अंधविष्वासी लोग अक्सर यह कहते है कि क्या आज तक किसी ने भगवान को देखा है? क्या कोई भगवान को देख सकता है? जिस चीज को हम देख नहीं सकते, क्या उसका अस्तित्व कैसे हो सकता हैं? यह कुछ ऐसे प्रष्न है, जिनका जवाब आज तक षायद किसी को नहीं मिल पाया। परंतु पारखी लोगो की माने तो उनका कहना है कि भगवान की बात तो छोड़ो, क्या कभी किसी ने फूलो की खुषबू या अपने सिरदर्द को देखा है? हम केवल ऐसी चीजो को महसूस ही कर सकते हैं। अगर हमने यह छोटी-छोटी चीजे नहीं देखी, तो भगवान के अस्तित्व पर प्रष्न उठाने वालों की समझ के बारे में क्या कहंे?
जिस प्रकार किसी जानवर को मंहगे सोने-चांदी और हीरे-मोतियों की समझ नही होती, वो उन्हें छोड़ कर भी घास के पीछे ही भागते है। इसका मतलब यह तो नहीं कि हीरे-मोतियो की कोई पहचान या कीमत खत्म हो गई, ठीक उसी तरह भगवान तो हर कण-कण से लेकर छोटे-बड़े जीव में मौजूद है। जौली अंकल की सोच तो यही कहती है कि भगवान को देखने के लिये केवल एक सच्चे हृदय एवं पारखी नजर की जरूरत है। सितारों की दूरी और समुंद्र की गहराई को मापने का दावा करने वालों से भी वो इंसान महान है जो दूसरों के साथ खुद को जानने के लिये पारखी नज़र रखता है।
बंसन्ती ने वीरू से कहा कि आप तो हर समय अपनी अक्कल के घोड़े दौड़ाते रहते हो, क्या मैं आपको 35 साल की लगती हॅू। वीरू ने कहा कि कौन बेवकूफ अब तुम्हें 35 साल की कहता है, जब थी उस समय लगती थी। बंसन्ती ने थोड़ा नाराज़ होते हुए कहा कि मैं तो तुम्हें बहुत पारखी समझती थी लेकिन तुम हो अक्ल के पीछे लठ लिए फिरते रहते हो। अच्छा अब फालतू की बाते छोड़ो मुझे बस इतना बता दो कि तुम मुझे कितना प्यार करते हो? वीरू ने कहा कि यह कोई कहने की बात है, इतना तो तुम भी जरूर जानती होगी कि मै तो तुम्हे बेहिसाब प्यार करता हॅू। बंसन्ती ऐसे नही फिर भी ठीक से बताओ तो सही, मुझे अच्छा लगेगाा। वीरू ने कहा कि मै तो तुम्हारा झूठा जहर भी पी सकता हॅू, अगर एतबार न हो तो किसी दिन भी परख लेना क्योकि तुम तो खुद ही बहुत बड़ी पारखी नजर रखती हो।
एक दिन वीरू अपने बाल कटवाने के लिये नाई की दुकान पर गये। जैसा कि हर कोई जानता है कि अधिकांश नाई लोग अपना काम करते समय एक पल भी चुप नहीं रह सकते। वो किसी न किसी विषय पर अपनी राय देते ही रहते हैं। फिर चाहे वो गली-मुहल्ले की कोई परेषानी हो या देष की कोई गम्भीर समस्या। वीरू से बात करते-करते मुद्दा भगवान के होने या न होने पर आकर रुक गया। वीरू के लाख समझाने पर भी नाई अपनी बात पर अड़ा रहा कि दुनिया में भगवान नाम की कोई चीज नहीं है।
यदि भगवान सचमुच होता, तो फिर दुनियॉ में हर तरफ यह दुख ही दुख, गरीबी, भुखमरी, कत्ल और लूटपाट क्यो होते? लोग बीमार क्यूं होते? बच्चे अनाथ क्यंू होते? अस्पताल मरीजों से यंू तो न भरे रहते, गरीबी और लाचारी की वजह से लोग आत्महत्या क्यंू करते? आप कहते हो कि भगवान सबको बहुत प्यार करते हैं। तो क्या भगवान को अपने प्रियजनों का तड़पते देख यह सब कुछ अच्छा लगता है? जब वीरू की भगवान के आस्तित्व के बारे में सभी दलीलें फेल हो गईं तो वो बुझे मन से अपना काम खत्म होते ही एक समझदार इन्सान की तरह चुपचाप उस नाई को पैसे देकर चल दिय, क्योंकि मुसद्दी लाल जी इस बात को अच्छी तरह से समझते है कि कभी भी किसी मूर्ख से नही उलझना चहिये क्योंकि ऐसे में वहां खड़े सभी देखने वाले को दोनों ही मूर्ख प्रतीत होते है।
जैसे ही वीरू उस नाई की दुकान से बाहर आया, तो उन्होंने देखा की उस बस्ती में काफी सारे लोग बहुत ही लबंे और गन्दे बालों के साथ इधर-उधर घूम रहे थे। मुसद्दी लाल तुरन्त वापिस आये और उस नाई से बोले कि मुझे लगता है, कि तुम्हारी सारी बस्ती में कोई भी नाई नहीं है। नाई ने हैरान होते हुए कहा, कि यह आप क्या कह रहे हो? अभी तो मैने तुम्हारे बाल काटकर ठीक किये है, और तुम कह रहे हो कि यहां कोई नाई नहीं रहता। वीरू ने अब अपनी बात कहनी षुरू की, जैसे ही मैं तुम्हारी दुकान से बाहर निकला तो मैंने देखा कि बहुत से लोग बहुत ही लबंे और गन्दे बालों के साथ यहां-वहां घूम रहे हैं। नाई बोला उससे क्या होता है? मैं तो यहां अपना काम कर रहा हूं,। अब जब तक कोई मेरे पास आयेगा ही नहींे तो मैं उसके पीछे-पीछे दौड़ कर तो उनके बाल नही संवार सकता।
अब बात पूरी तरह से वीरू की पकड़ में आ गई। उन्होंने उस नाई को समझाना षुरू किया कि तुम बिल्कुल ठीक कह रहे हो। जैसे यह लोग जब तक तुम्हारे पास नहीं आते, तब तक तुम इनके लिये कुछ नहीं कर सकते, ठीक वैसे ही भगवान तो इसी दुनिया में है, लेकिन जब तक हम लोग उसके करीब नही जायंेगे, तब तक वो हमारे लिये क्या कर सकता है? उसकी मदद और आषीर्वाद के बिना तो हमें हर प्रकार के दुख और तकलीफों का सामना करना ही पड़ेगा। प्रभु का आर्षीवाद पाने के लिए हमें ने कर्म करने होगे। कर्म किए बिना फल की इच्छा करना ठीक वैसा ही है जैसे पेड़ लगाए बगैर फल की उम्मीद में बैठे रहना। जो व्यक्ति इस तरह की छोटी-छोटी बातों को सही-सही समझ लेता है उसी की नज़र पारखी बन जाती है।
कहने को तो विज्ञान तेज़ी से तरक्की कर रहा है, परंतु सच्चाई यह है कि हम वास्वतिक जिंदगी की असलियत को भूलते जा रहे हैं। नतीजतन हम अपने परिवार, और समाज के साथ-साथ भगवान से भी दूर होते जा रहे हैं। जो कोई भगवान के बारे में थोड़ा बहुत ज्ञान या आस्था रखता है, वो खुद को अंहकारवश बड़ा विद्ववान और दूसरो को मूर्ख समझने लगता है। किसी धर्म के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी या यू कहियें कि आधा-अधूरा ज्ञान रखने वालों का घंमड तो सातवें आसमान पर देखने को मिलता है। वो बाकी समाज के लोगो को हर समय यह जताना नहीं भूलते की वो भगवान के सबसे नज़दीक और खास है। जबकि पारखी नज़र वाले तो यही मानते है कि जिस तरह सूरज एक, चांद एक है उसी तरह भगवान भी एक है बस सिर्फ उसके नाम अनेक है। ऐसे लोगो का यह अटूट विष्वास होता है कि प्रभु को किसी भी नाम से पुकारा जायें वो हर किसी की सुनता है।
अंधविष्वासी लोग अक्सर यह कहते है कि क्या आज तक किसी ने भगवान को देखा है? क्या कोई भगवान को देख सकता है? जिस चीज को हम देख नहीं सकते, क्या उसका अस्तित्व कैसे हो सकता हैं? यह कुछ ऐसे प्रष्न है, जिनका जवाब आज तक षायद किसी को नहीं मिल पाया। परंतु पारखी लोगो की माने तो उनका कहना है कि भगवान की बात तो छोड़ो, क्या कभी किसी ने फूलो की खुषबू या अपने सिरदर्द को देखा है? हम केवल ऐसी चीजो को महसूस ही कर सकते हैं। अगर हमने यह छोटी-छोटी चीजे नहीं देखी, तो भगवान के अस्तित्व पर प्रष्न उठाने वालों की समझ के बारे में क्या कहंे?
जिस प्रकार किसी जानवर को मंहगे सोने-चांदी और हीरे-मोतियों की समझ नही होती, वो उन्हें छोड़ कर भी घास के पीछे ही भागते है। इसका मतलब यह तो नहीं कि हीरे-मोतियो की कोई पहचान या कीमत खत्म हो गई, ठीक उसी तरह भगवान तो हर कण-कण से लेकर छोटे-बड़े जीव में मौजूद है। जौली अंकल की सोच तो यही कहती है कि भगवान को देखने के लिये केवल एक सच्चे हृदय एवं पारखी नजर की जरूरत है। सितारों की दूरी और समुंद्र की गहराई को मापने का दावा करने वालों से भी वो इंसान महान है जो दूसरों के साथ खुद को जानने के लिये पारखी नज़र रखता है।
जोली अंकल का एक और रोचक लेख
’’ पारखी नजर ’’
बंसन्ती ने वीरू से कहा कि आप तो हर समय अपनी अक्कल के घोड़े दौड़ाते रहते हो, क्या मैं आपको 35 साल की लगती हॅू। वीरू ने कहा कि कौन बेवकूफ अब तुम्हें 35 साल की कहता है, जब थी उस समय लगती थी। बंसन्ती ने थोड़ा नाराज़ होते हुए कहा कि मैं तो तुम्हें बहुत पारखी समझती थी लेकिन तुम हो अक्ल के पीछे लठ लिए फिरते रहते हो। अच्छा अब फालतू की बाते छोड़ो मुझे बस इतना बता दो कि तुम मुझे कितना प्यार करते हो? वीरू ने कहा कि यह कोई कहने की बात है, इतना तो तुम भी जरूर जानती होगी कि मै तो तुम्हे बेहिसाब प्यार करता हॅू। बंसन्ती ऐसे नही फिर भी ठीक से बताओ तो सही, मुझे अच्छा लगेगाा। वीरू ने कहा कि मै तो तुम्हारा झूठा जहर भी पी सकता हॅू, अगर एतबार न हो तो किसी दिन भी परख लेना क्योकि तुम तो खुद ही बहुत बड़ी पारखी नजर रखती हो।
एक दिन वीरू अपने बाल कटवाने के लिये नाई की दुकान पर गये। जैसा कि हर कोई जानता है कि अधिकांश नाई लोग अपना काम करते समय एक पल भी चुप नहीं रह सकते। वो किसी न किसी विषय पर अपनी राय देते ही रहते हैं। फिर चाहे वो गली-मुहल्ले की कोई परेषानी हो या देष की कोई गम्भीर समस्या। वीरू से बात करते-करते मुद्दा भगवान के होने या न होने पर आकर रुक गया। वीरू के लाख समझाने पर भी नाई अपनी बात पर अड़ा रहा कि दुनिया में भगवान नाम की कोई चीज नहीं है।
यदि भगवान सचमुच होता, तो फिर दुनियॉ में हर तरफ यह दुख ही दुख, गरीबी, भुखमरी, कत्ल और लूटपाट क्यो होते? लोग बीमार क्यूं होते? बच्चे अनाथ क्यंू होते? अस्पताल मरीजों से यंू तो न भरे रहते, गरीबी और लाचारी की वजह से लोग आत्महत्या क्यंू करते? आप कहते हो कि भगवान सबको बहुत प्यार करते हैं। तो क्या भगवान को अपने प्रियजनों का तड़पते देख यह सब कुछ अच्छा लगता है? जब वीरू की भगवान के आस्तित्व के बारे में सभी दलीलें फेल हो गईं तो वो बुझे मन से अपना काम खत्म होते ही एक समझदार इन्सान की तरह चुपचाप उस नाई को पैसे देकर चल दिय, क्योंकि मुसद्दी लाल जी इस बात को अच्छी तरह से समझते है कि कभी भी किसी मूर्ख से नही उलझना चहिये क्योंकि ऐसे में वहां खड़े सभी देखने वाले को दोनों ही मूर्ख प्रतीत होते है।
जैसे ही वीरू उस नाई की दुकान से बाहर आया, तो उन्होंने देखा की उस बस्ती में काफी सारे लोग बहुत ही लबंे और गन्दे बालों के साथ इधर-उधर घूम रहे थे। मुसद्दी लाल तुरन्त वापिस आये और उस नाई से बोले कि मुझे लगता है, कि तुम्हारी सारी बस्ती में कोई भी नाई नहीं है। नाई ने हैरान होते हुए कहा, कि यह आप क्या कह रहे हो? अभी तो मैने तुम्हारे बाल काटकर ठीक किये है, और तुम कह रहे हो कि यहां कोई नाई नहीं रहता। वीरू ने अब अपनी बात कहनी षुरू की, जैसे ही मैं तुम्हारी दुकान से बाहर निकला तो मैंने देखा कि बहुत से लोग बहुत ही लबंे और गन्दे बालों के साथ यहां-वहां घूम रहे हैं। नाई बोला उससे क्या होता है? मैं तो यहां अपना काम कर रहा हूं,। अब जब तक कोई मेरे पास आयेगा ही नहींे तो मैं उसके पीछे-पीछे दौड़ कर तो उनके बाल नही संवार सकता।
अब बात पूरी तरह से वीरू की पकड़ में आ गई। उन्होंने उस नाई को समझाना षुरू किया कि तुम बिल्कुल ठीक कह रहे हो। जैसे यह लोग जब तक तुम्हारे पास नहीं आते, तब तक तुम इनके लिये कुछ नहीं कर सकते, ठीक वैसे ही भगवान तो इसी दुनिया में है, लेकिन जब तक हम लोग उसके करीब नही जायंेगे, तब तक वो हमारे लिये क्या कर सकता है? उसकी मदद और आषीर्वाद के बिना तो हमें हर प्रकार के दुख और तकलीफों का सामना करना ही पड़ेगा। प्रभु का आर्षीवाद पाने के लिए हमें ने कर्म करने होगे। कर्म किए बिना फल की इच्छा करना ठीक वैसा ही है जैसे पेड़ लगाए बगैर फल की उम्मीद में बैठे रहना। जो व्यक्ति इस तरह की छोटी-छोटी बातों को सही-सही समझ लेता है उसी की नज़र पारखी बन जाती है।
कहने को तो विज्ञान तेज़ी से तरक्की कर रहा है, परंतु सच्चाई यह है कि हम वास्वतिक जिंदगी की असलियत को भूलते जा रहे हैं। नतीजतन हम अपने परिवार, और समाज के साथ-साथ भगवान से भी दूर होते जा रहे हैं। जो कोई भगवान के बारे में थोड़ा बहुत ज्ञान या आस्था रखता है, वो खुद को अंहकारवश बड़ा विद्ववान और दूसरो को मूर्ख समझने लगता है। किसी धर्म के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी या यू कहियें कि आधा-अधूरा ज्ञान रखने वालों का घंमड तो सातवें आसमान पर देखने को मिलता है। वो बाकी समाज के लोगो को हर समय यह जताना नहीं भूलते की वो भगवान के सबसे नज़दीक और खास है। जबकि पारखी नज़र वाले तो यही मानते है कि जिस तरह सूरज एक, चांद एक है उसी तरह भगवान भी एक है बस सिर्फ उसके नाम अनेक है। ऐसे लोगो का यह अटूट विष्वास होता है कि प्रभु को किसी भी नाम से पुकारा जायें वो हर किसी की सुनता है।
अंधविष्वासी लोग अक्सर यह कहते है कि क्या आज तक किसी ने भगवान को देखा है? क्या कोई भगवान को देख सकता है? जिस चीज को हम देख नहीं सकते, क्या उसका अस्तित्व कैसे हो सकता हैं? यह कुछ ऐसे प्रष्न है, जिनका जवाब आज तक षायद किसी को नहीं मिल पाया। परंतु पारखी लोगो की माने तो उनका कहना है कि भगवान की बात तो छोड़ो, क्या कभी किसी ने फूलो की खुषबू या अपने सिरदर्द को देखा है? हम केवल ऐसी चीजो को महसूस ही कर सकते हैं। अगर हमने यह छोटी-छोटी चीजे नहीं देखी, तो भगवान के अस्तित्व पर प्रष्न उठाने वालों की समझ के बारे में क्या कहंे?
जिस प्रकार किसी जानवर को मंहगे सोने-चांदी और हीरे-मोतियों की समझ नही होती, वो उन्हें छोड़ कर भी घास के पीछे ही भागते है। इसका मतलब यह तो नहीं कि हीरे-मोतियो की कोई पहचान या कीमत खत्म हो गई, ठीक उसी तरह भगवान तो हर कण-कण से लेकर छोटे-बड़े जीव में मौजूद है। जौली अंकल की सोच तो यही कहती है कि भगवान को देखने के लिये केवल एक सच्चे हृदय एवं पारखी नजर की जरूरत है। सितारों की दूरी और समुंद्र की गहराई को मापने का दावा करने वालों से भी वो इंसान महान है जो दूसरों के साथ खुद को जानने के लिये पारखी नज़र रखता है।
बंसन्ती ने वीरू से कहा कि आप तो हर समय अपनी अक्कल के घोड़े दौड़ाते रहते हो, क्या मैं आपको 35 साल की लगती हॅू। वीरू ने कहा कि कौन बेवकूफ अब तुम्हें 35 साल की कहता है, जब थी उस समय लगती थी। बंसन्ती ने थोड़ा नाराज़ होते हुए कहा कि मैं तो तुम्हें बहुत पारखी समझती थी लेकिन तुम हो अक्ल के पीछे लठ लिए फिरते रहते हो। अच्छा अब फालतू की बाते छोड़ो मुझे बस इतना बता दो कि तुम मुझे कितना प्यार करते हो? वीरू ने कहा कि यह कोई कहने की बात है, इतना तो तुम भी जरूर जानती होगी कि मै तो तुम्हे बेहिसाब प्यार करता हॅू। बंसन्ती ऐसे नही फिर भी ठीक से बताओ तो सही, मुझे अच्छा लगेगाा। वीरू ने कहा कि मै तो तुम्हारा झूठा जहर भी पी सकता हॅू, अगर एतबार न हो तो किसी दिन भी परख लेना क्योकि तुम तो खुद ही बहुत बड़ी पारखी नजर रखती हो।
एक दिन वीरू अपने बाल कटवाने के लिये नाई की दुकान पर गये। जैसा कि हर कोई जानता है कि अधिकांश नाई लोग अपना काम करते समय एक पल भी चुप नहीं रह सकते। वो किसी न किसी विषय पर अपनी राय देते ही रहते हैं। फिर चाहे वो गली-मुहल्ले की कोई परेषानी हो या देष की कोई गम्भीर समस्या। वीरू से बात करते-करते मुद्दा भगवान के होने या न होने पर आकर रुक गया। वीरू के लाख समझाने पर भी नाई अपनी बात पर अड़ा रहा कि दुनिया में भगवान नाम की कोई चीज नहीं है।
यदि भगवान सचमुच होता, तो फिर दुनियॉ में हर तरफ यह दुख ही दुख, गरीबी, भुखमरी, कत्ल और लूटपाट क्यो होते? लोग बीमार क्यूं होते? बच्चे अनाथ क्यंू होते? अस्पताल मरीजों से यंू तो न भरे रहते, गरीबी और लाचारी की वजह से लोग आत्महत्या क्यंू करते? आप कहते हो कि भगवान सबको बहुत प्यार करते हैं। तो क्या भगवान को अपने प्रियजनों का तड़पते देख यह सब कुछ अच्छा लगता है? जब वीरू की भगवान के आस्तित्व के बारे में सभी दलीलें फेल हो गईं तो वो बुझे मन से अपना काम खत्म होते ही एक समझदार इन्सान की तरह चुपचाप उस नाई को पैसे देकर चल दिय, क्योंकि मुसद्दी लाल जी इस बात को अच्छी तरह से समझते है कि कभी भी किसी मूर्ख से नही उलझना चहिये क्योंकि ऐसे में वहां खड़े सभी देखने वाले को दोनों ही मूर्ख प्रतीत होते है।
जैसे ही वीरू उस नाई की दुकान से बाहर आया, तो उन्होंने देखा की उस बस्ती में काफी सारे लोग बहुत ही लबंे और गन्दे बालों के साथ इधर-उधर घूम रहे थे। मुसद्दी लाल तुरन्त वापिस आये और उस नाई से बोले कि मुझे लगता है, कि तुम्हारी सारी बस्ती में कोई भी नाई नहीं है। नाई ने हैरान होते हुए कहा, कि यह आप क्या कह रहे हो? अभी तो मैने तुम्हारे बाल काटकर ठीक किये है, और तुम कह रहे हो कि यहां कोई नाई नहीं रहता। वीरू ने अब अपनी बात कहनी षुरू की, जैसे ही मैं तुम्हारी दुकान से बाहर निकला तो मैंने देखा कि बहुत से लोग बहुत ही लबंे और गन्दे बालों के साथ यहां-वहां घूम रहे हैं। नाई बोला उससे क्या होता है? मैं तो यहां अपना काम कर रहा हूं,। अब जब तक कोई मेरे पास आयेगा ही नहींे तो मैं उसके पीछे-पीछे दौड़ कर तो उनके बाल नही संवार सकता।
अब बात पूरी तरह से वीरू की पकड़ में आ गई। उन्होंने उस नाई को समझाना षुरू किया कि तुम बिल्कुल ठीक कह रहे हो। जैसे यह लोग जब तक तुम्हारे पास नहीं आते, तब तक तुम इनके लिये कुछ नहीं कर सकते, ठीक वैसे ही भगवान तो इसी दुनिया में है, लेकिन जब तक हम लोग उसके करीब नही जायंेगे, तब तक वो हमारे लिये क्या कर सकता है? उसकी मदद और आषीर्वाद के बिना तो हमें हर प्रकार के दुख और तकलीफों का सामना करना ही पड़ेगा। प्रभु का आर्षीवाद पाने के लिए हमें ने कर्म करने होगे। कर्म किए बिना फल की इच्छा करना ठीक वैसा ही है जैसे पेड़ लगाए बगैर फल की उम्मीद में बैठे रहना। जो व्यक्ति इस तरह की छोटी-छोटी बातों को सही-सही समझ लेता है उसी की नज़र पारखी बन जाती है।
कहने को तो विज्ञान तेज़ी से तरक्की कर रहा है, परंतु सच्चाई यह है कि हम वास्वतिक जिंदगी की असलियत को भूलते जा रहे हैं। नतीजतन हम अपने परिवार, और समाज के साथ-साथ भगवान से भी दूर होते जा रहे हैं। जो कोई भगवान के बारे में थोड़ा बहुत ज्ञान या आस्था रखता है, वो खुद को अंहकारवश बड़ा विद्ववान और दूसरो को मूर्ख समझने लगता है। किसी धर्म के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी या यू कहियें कि आधा-अधूरा ज्ञान रखने वालों का घंमड तो सातवें आसमान पर देखने को मिलता है। वो बाकी समाज के लोगो को हर समय यह जताना नहीं भूलते की वो भगवान के सबसे नज़दीक और खास है। जबकि पारखी नज़र वाले तो यही मानते है कि जिस तरह सूरज एक, चांद एक है उसी तरह भगवान भी एक है बस सिर्फ उसके नाम अनेक है। ऐसे लोगो का यह अटूट विष्वास होता है कि प्रभु को किसी भी नाम से पुकारा जायें वो हर किसी की सुनता है।
अंधविष्वासी लोग अक्सर यह कहते है कि क्या आज तक किसी ने भगवान को देखा है? क्या कोई भगवान को देख सकता है? जिस चीज को हम देख नहीं सकते, क्या उसका अस्तित्व कैसे हो सकता हैं? यह कुछ ऐसे प्रष्न है, जिनका जवाब आज तक षायद किसी को नहीं मिल पाया। परंतु पारखी लोगो की माने तो उनका कहना है कि भगवान की बात तो छोड़ो, क्या कभी किसी ने फूलो की खुषबू या अपने सिरदर्द को देखा है? हम केवल ऐसी चीजो को महसूस ही कर सकते हैं। अगर हमने यह छोटी-छोटी चीजे नहीं देखी, तो भगवान के अस्तित्व पर प्रष्न उठाने वालों की समझ के बारे में क्या कहंे?
जिस प्रकार किसी जानवर को मंहगे सोने-चांदी और हीरे-मोतियों की समझ नही होती, वो उन्हें छोड़ कर भी घास के पीछे ही भागते है। इसका मतलब यह तो नहीं कि हीरे-मोतियो की कोई पहचान या कीमत खत्म हो गई, ठीक उसी तरह भगवान तो हर कण-कण से लेकर छोटे-बड़े जीव में मौजूद है। जौली अंकल की सोच तो यही कहती है कि भगवान को देखने के लिये केवल एक सच्चे हृदय एवं पारखी नजर की जरूरत है। सितारों की दूरी और समुंद्र की गहराई को मापने का दावा करने वालों से भी वो इंसान महान है जो दूसरों के साथ खुद को जानने के लिये पारखी नज़र रखता है।
Thursday, May 19, 2011
खिलौना माटी का - जोली अंकल का नया लेख
’’ खिलोना माटी का ’’
एक लड़की मरने के बाद भगवान के द्वार पर पहुंची तो प्रभु उसे देख कर हैरान हो गये कि तुम इतनी जल्दी स्वर्गलोक में कैसे आ गई हो? तुम्हारी आयु के मुताबिक तो तुम्हें अभी बहुत उम्र तक धरती पर जीना था। उस लड़की ने प्रभु परमेष्वर को बताया कि वो किसी दूसरी जाति के एक लड़के से बहुत प्यार करती थी। जब बार-बार समझाने पर भी हमारे घरवाले इस षादी के लिये राजी नही हुए तो हमारे गांव के चंद ठेकेदारों ने हमें मौत का हुक्म सुना दिया। इससे पहले कि वो हमें जान से मारते हम दोनों ने अपनी जिंदगी को खत्म करने का मन बना लिया। भगवान ने हैरान होते हुए कहा लेकिन तुम्हारा प्रेमी तो कहीं दिखाई नही दे रहा, वो कहां है? जब दूसरे देवताओ ने मामले की थोड़ी जांच-पड़ताल की गई तो मालूम हुआ कि यह दोनों मौत को गले लगाने के लिये इक्ट्ठे ही एक पहाड़ी पर आये थे। जब लड़की कूदने लगी तो इसके प्रेमी ने यह कह कर आखें बंद कर ली कि प्यार अंधा होता है। अगले पल जब उसने देखा कि लड़की तो कूद कर मर गई है वो वहां से यह कह कर वापिस भाग गया कि मेरा प्यार तो अमर है, मैं काये को अपनी जान दू।
यह सारा प्रंसग सुनने के बाद वहां बैठे सभी देवताओं के चेहरे पर क्रोध और चिंता की रेखाऐं साफ झलकने लगी थी। काफी देर विचार विमर्ष के बाद यह तय हो पाया कि समय-समय पर जब कभी भी स्वर्गलोक में कोई इस तरह की अजीब समस्यां देखने में आती है तो नारद मुनि जी से ही परामर्ष लिया जाता है। सभी देवी-देवताओं की सहमति से परमपिता परमेष्वर ने उसी समय नारद मुनि को यह आदेष दिया कि हमने तो पृथ्वीलोक पर एक बहुत ही पवित्र आत्मा वाला षुद्व माटी का खिलोना बना कर भेजा था। लेकिन यह वहां पर कैसे-कैसे छल कपट कर रहा है। इसके बारे में खुद धरती पर जाकर जल्द से जल्द वहां का सारा विवरण हमें बताओ।
नारद जी प्रभु के हुक्म को सुनते ही नारायण-नारायण करते हुए वहां से धरती की और निकल पड़े। धरती पर पांव रखते ही उनका सामना उस बेवफा प्रेमी से हो गया जिसने उस लड़की को धोखा देकर मौत के मुंह में धकेल दिया था। वो षराब के नषे में टुन झूमता हुआ अपनी मस्ती में हिंदी फिल्म के एक गाने को गुनगुना रहा था कि मुन्नी बदनाम हुई डार्लिंग तेरे लिये। नारद मुनि जी को देखते ही वो षराबी उनसे बोला कि भाई तुम कौन? नारद जी ने कहा कि लगता है तुमने मुझे पहचाना नही। उस षराबी ने कहा कि यह दारू बड़ी कमाल की चीज है यह अपने सारे दुखो से लेकर दुनियां के सारे गम तक भुला देती है। नारद जी ने अपना परिचय देते हुए मैं स्वर्गलोक से आया हॅू। यह सुनते ही षराबी ने नारद जी की खिल्ली उड़ाते हुए से कहा कि फिर तो यहां मेरे साथ बैठो, मैं अभी आपके लिये दारू मंगवाता हॅू। नारद जी कुछ ठीक से समझ नही पाये कि यह किस चीज के बारे में बात कर रहा है। फिर भी उन्होने इसे कोई ठंडा पेयजल समझ कर बोतल मुंह से लगा कर कर एक ही घूंट में उसे खत्म कर डाला। षराबी बड़ा हैरान हुआ कि हमें तो एक बोतल को खत्म करने में 4-6 घंटे लग जाते है और यह कलाकार तो एक ही झटके में सारी बोतल गटक गया। उसने एक और बोतल नारद जी के आगे रख दी। अगले ही क्षण वो भी खाली होकर जमीन पर इधर-उधर लुढ़क रही थी। इसी तरह जब 4-6 बोतले और खाली हो गई तो उस षराबी ने नारद जी से पूछा कि तुम्हें यह दारू चढ़ती नही क्या? नारद जी ने कहा कि मैं भगवान हॅू, मुझे इस तरह के नषों से कुछ असर नही होता। अब उस षराबी ने लड़खड़ाती हुई जुबान में कहा कि अब घर जाकर आराम से सो जाओ तुम्हें बुरी तरह से दारू चढ़ गई है। वरना पुलिस वाले तुम्हें दो-चार दिन के लिए कृश्ण जी की जन्मभूमि पर रहने के लिये भेज देगे। नारद जी को बड़ा अजीब लगा कि यह दो टक्के का आदमी सभी लोगो के बीच मेरी टोपी उछाल रहा है। सब कुछ जानते हुए भी नारद जी ने इस षराबी को गुस्सा करने की बजाए इसी से धरती के हालात के बारे में विस्तार से जानना बेहतर समझा।
जब षराबी के साथ थोड़ी दोस्ती का महौल बन गया तो उसने बताना षुरू किया कि आज धरती पर चारों और भ्रश्टाचार का बोलबाला है। जहां देखो हर इंसान हत्या, बलात्कार और हैवानियत के डर से दहषत के महौल में जी रहा है। देष के नेता बापू, भगत सिंह जैसे महान नेताओ की षिक्षा को भूल कर सरकारी खज़ाने को अंदर ही अंदर खोखला कर रहे है। नेताओ के साथ उनके परिवार वालों का चरित्र भी ढीला होता जा रहा है। इतना सुनने के बाद नारद जी ने उस षराबी से कहा कि क्या आपके अध्यापकगण, गुरू या साधू-संत आप लोगो को धर्म की राह के बारे में कुछ नही समझाते। षराबी ने कहा कि आजकल के मटुक लाल जैसे अध्यापक खुद ही लव गुरू बने बैठे हैं बाकी रही साधू-संतो की बात तो स्वामी नित्यानंद जी जैसे संत खुद ही गेरूए वस्त्र धारण करके वासना की भक्ति में लीन पड़े हुए है। इंसान भगवान को भूलकर षैतान बनता जा रहा है, क्योंकि हर कोई यही सोचने लगाा है कि यदि भगवान होते तो क्या इस धरती पर यह सारे कुर्कम हो पाते?
नारद जी ने प्रभु का ध्यान करते हुए उस षराबी से कहा कि कौन कहता है कि भगवान इस धरती पर नही है? कौन कहता है कि भगवान बार-बार बुलाने पर भी नही आते? क्या कभी किसी ने मीरा की तरह उन्हें बुलाया है? आप एक बार उन्हें प्यार से पुकार कर तो देखो तो सही, भगवान न सिर्फ आपके पास आयेगे बल्कि आपके साथ बैठ कर खाना भी खायेगे। षर्त सिर्फ इतनी हैे कि आपके खाने में षबरी के बेरों की तरह मिठास और दिल में मिलन की सच्ची तड़प होनी चाहिये। भगवान तो हर जीव आत्मा के रूप में आपके सामने है लेकिन आप लोगो में कमी यह है कि आप हर चीज को उस तरह से देखना चाहते हो जो आपकी आखों को अच्छा लगता है। अब तक उस षराबी को नारद जी की जुबान से निकले एक-एक षब्द की पीढ़ा का अभास होने लगा था। जौली अंकल तो यही सोच कर परेषान हो रहे है कि इससे पहले कि नारद जी जैसे सम्मानित गुरू प्रभु परमेष्वर को जा कर धरती के बारे में यह बताऐं कि वहां मानव दानव बनता जा रहा है उससे पहले हर मानव को मानव की तरह जीना सीख लेना चाहिये ताकि भगवान द्वारा बनाया गया पवित्र, षुद्व और खालिस माटी का खिलोना फिर से मानवता को निखार सके।
एक लड़की मरने के बाद भगवान के द्वार पर पहुंची तो प्रभु उसे देख कर हैरान हो गये कि तुम इतनी जल्दी स्वर्गलोक में कैसे आ गई हो? तुम्हारी आयु के मुताबिक तो तुम्हें अभी बहुत उम्र तक धरती पर जीना था। उस लड़की ने प्रभु परमेष्वर को बताया कि वो किसी दूसरी जाति के एक लड़के से बहुत प्यार करती थी। जब बार-बार समझाने पर भी हमारे घरवाले इस षादी के लिये राजी नही हुए तो हमारे गांव के चंद ठेकेदारों ने हमें मौत का हुक्म सुना दिया। इससे पहले कि वो हमें जान से मारते हम दोनों ने अपनी जिंदगी को खत्म करने का मन बना लिया। भगवान ने हैरान होते हुए कहा लेकिन तुम्हारा प्रेमी तो कहीं दिखाई नही दे रहा, वो कहां है? जब दूसरे देवताओ ने मामले की थोड़ी जांच-पड़ताल की गई तो मालूम हुआ कि यह दोनों मौत को गले लगाने के लिये इक्ट्ठे ही एक पहाड़ी पर आये थे। जब लड़की कूदने लगी तो इसके प्रेमी ने यह कह कर आखें बंद कर ली कि प्यार अंधा होता है। अगले पल जब उसने देखा कि लड़की तो कूद कर मर गई है वो वहां से यह कह कर वापिस भाग गया कि मेरा प्यार तो अमर है, मैं काये को अपनी जान दू।
यह सारा प्रंसग सुनने के बाद वहां बैठे सभी देवताओं के चेहरे पर क्रोध और चिंता की रेखाऐं साफ झलकने लगी थी। काफी देर विचार विमर्ष के बाद यह तय हो पाया कि समय-समय पर जब कभी भी स्वर्गलोक में कोई इस तरह की अजीब समस्यां देखने में आती है तो नारद मुनि जी से ही परामर्ष लिया जाता है। सभी देवी-देवताओं की सहमति से परमपिता परमेष्वर ने उसी समय नारद मुनि को यह आदेष दिया कि हमने तो पृथ्वीलोक पर एक बहुत ही पवित्र आत्मा वाला षुद्व माटी का खिलोना बना कर भेजा था। लेकिन यह वहां पर कैसे-कैसे छल कपट कर रहा है। इसके बारे में खुद धरती पर जाकर जल्द से जल्द वहां का सारा विवरण हमें बताओ।
नारद जी प्रभु के हुक्म को सुनते ही नारायण-नारायण करते हुए वहां से धरती की और निकल पड़े। धरती पर पांव रखते ही उनका सामना उस बेवफा प्रेमी से हो गया जिसने उस लड़की को धोखा देकर मौत के मुंह में धकेल दिया था। वो षराब के नषे में टुन झूमता हुआ अपनी मस्ती में हिंदी फिल्म के एक गाने को गुनगुना रहा था कि मुन्नी बदनाम हुई डार्लिंग तेरे लिये। नारद मुनि जी को देखते ही वो षराबी उनसे बोला कि भाई तुम कौन? नारद जी ने कहा कि लगता है तुमने मुझे पहचाना नही। उस षराबी ने कहा कि यह दारू बड़ी कमाल की चीज है यह अपने सारे दुखो से लेकर दुनियां के सारे गम तक भुला देती है। नारद जी ने अपना परिचय देते हुए मैं स्वर्गलोक से आया हॅू। यह सुनते ही षराबी ने नारद जी की खिल्ली उड़ाते हुए से कहा कि फिर तो यहां मेरे साथ बैठो, मैं अभी आपके लिये दारू मंगवाता हॅू। नारद जी कुछ ठीक से समझ नही पाये कि यह किस चीज के बारे में बात कर रहा है। फिर भी उन्होने इसे कोई ठंडा पेयजल समझ कर बोतल मुंह से लगा कर कर एक ही घूंट में उसे खत्म कर डाला। षराबी बड़ा हैरान हुआ कि हमें तो एक बोतल को खत्म करने में 4-6 घंटे लग जाते है और यह कलाकार तो एक ही झटके में सारी बोतल गटक गया। उसने एक और बोतल नारद जी के आगे रख दी। अगले ही क्षण वो भी खाली होकर जमीन पर इधर-उधर लुढ़क रही थी। इसी तरह जब 4-6 बोतले और खाली हो गई तो उस षराबी ने नारद जी से पूछा कि तुम्हें यह दारू चढ़ती नही क्या? नारद जी ने कहा कि मैं भगवान हॅू, मुझे इस तरह के नषों से कुछ असर नही होता। अब उस षराबी ने लड़खड़ाती हुई जुबान में कहा कि अब घर जाकर आराम से सो जाओ तुम्हें बुरी तरह से दारू चढ़ गई है। वरना पुलिस वाले तुम्हें दो-चार दिन के लिए कृश्ण जी की जन्मभूमि पर रहने के लिये भेज देगे। नारद जी को बड़ा अजीब लगा कि यह दो टक्के का आदमी सभी लोगो के बीच मेरी टोपी उछाल रहा है। सब कुछ जानते हुए भी नारद जी ने इस षराबी को गुस्सा करने की बजाए इसी से धरती के हालात के बारे में विस्तार से जानना बेहतर समझा।
जब षराबी के साथ थोड़ी दोस्ती का महौल बन गया तो उसने बताना षुरू किया कि आज धरती पर चारों और भ्रश्टाचार का बोलबाला है। जहां देखो हर इंसान हत्या, बलात्कार और हैवानियत के डर से दहषत के महौल में जी रहा है। देष के नेता बापू, भगत सिंह जैसे महान नेताओ की षिक्षा को भूल कर सरकारी खज़ाने को अंदर ही अंदर खोखला कर रहे है। नेताओ के साथ उनके परिवार वालों का चरित्र भी ढीला होता जा रहा है। इतना सुनने के बाद नारद जी ने उस षराबी से कहा कि क्या आपके अध्यापकगण, गुरू या साधू-संत आप लोगो को धर्म की राह के बारे में कुछ नही समझाते। षराबी ने कहा कि आजकल के मटुक लाल जैसे अध्यापक खुद ही लव गुरू बने बैठे हैं बाकी रही साधू-संतो की बात तो स्वामी नित्यानंद जी जैसे संत खुद ही गेरूए वस्त्र धारण करके वासना की भक्ति में लीन पड़े हुए है। इंसान भगवान को भूलकर षैतान बनता जा रहा है, क्योंकि हर कोई यही सोचने लगाा है कि यदि भगवान होते तो क्या इस धरती पर यह सारे कुर्कम हो पाते?
नारद जी ने प्रभु का ध्यान करते हुए उस षराबी से कहा कि कौन कहता है कि भगवान इस धरती पर नही है? कौन कहता है कि भगवान बार-बार बुलाने पर भी नही आते? क्या कभी किसी ने मीरा की तरह उन्हें बुलाया है? आप एक बार उन्हें प्यार से पुकार कर तो देखो तो सही, भगवान न सिर्फ आपके पास आयेगे बल्कि आपके साथ बैठ कर खाना भी खायेगे। षर्त सिर्फ इतनी हैे कि आपके खाने में षबरी के बेरों की तरह मिठास और दिल में मिलन की सच्ची तड़प होनी चाहिये। भगवान तो हर जीव आत्मा के रूप में आपके सामने है लेकिन आप लोगो में कमी यह है कि आप हर चीज को उस तरह से देखना चाहते हो जो आपकी आखों को अच्छा लगता है। अब तक उस षराबी को नारद जी की जुबान से निकले एक-एक षब्द की पीढ़ा का अभास होने लगा था। जौली अंकल तो यही सोच कर परेषान हो रहे है कि इससे पहले कि नारद जी जैसे सम्मानित गुरू प्रभु परमेष्वर को जा कर धरती के बारे में यह बताऐं कि वहां मानव दानव बनता जा रहा है उससे पहले हर मानव को मानव की तरह जीना सीख लेना चाहिये ताकि भगवान द्वारा बनाया गया पवित्र, षुद्व और खालिस माटी का खिलोना फिर से मानवता को निखार सके।
Wednesday, May 11, 2011
इंतज़ार - जोली अंकल का एक और रोचक लेख
’’ इंतज़ार ’’
मसुद्दी लाल जी के बेटे की षादी जैसे ही तह हुई तो वो किसी रिष्तेदार को न्योता देने की बजाए सबसे पहले अपने खानदानी दर्जी के पास जा पहुंचे। उन्होने दर्जी से कहा कि यदि तुम्हें ठीक से याद हो तो मेरे पिता जी ने मेरी षादी के समय एक बढ़िया सी षेरवानी तैयार करने को कहा था, लेकिन तुमने आज तक वो षादी का जोड़ा तैयार नही किया। अब अगले महीने मेरे बेटे की षादी तह हुई है। मैं चाहता हॅू कि दुल्हा बनते समय वो वही जोड़ा पहने, जो मेरे पिता जी मेरी षादी के समय मुझे पहना हुआ देखना चाहते थे। दर्जी ने आखे टेढ़ी करते और चश्मा नाक पर चढ़ाते हुए कहा, मियां मैने आपकी षादी के समय भी कहा था, कि यदि हमसे अच्छा और बढ़िया काम करवाना है तो आपको थोड़ा इंतज़ार तो करना ही पड़ेगा। इस तरह से जल्दी के काम न तो हम ने कभी किये है और न ही हम कर सकते है। मसुद्दी लाल जी ने भी थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए कहा कि मेैं भी अब और इंतज़ार नही कर सकता, आप इसी वक्त मेरा कपड़ा वापिस लोटा दो, मैं अपने बेटे की षादी के लिये षैरवानी कहंी और से सिलवा लूंगा।
जैसे ही मसुद्दी लाल जी षेरवानी सिलवाने के लिये कपड़ा लेकर दूसरे दर्जी के पास पहुंचे तो वो जल्दी में कहीं जा रहा था। उसने जाते-जाते इतना ही कहा कि आप 15-20 मिनट इंतज़ार करो, मैं अभी आता हॅू। मसुद्दी लाल जी ने यदि तुम 15-20 मिनट में नही आये तो। उस दर्जी ने मुस्कराहते हुए कह दिया, फिर आप थोड़ा और इंतज़ार कर लेना। कारण चाहे कुछ भी हो हमारे देश में जन्म से लेकर दुनियां को बाय-बाय करने तक हम अपना आधे से अधिक समय तो इंतज़ार करते हुए व्यर्थ में ही गवां देते है। घर से दफतर जाना हो या बाजार, राशन की लाईन हो या सिनेमा टिकट की खिड़की, बैंक में पैसे या बिजली-पानी का बिल जमां करवाना हो, हर जगह लाईन में खड़े रहते हुए हमें अपनी बारी के लिए घंटो इंतज़ार करना पड़ता है। खास तौर से आम आदमी को अपने जीवन स्तर में सुधार के लिये नेताओं द्वारा किये हुए कभी न पूरे होने वाले वादों को अमली जामा पहनाने का इंतज़ार रह-रह कर सताता है।
इंतज़ार का तो यह आलम हो गया है कि बड़े षहरों में अब एक जगह से दूसरी जगह की दूरी मील या किलोमीटर में न बता कर समय के हिसाब से बताने का चलन चल निकला है, क्योंकि कुछ किलोमीटर का फांसला तह करने में भी घंटो टैªफिक जाम के इंतज़ार में निकल जाते है। टिकट रेल गाड़ी की हो या हवाई यात्रा की उसे पाने के लिये कई-कई महीनों का इंतज़ार करना तो एक आम बात हो चुकी है। कहने को आऐ दिन तेजी से बढ़ती मंहगाई की मार से हर कोई परेषान है, लेकिन किसी भी अच्छे होटल में न तो रहने के लिये कमरा मिलता है और न ही अच्छा खाना खाने के लिये जगह। हर तरफ से एक ही जवाब सुनने को मिलता आप थोड़ा इंतज़ार करो अगर आपकी किस्मत अच्छी हुई तो षायद कुछ देर में कोई जुगाड़ बन जाये।
घर में षादी-विवाह या किसी अन्य उत्सव का आयोजन करना हो, अपनी जेब से पैसा खर्च करने के बावजूद भी हमें हर जरूरी काम करवाने के लिये छोटे-बड़े सभी संबंधित लोगो का इंतज़ार करना पड़ता है। एक जनसाधारण को सबसे अधिक इंतज़ार हमारे सरकारी बाबू करवाते है। कई बार तो ऐसा भ्रम होने लगता है कि हमारे यहां लोग सरकारी नौकरी केवल दो चीजो के लिये ही करते है, पहली तनख्वाह और दूसरी छुट्टीयां लेने के लिये। उनकी इस लापरवाही से जनता को इंतजार करते हुए कितनी परेषानी होती है इस दर्द से उन्हें कोई फर्क नही पड़ता। दूसरों को इंतज़ार करवाते-करवाते इन लोगो को खुद भी हर काम में इंतज़ार करने की आदत हो जाती है नतीजतन हर काम में प्रतीक्षा करते-करते उनकी यह आदत उन्हें दूसरो की अपेक्षा बहुत पीछे छोड़ देती है। जबकि परिश्रमी लोग बिना किसी को इंतज़ार करवाएं अपना हर काम समय पर करते है और बिना किसी से कुछ भी कहें समय के साथ तेजी से आगे बढ़ते रहते है।
कुछ लोगो का मानना है कि इंतज़ार का फल मीठा होता है, परन्तु यह भी सच है कि अक्सर इंतज़ार में एक-एक पल बरसो की तरह बीतता है। हर इंतज़ार में सिर्फ दर्द ही छिपा हो ऐसा भी नही है। बूढें़ माता-पिता को परदेस में बसे अपने बच्चो का, बच्चो को अपने दोस्तो का, दोस्तो को अपने प्रियजनों के इंतज़ार में भी एक आषा, एक उम्मीद दिखाई देती है। प्रेमी-प्रेमीका को अपने मधुर मिलन का इंतज़ार मधु की तरह मीठा लगता है, क्योकि वो जानते है कि जुदाई की रात कितनी भी लंबी क्यूं न हो एक दिन तो सुहानी सुबह का इंतज़ार खत्म हो ही जायेगा। एक और जिंदगी में हर किसी को अपनी मंजिल पाने का मीठा सा इंतज़ार रहता है, वही जिंदगी के आखिरी पलों में मृत्यु षैया पर मरती आखों को मोक्ष पाने की आस में आखिरी सांस का इंतज़ार करना पड़ता है।
समझदार लोग तो यही मानते है कि समय सर्वाधिक अमूल्य है अतः हमें इसे एक दूसरे के इंतज़ार में बेकार गवाने की जगह सदैव इसका सदृपयोग करना चहिए। यदि इंतज़ार की इस बुरी लत को खत्म करना है तो उसके लिये केवल दृढ़ निश्ठा, संकल्प और इच्छाषक्ति की जरूरत है, इन सभी के आगे इंतजार का टिक पाना अंसभव है। इंतजार का अच्छे से इंतजार करने के बाद जौली अंकल यही निचोड़ निकाल पाये है कि व्यर्थ के इंतजार में समय गवाने की बजाए यदि सारा ध्यान कर्म पर केद्रित किया जाये तो सफलता खुद ही तुम्हारे ़द्वार चल कर आ जाती है।
मसुद्दी लाल जी के बेटे की षादी जैसे ही तह हुई तो वो किसी रिष्तेदार को न्योता देने की बजाए सबसे पहले अपने खानदानी दर्जी के पास जा पहुंचे। उन्होने दर्जी से कहा कि यदि तुम्हें ठीक से याद हो तो मेरे पिता जी ने मेरी षादी के समय एक बढ़िया सी षेरवानी तैयार करने को कहा था, लेकिन तुमने आज तक वो षादी का जोड़ा तैयार नही किया। अब अगले महीने मेरे बेटे की षादी तह हुई है। मैं चाहता हॅू कि दुल्हा बनते समय वो वही जोड़ा पहने, जो मेरे पिता जी मेरी षादी के समय मुझे पहना हुआ देखना चाहते थे। दर्जी ने आखे टेढ़ी करते और चश्मा नाक पर चढ़ाते हुए कहा, मियां मैने आपकी षादी के समय भी कहा था, कि यदि हमसे अच्छा और बढ़िया काम करवाना है तो आपको थोड़ा इंतज़ार तो करना ही पड़ेगा। इस तरह से जल्दी के काम न तो हम ने कभी किये है और न ही हम कर सकते है। मसुद्दी लाल जी ने भी थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए कहा कि मेैं भी अब और इंतज़ार नही कर सकता, आप इसी वक्त मेरा कपड़ा वापिस लोटा दो, मैं अपने बेटे की षादी के लिये षैरवानी कहंी और से सिलवा लूंगा।
जैसे ही मसुद्दी लाल जी षेरवानी सिलवाने के लिये कपड़ा लेकर दूसरे दर्जी के पास पहुंचे तो वो जल्दी में कहीं जा रहा था। उसने जाते-जाते इतना ही कहा कि आप 15-20 मिनट इंतज़ार करो, मैं अभी आता हॅू। मसुद्दी लाल जी ने यदि तुम 15-20 मिनट में नही आये तो। उस दर्जी ने मुस्कराहते हुए कह दिया, फिर आप थोड़ा और इंतज़ार कर लेना। कारण चाहे कुछ भी हो हमारे देश में जन्म से लेकर दुनियां को बाय-बाय करने तक हम अपना आधे से अधिक समय तो इंतज़ार करते हुए व्यर्थ में ही गवां देते है। घर से दफतर जाना हो या बाजार, राशन की लाईन हो या सिनेमा टिकट की खिड़की, बैंक में पैसे या बिजली-पानी का बिल जमां करवाना हो, हर जगह लाईन में खड़े रहते हुए हमें अपनी बारी के लिए घंटो इंतज़ार करना पड़ता है। खास तौर से आम आदमी को अपने जीवन स्तर में सुधार के लिये नेताओं द्वारा किये हुए कभी न पूरे होने वाले वादों को अमली जामा पहनाने का इंतज़ार रह-रह कर सताता है।
इंतज़ार का तो यह आलम हो गया है कि बड़े षहरों में अब एक जगह से दूसरी जगह की दूरी मील या किलोमीटर में न बता कर समय के हिसाब से बताने का चलन चल निकला है, क्योंकि कुछ किलोमीटर का फांसला तह करने में भी घंटो टैªफिक जाम के इंतज़ार में निकल जाते है। टिकट रेल गाड़ी की हो या हवाई यात्रा की उसे पाने के लिये कई-कई महीनों का इंतज़ार करना तो एक आम बात हो चुकी है। कहने को आऐ दिन तेजी से बढ़ती मंहगाई की मार से हर कोई परेषान है, लेकिन किसी भी अच्छे होटल में न तो रहने के लिये कमरा मिलता है और न ही अच्छा खाना खाने के लिये जगह। हर तरफ से एक ही जवाब सुनने को मिलता आप थोड़ा इंतज़ार करो अगर आपकी किस्मत अच्छी हुई तो षायद कुछ देर में कोई जुगाड़ बन जाये।
घर में षादी-विवाह या किसी अन्य उत्सव का आयोजन करना हो, अपनी जेब से पैसा खर्च करने के बावजूद भी हमें हर जरूरी काम करवाने के लिये छोटे-बड़े सभी संबंधित लोगो का इंतज़ार करना पड़ता है। एक जनसाधारण को सबसे अधिक इंतज़ार हमारे सरकारी बाबू करवाते है। कई बार तो ऐसा भ्रम होने लगता है कि हमारे यहां लोग सरकारी नौकरी केवल दो चीजो के लिये ही करते है, पहली तनख्वाह और दूसरी छुट्टीयां लेने के लिये। उनकी इस लापरवाही से जनता को इंतजार करते हुए कितनी परेषानी होती है इस दर्द से उन्हें कोई फर्क नही पड़ता। दूसरों को इंतज़ार करवाते-करवाते इन लोगो को खुद भी हर काम में इंतज़ार करने की आदत हो जाती है नतीजतन हर काम में प्रतीक्षा करते-करते उनकी यह आदत उन्हें दूसरो की अपेक्षा बहुत पीछे छोड़ देती है। जबकि परिश्रमी लोग बिना किसी को इंतज़ार करवाएं अपना हर काम समय पर करते है और बिना किसी से कुछ भी कहें समय के साथ तेजी से आगे बढ़ते रहते है।
कुछ लोगो का मानना है कि इंतज़ार का फल मीठा होता है, परन्तु यह भी सच है कि अक्सर इंतज़ार में एक-एक पल बरसो की तरह बीतता है। हर इंतज़ार में सिर्फ दर्द ही छिपा हो ऐसा भी नही है। बूढें़ माता-पिता को परदेस में बसे अपने बच्चो का, बच्चो को अपने दोस्तो का, दोस्तो को अपने प्रियजनों के इंतज़ार में भी एक आषा, एक उम्मीद दिखाई देती है। प्रेमी-प्रेमीका को अपने मधुर मिलन का इंतज़ार मधु की तरह मीठा लगता है, क्योकि वो जानते है कि जुदाई की रात कितनी भी लंबी क्यूं न हो एक दिन तो सुहानी सुबह का इंतज़ार खत्म हो ही जायेगा। एक और जिंदगी में हर किसी को अपनी मंजिल पाने का मीठा सा इंतज़ार रहता है, वही जिंदगी के आखिरी पलों में मृत्यु षैया पर मरती आखों को मोक्ष पाने की आस में आखिरी सांस का इंतज़ार करना पड़ता है।
समझदार लोग तो यही मानते है कि समय सर्वाधिक अमूल्य है अतः हमें इसे एक दूसरे के इंतज़ार में बेकार गवाने की जगह सदैव इसका सदृपयोग करना चहिए। यदि इंतज़ार की इस बुरी लत को खत्म करना है तो उसके लिये केवल दृढ़ निश्ठा, संकल्प और इच्छाषक्ति की जरूरत है, इन सभी के आगे इंतजार का टिक पाना अंसभव है। इंतजार का अच्छे से इंतजार करने के बाद जौली अंकल यही निचोड़ निकाल पाये है कि व्यर्थ के इंतजार में समय गवाने की बजाए यदि सारा ध्यान कर्म पर केद्रित किया जाये तो सफलता खुद ही तुम्हारे ़द्वार चल कर आ जाती है।
Tuesday, May 3, 2011
मन की शक्ति - जोली अंकल का एक और रोचक लेख
’’ मन की षक्ति ’’
बंसन्ती के बेटे गप्पू ने अपने स्कूल का होमवर्क करते हुए अपनी मम्मी से पूछा कि नारी का मतलब क्या होता है? बंसन्ती ने बेटे को समझाया कि नारी का मतलब होता है षक्ति। इसी के साथ गप्पू ने अपनी मां से दूसरा सवाल कर डाला कि अगर नारी षक्ति होती है तो फिर पुरश को क्या कहते है? बंसन्ती ने कहा कि इस सवाल का जवाब तो तुम्हारे पिता अच्छे से दे सकते है क्योंकि उन्हें अपने पुरश होने पर बहुत गर्व है। इससे पहले कि गप्पू कुछ और सवाल खड़ा करता उसके पिता ने कहा कि तुम्हारी मां ने यह तो बता दिया कि नारी षक्ति होती है पंरतु उसे यह कहने में क्यूं षर्म आ रही है कि पुरश का दूसरा नाम सहनषक्ति होता है। एक-दो पल कुछ सोचने के बाद गप्पू ने अपने मम्मी-पापा से कहा कि आपने षक्ति और सहनषक्ति के चक्कर में डाल कर मुझे और उलझा दिया है। मुझे तो ठीक से इतना बता दो कि सबसे बड़ी षक्ति कौन सी होती है? गप्पू के पिता ने उसका सही मार्गदर्षन करते हुए कहा कि बेटा सबसे बड़ी षक्ति तो हमारे मन की षक्ति होती है।
गप्पू ने थोड़ा डरते हुए अपने पापा से पूछा कि यदि हम सभी के अंदर इतनी षक्ति होती है तो फिर आप मम्मी के सामने आते ही परेषान होकर घबराने क्यूं लगते हो? अब उसके पापा ने अपनी नजरें टेढ़ी करते हुए कहा कि बेटा यह सच है कि तेरी मम्मी के आगे मेरी एक नही चलती लेकिन अभी तुम्हारे दूध के दांत टूटे नही और तुम चले हो अपने ही पापा की टांग खीचने। इससे पहले कि गप्पू के पापा उसे और भाशण सुनाते बंसन्ती ने कहा कि तेरे पापा जैसे लोग मन की षक्ति के अभाव में मेहनत, हिम्मत और लगन से काम करके भी अपनी कल्पनाओं को साकार करने की बजाए बनते हुए काम को ही गुड़ गोबर कर देते है। ऐसी स्थिति में इस तरह के डरपोक लोगो का मन हर समय चिंता में डूबने लगता है। जबकि हर कोर्इ्र जानता है कि चिंता किसी भी आने वाली समस्यां को हल नही कर सकती, बल्कि चिंता तो हमारी आज की खुषियों को भी जला कर राख कर देती है। जो लोग अधिक चिंता करते है उनके मन की षक्ति तो खत्म होती ही है साथ ही उनके दिल में सकारत्मक विचार आने की बजाए उनकी बुद्वि और षरीर सब कुछ बिगड़ने लगता है। तेरे पापा जैसे लोगो ने जब खुद को सफलता की कसौटी पर कसने की बजाए दिन रात कोल्हू के बेैल की तरह परिश्रम करते हुए सारी उम्र काट देने की कस्म खाई हो तो यह अपने दुष्मनों पर विजय कैसे पा सकते है? बेटे जिस इंसान में आत्मषक्ति की कमी होती है वो चाहें कितनी ही मेहनत क्यूं न कर ले वो कभी भी अपनी मंजिल को नही पा सकता।
गप्पू ने अपनी मम्मी से पूछा कि क्या यह षक्ति बच्चो में भी आ सकती है। यहां बसन्ती को कहना पड़ा कि कोई बच्चा हो या बड़ा, कभी भी किसी इंसान को यह नही सोचना चाहिए कि यह काम उससे नही होगा। हर व्यक्ति हर काम को अच्छे से कर सकता है। सिर्फ जरूरत है अपना पूरा जोर लगा कर अपने लक्ष्य की और ध्यान देने की। कुछ लोगो में कई कारणों से मन की षक्ति का पूर्ण विकास नही हो पाता लेकिन हर कोई इस राह की चाह रखने वाला इसे धीरे-धीरे बढ़ा कर अपने मन में पैदा कर सकता है। यह सच है कि एक आम आदमी छोटे से दुख को देखते ही घबराता है लेकिन जो कोई दुख का सामना हिम्मत से करता है सुख भी वोहि पाता है। जिस किसी के मन में मन की षक्ति की जगह भय रहता हो वो स्वयं के साथ दूसरों के लिए भी किसी खतरे से कम नही होता।
बंसन्ती ने अपने बेटे गप्पू को आगे समझाते हुए कहा कि जमाने में किसी परिवर्तन की बात या अथवा षरीर में किसी कारण से कोई कमी पेषी हो तो भी मन को निरंतर स्थिर बनाएं रखना चाहिए। इसके जादू से दुख की घड़िया भी पल भर में दूर हो जाती है। मन की षक्ति तो अपने आप में एक ऐसा अस्त्र है कि आप इसके एक तीर से कई निषाने लगा सकते हो। मन की ऊर्जा से आप बड़े से बड़े ताकतवर को भी षिकस्त दे कर षत प्रतिषत सफलता पा सकते है। जो लोग सच्चे मन से कोई भी कार्य करते है उन्हें न केवल संतुश्टि और ताकत मिलती है बल्कि सफलता दिलाने में भाग्य भी उनका साथ देता है। वैसे तुम्हें यह बता दू कि मन की षक्ति में तो वो ताकत होती है कि आप उससे जीवन में कुछ भी हासिल कर सकते हो। जो इंसान अपने अंदर यह क्षमता जगा लेता है उसके जीवन में सुख, समृद्वि एवं सफलता के द्वार अपने आप खुलने लगते है।
बेटे की पीठ पर हाथ रखते हुए उसकी मां बंसन्ती ने कहा कि इसी के साथ एक बात और बता दू कि जिस तरह किसी का मन और सोच होती है उसे वैसे ही सब कुछ मिलता है। अब तितली के जीवन को ही देख लो, उसे बेचारी को भगवान सिर्फ 14 दिन की उम्र देकर भेजता है। रंगबिंरगी फूलों से नाजुक तितलियां इन 14 दिनों में ही हजारों-लाखों मील का सफर तह करने के साथ हर किसी को खुष करते हुए अपनी और आकर्शित करती है। दूसरी और कछुआ 400-500 साल जी कर भी न तो अपने लिये और न ही किसी दूसरे के लिये कुछ भी कर पाता है। अंत में एक बात और याद रखना कि दुष्मनों पर विजय पाने वालों की तुलना में उसे षूरवीर मानना अच्छी बात है जो अपने मन पर विजय प्राप्त कर लेता है क्योंकि सबसे कठिन विजय, अपने मन पर विजय पाना होता है। जौली अंकल अपने अनुभवों के आधार पर इसी निश्कर्श पर पहुंचे हेै कि हर व्यक्ति को बुलदिंयो तक पहुचने की हिम्मत सिर्फ मन की षक्ति ही दे सकती है।
’’ जौली अंकल ’’
बंसन्ती के बेटे गप्पू ने अपने स्कूल का होमवर्क करते हुए अपनी मम्मी से पूछा कि नारी का मतलब क्या होता है? बंसन्ती ने बेटे को समझाया कि नारी का मतलब होता है षक्ति। इसी के साथ गप्पू ने अपनी मां से दूसरा सवाल कर डाला कि अगर नारी षक्ति होती है तो फिर पुरश को क्या कहते है? बंसन्ती ने कहा कि इस सवाल का जवाब तो तुम्हारे पिता अच्छे से दे सकते है क्योंकि उन्हें अपने पुरश होने पर बहुत गर्व है। इससे पहले कि गप्पू कुछ और सवाल खड़ा करता उसके पिता ने कहा कि तुम्हारी मां ने यह तो बता दिया कि नारी षक्ति होती है पंरतु उसे यह कहने में क्यूं षर्म आ रही है कि पुरश का दूसरा नाम सहनषक्ति होता है। एक-दो पल कुछ सोचने के बाद गप्पू ने अपने मम्मी-पापा से कहा कि आपने षक्ति और सहनषक्ति के चक्कर में डाल कर मुझे और उलझा दिया है। मुझे तो ठीक से इतना बता दो कि सबसे बड़ी षक्ति कौन सी होती है? गप्पू के पिता ने उसका सही मार्गदर्षन करते हुए कहा कि बेटा सबसे बड़ी षक्ति तो हमारे मन की षक्ति होती है।
गप्पू ने थोड़ा डरते हुए अपने पापा से पूछा कि यदि हम सभी के अंदर इतनी षक्ति होती है तो फिर आप मम्मी के सामने आते ही परेषान होकर घबराने क्यूं लगते हो? अब उसके पापा ने अपनी नजरें टेढ़ी करते हुए कहा कि बेटा यह सच है कि तेरी मम्मी के आगे मेरी एक नही चलती लेकिन अभी तुम्हारे दूध के दांत टूटे नही और तुम चले हो अपने ही पापा की टांग खीचने। इससे पहले कि गप्पू के पापा उसे और भाशण सुनाते बंसन्ती ने कहा कि तेरे पापा जैसे लोग मन की षक्ति के अभाव में मेहनत, हिम्मत और लगन से काम करके भी अपनी कल्पनाओं को साकार करने की बजाए बनते हुए काम को ही गुड़ गोबर कर देते है। ऐसी स्थिति में इस तरह के डरपोक लोगो का मन हर समय चिंता में डूबने लगता है। जबकि हर कोर्इ्र जानता है कि चिंता किसी भी आने वाली समस्यां को हल नही कर सकती, बल्कि चिंता तो हमारी आज की खुषियों को भी जला कर राख कर देती है। जो लोग अधिक चिंता करते है उनके मन की षक्ति तो खत्म होती ही है साथ ही उनके दिल में सकारत्मक विचार आने की बजाए उनकी बुद्वि और षरीर सब कुछ बिगड़ने लगता है। तेरे पापा जैसे लोगो ने जब खुद को सफलता की कसौटी पर कसने की बजाए दिन रात कोल्हू के बेैल की तरह परिश्रम करते हुए सारी उम्र काट देने की कस्म खाई हो तो यह अपने दुष्मनों पर विजय कैसे पा सकते है? बेटे जिस इंसान में आत्मषक्ति की कमी होती है वो चाहें कितनी ही मेहनत क्यूं न कर ले वो कभी भी अपनी मंजिल को नही पा सकता।
गप्पू ने अपनी मम्मी से पूछा कि क्या यह षक्ति बच्चो में भी आ सकती है। यहां बसन्ती को कहना पड़ा कि कोई बच्चा हो या बड़ा, कभी भी किसी इंसान को यह नही सोचना चाहिए कि यह काम उससे नही होगा। हर व्यक्ति हर काम को अच्छे से कर सकता है। सिर्फ जरूरत है अपना पूरा जोर लगा कर अपने लक्ष्य की और ध्यान देने की। कुछ लोगो में कई कारणों से मन की षक्ति का पूर्ण विकास नही हो पाता लेकिन हर कोई इस राह की चाह रखने वाला इसे धीरे-धीरे बढ़ा कर अपने मन में पैदा कर सकता है। यह सच है कि एक आम आदमी छोटे से दुख को देखते ही घबराता है लेकिन जो कोई दुख का सामना हिम्मत से करता है सुख भी वोहि पाता है। जिस किसी के मन में मन की षक्ति की जगह भय रहता हो वो स्वयं के साथ दूसरों के लिए भी किसी खतरे से कम नही होता।
बंसन्ती ने अपने बेटे गप्पू को आगे समझाते हुए कहा कि जमाने में किसी परिवर्तन की बात या अथवा षरीर में किसी कारण से कोई कमी पेषी हो तो भी मन को निरंतर स्थिर बनाएं रखना चाहिए। इसके जादू से दुख की घड़िया भी पल भर में दूर हो जाती है। मन की षक्ति तो अपने आप में एक ऐसा अस्त्र है कि आप इसके एक तीर से कई निषाने लगा सकते हो। मन की ऊर्जा से आप बड़े से बड़े ताकतवर को भी षिकस्त दे कर षत प्रतिषत सफलता पा सकते है। जो लोग सच्चे मन से कोई भी कार्य करते है उन्हें न केवल संतुश्टि और ताकत मिलती है बल्कि सफलता दिलाने में भाग्य भी उनका साथ देता है। वैसे तुम्हें यह बता दू कि मन की षक्ति में तो वो ताकत होती है कि आप उससे जीवन में कुछ भी हासिल कर सकते हो। जो इंसान अपने अंदर यह क्षमता जगा लेता है उसके जीवन में सुख, समृद्वि एवं सफलता के द्वार अपने आप खुलने लगते है।
बेटे की पीठ पर हाथ रखते हुए उसकी मां बंसन्ती ने कहा कि इसी के साथ एक बात और बता दू कि जिस तरह किसी का मन और सोच होती है उसे वैसे ही सब कुछ मिलता है। अब तितली के जीवन को ही देख लो, उसे बेचारी को भगवान सिर्फ 14 दिन की उम्र देकर भेजता है। रंगबिंरगी फूलों से नाजुक तितलियां इन 14 दिनों में ही हजारों-लाखों मील का सफर तह करने के साथ हर किसी को खुष करते हुए अपनी और आकर्शित करती है। दूसरी और कछुआ 400-500 साल जी कर भी न तो अपने लिये और न ही किसी दूसरे के लिये कुछ भी कर पाता है। अंत में एक बात और याद रखना कि दुष्मनों पर विजय पाने वालों की तुलना में उसे षूरवीर मानना अच्छी बात है जो अपने मन पर विजय प्राप्त कर लेता है क्योंकि सबसे कठिन विजय, अपने मन पर विजय पाना होता है। जौली अंकल अपने अनुभवों के आधार पर इसी निश्कर्श पर पहुंचे हेै कि हर व्यक्ति को बुलदिंयो तक पहुचने की हिम्मत सिर्फ मन की षक्ति ही दे सकती है।
’’ जौली अंकल ’’
एक और रोचक लेख - जोली अंकल
’’ फारेन रिटर्न्ड ’
आजकल आप किसी भी दफतर में फोन लगाऐं तो पहले की तरह किसी मधुर भाशी स्वागती कन्या की आवाज की जगह कम्पयूटर की झनझहाट भरी आवाज सुनाई देती है। कुछ दिन पहले एक सज्जन ने षादी ब्यूरों में कुछ जानकारी लेने के लिये फोन लगाया तो उधर से आवाज आई कि रिष्ते की बात करने के लिये कृप्या एक दबाएंे, सगाई से जुड़ी बातचीते के लिये दो दबाऐं, षादी की जानकारी के लिये तीन दबाऐ। उस मनचले ने मजाक में कह दिया यदि दूसरी षादी करनी हो तो क्या दबाऐ? झट से कम्पूयटर ने जवाब दिया कि उसके लिये आप अपनी पहली बीवी का गला दबाऐं। बाकी सभी धंधो में दलालों की तरह षादी के यह दलाल भी अपने काम में इतने माहिर होते है कि एक बार कोई इनकी गली से गुजर जाऐ तो यह तब तक उसका पीछा नही छोड़ते जब तक दुल्हे को सेहरा या दुल्हन के हाथ पीले न हो जाये।
देसी दुल्हों के मुकाबले फारेन रिटर्न्ड दुल्हों की हमारे देष में सदा से भारी मांग रही है। विदेषी दुल्हा चाहें उंम्र के किसी भी पढ़ाव का हो। यहां तक की कई बार तो ऐसे दुल्हों के मुंह में दांत और पेट में आंत तक नही होती परन्तु विदेष से लौटते ही उसका स्वागत फूल मालाओं के साथ-साथ ढ़ोल धमाके के साथ किया जाता है। गांव के अधिकांष लोग अपने सभी जरूरी काम काज छोड़ कर उस फारेन रिटर्न्ड के स्वागत की तैयारीयों में लग जाते है। फारेन रिटर्न्ड लोगो को जहां एक तरफ रिष्तेदार-दोस्तो का भरपूर प्यार मिलता है, वहीं दूसरी और डालर में कमाई करने वाले से अपनी लड़की का रिष्ता करने वालों की एक लंबी कतार लग जाती है।
ऐसे लोगो का काम हमारे यहां रिष्तो की दलाली करने वाले और भी आसान कर देते है। षादी से जुड़े हर प्रकार के सामान के साथ यह लोग रिष्तेदारो का भी किराये पर मंगवाने का इंतजाम कर देते है। यदि कोई मां-बाप कभी गलती से लड़के की योग्यता, आमदनी या घर-बाहर के बारे में कुछ पूछ ले तो षादी करवाने में निपुण दलाल हर सवाल का एक ही जवाब देते है कि आप कमाल कर रहे हो। लड़का फारेन रिटर्न्ड है, और आप न जाने किस प्रकार के सदेंह में पड़ते जा रहे हो। अगर आप को लड़के की काबलियत पर कोई षक है, तो आप यह रिष्ता रहने ही दो। मैने तो आपको अपना समझ कर आपके भले की सोची थी। ऐसी चंद उल्टी-सीधी बातों में लड़की वालों को उलझा कर यह दलाल लोग होटल में दरबान की नौकरी करने वाले को उस होटल का मालिक बना कर रिष्ता पक्का करवा ही देते है।
आज अग्रेजों को भारत छोड़े एक जमाना हो चुका है। फिर भी न जानें हमारे टैक्सी ड्राईवर से लेकर फाईव स्टार होटल वाले अधिकतर लोग आज भी गोरी चमड़ी वालो को देखते ही सर-सर कह कर दुम क्यों हिलाने लग जाते है? गोरी चमड़ी वाला कहां से आया है, उसका उस देष में क्या रूतबा है, इसके बारे में सोचना तो दूर हम जानने तक की कोषिष नही करते। गोरे लोगो की बात तो छोड़ो यदि हमारे गांव का कोई व्यक्ति चार-छह महीने विदेष के किसी होटल में दरबान की या सफाई कर्मचारी की नौकरी कर के जब देष वापिस लौटता है तो हम लोग झट से उसके नाम के साथ फारेन रिटर्न्ड का तगमा लगा देते है।
यह तगमा अपने देष में अच्छे से अच्छे पढ़े लिखे लोगो की डिग्रीयों से कहीं अधिक भारी और चमकदार होता है। फारेन रिटर्न्ड तगमें की चमक इतनी चमकीली होती है कि हमें उसके आगे कुछ दिखाई ही नही देता। आपस में चाहे सारा दिन गाली गलौच करते रहे, लेकिन ऐसे लोगो के सामने हर कोई बड़ी ही संजदीगी से पेष आता है। अब यदि फारेन रिटर्न्ड का ताल्लुक किसी गांव से है, तो सोने पर सुहागे वाली कहावत अपनी चमक पूरी तरह से दिखाने लगती है। जरा गौर से देखो, कि अब फिजा बदल रही है। दुनियां में सबसे ताकतवर देष के राष्ट्रपति न सिर्फ हमारे देश के प्रधानमंत्री से लेकर साधारण बच्चो की तारीफ कर रहे है बल्कि दबी जुबान से अपने देष के बच्चो को दुसरे देषो के मुकाबले पिछड़े होने की चेतावनी भी दे रहे है। समय की मांग है कि हम अपने अतीत को भूल कर यह विचार करे की वर्तमान में हमें अब क्या करना है, क्योंकि दुनियां में वास्तविक सम्पति धन नही मन की प्रसन्नता होती है।
जौली अंकल से इस बारे में पूछे तो यही जवाब मिलेगा कि बेवकूफ की सबसे बड़ी अक्कलमंदी खामोषी है और अक्कलमंद का ज्यादा देर खामोष रहना बेवकूफी होता है। जिस मामले में अंतिम निर्णय लेने का अधिकार आप को है, उस में भी रायमषविरा करने में कोई हर्ज नही होता। किसी विषय के बारे में पूरी जानकारी न होने से अधिक षर्म की बात यह होती है कि उस बारे में पूरी जानकारी न लेना। धन के लालच में बच्चो की खुषियों को कुर्बान करने को तो आप भी अक्कलमंदी नही कहेंगे, फिर चाहे दुल्हा फारेन रिटर्न्ड ही क्यूं न हो?
आजकल आप किसी भी दफतर में फोन लगाऐं तो पहले की तरह किसी मधुर भाशी स्वागती कन्या की आवाज की जगह कम्पयूटर की झनझहाट भरी आवाज सुनाई देती है। कुछ दिन पहले एक सज्जन ने षादी ब्यूरों में कुछ जानकारी लेने के लिये फोन लगाया तो उधर से आवाज आई कि रिष्ते की बात करने के लिये कृप्या एक दबाएंे, सगाई से जुड़ी बातचीते के लिये दो दबाऐं, षादी की जानकारी के लिये तीन दबाऐ। उस मनचले ने मजाक में कह दिया यदि दूसरी षादी करनी हो तो क्या दबाऐ? झट से कम्पूयटर ने जवाब दिया कि उसके लिये आप अपनी पहली बीवी का गला दबाऐं। बाकी सभी धंधो में दलालों की तरह षादी के यह दलाल भी अपने काम में इतने माहिर होते है कि एक बार कोई इनकी गली से गुजर जाऐ तो यह तब तक उसका पीछा नही छोड़ते जब तक दुल्हे को सेहरा या दुल्हन के हाथ पीले न हो जाये।
देसी दुल्हों के मुकाबले फारेन रिटर्न्ड दुल्हों की हमारे देष में सदा से भारी मांग रही है। विदेषी दुल्हा चाहें उंम्र के किसी भी पढ़ाव का हो। यहां तक की कई बार तो ऐसे दुल्हों के मुंह में दांत और पेट में आंत तक नही होती परन्तु विदेष से लौटते ही उसका स्वागत फूल मालाओं के साथ-साथ ढ़ोल धमाके के साथ किया जाता है। गांव के अधिकांष लोग अपने सभी जरूरी काम काज छोड़ कर उस फारेन रिटर्न्ड के स्वागत की तैयारीयों में लग जाते है। फारेन रिटर्न्ड लोगो को जहां एक तरफ रिष्तेदार-दोस्तो का भरपूर प्यार मिलता है, वहीं दूसरी और डालर में कमाई करने वाले से अपनी लड़की का रिष्ता करने वालों की एक लंबी कतार लग जाती है।
ऐसे लोगो का काम हमारे यहां रिष्तो की दलाली करने वाले और भी आसान कर देते है। षादी से जुड़े हर प्रकार के सामान के साथ यह लोग रिष्तेदारो का भी किराये पर मंगवाने का इंतजाम कर देते है। यदि कोई मां-बाप कभी गलती से लड़के की योग्यता, आमदनी या घर-बाहर के बारे में कुछ पूछ ले तो षादी करवाने में निपुण दलाल हर सवाल का एक ही जवाब देते है कि आप कमाल कर रहे हो। लड़का फारेन रिटर्न्ड है, और आप न जाने किस प्रकार के सदेंह में पड़ते जा रहे हो। अगर आप को लड़के की काबलियत पर कोई षक है, तो आप यह रिष्ता रहने ही दो। मैने तो आपको अपना समझ कर आपके भले की सोची थी। ऐसी चंद उल्टी-सीधी बातों में लड़की वालों को उलझा कर यह दलाल लोग होटल में दरबान की नौकरी करने वाले को उस होटल का मालिक बना कर रिष्ता पक्का करवा ही देते है।
आज अग्रेजों को भारत छोड़े एक जमाना हो चुका है। फिर भी न जानें हमारे टैक्सी ड्राईवर से लेकर फाईव स्टार होटल वाले अधिकतर लोग आज भी गोरी चमड़ी वालो को देखते ही सर-सर कह कर दुम क्यों हिलाने लग जाते है? गोरी चमड़ी वाला कहां से आया है, उसका उस देष में क्या रूतबा है, इसके बारे में सोचना तो दूर हम जानने तक की कोषिष नही करते। गोरे लोगो की बात तो छोड़ो यदि हमारे गांव का कोई व्यक्ति चार-छह महीने विदेष के किसी होटल में दरबान की या सफाई कर्मचारी की नौकरी कर के जब देष वापिस लौटता है तो हम लोग झट से उसके नाम के साथ फारेन रिटर्न्ड का तगमा लगा देते है।
यह तगमा अपने देष में अच्छे से अच्छे पढ़े लिखे लोगो की डिग्रीयों से कहीं अधिक भारी और चमकदार होता है। फारेन रिटर्न्ड तगमें की चमक इतनी चमकीली होती है कि हमें उसके आगे कुछ दिखाई ही नही देता। आपस में चाहे सारा दिन गाली गलौच करते रहे, लेकिन ऐसे लोगो के सामने हर कोई बड़ी ही संजदीगी से पेष आता है। अब यदि फारेन रिटर्न्ड का ताल्लुक किसी गांव से है, तो सोने पर सुहागे वाली कहावत अपनी चमक पूरी तरह से दिखाने लगती है। जरा गौर से देखो, कि अब फिजा बदल रही है। दुनियां में सबसे ताकतवर देष के राष्ट्रपति न सिर्फ हमारे देश के प्रधानमंत्री से लेकर साधारण बच्चो की तारीफ कर रहे है बल्कि दबी जुबान से अपने देष के बच्चो को दुसरे देषो के मुकाबले पिछड़े होने की चेतावनी भी दे रहे है। समय की मांग है कि हम अपने अतीत को भूल कर यह विचार करे की वर्तमान में हमें अब क्या करना है, क्योंकि दुनियां में वास्तविक सम्पति धन नही मन की प्रसन्नता होती है।
जौली अंकल से इस बारे में पूछे तो यही जवाब मिलेगा कि बेवकूफ की सबसे बड़ी अक्कलमंदी खामोषी है और अक्कलमंद का ज्यादा देर खामोष रहना बेवकूफी होता है। जिस मामले में अंतिम निर्णय लेने का अधिकार आप को है, उस में भी रायमषविरा करने में कोई हर्ज नही होता। किसी विषय के बारे में पूरी जानकारी न होने से अधिक षर्म की बात यह होती है कि उस बारे में पूरी जानकारी न लेना। धन के लालच में बच्चो की खुषियों को कुर्बान करने को तो आप भी अक्कलमंदी नही कहेंगे, फिर चाहे दुल्हा फारेन रिटर्न्ड ही क्यूं न हो?
Saturday, April 30, 2011
कामेडी के मसीहा - चार्ली चैप्लिन
कामेडी के मसीहा - चार्ली चैप्लिन
वीरू के बेटे ने स्कूल से आते ही अपने पापा को बताया कि आज स्कूल में बहुत मजा आया। वीरू ने पूछा कि क्यूं आज पढ़ाई की जगह तुम्हें कोई कामेडी फिल्म दिखा दी जो इतना खुष हो रहे हो वीरू के बेटे ने कहा कि कामेडी फिल्म तो नही दिखाई लेकिन हमारे टीचर ने आज कामेडी फिल्म के जन्मदाता चार्ली चैप्लिन के बारे में बहुत कुछ नई जानकारियां दी है। पापा क्या आप जानते हो कि चार्ली चैप्लिन दुनियां के सबसे बड़े आदमियों में से एक थे। वीरू ने मजाक करते हुए कहा क्यूं वो क्या 12 नंबर के जूते पहनते थे? बेटे ने नाराज होते हुए कहा अगर आपको ठीक से सुनो तो मैं उनके बारे में बहुत कुछ बता सकता हॅू। जैसे ही वीरू ने हामी भरी तो उसके बेटे ने कहना षुरू किया कि हमारे टीचर ने बताया है कि चार्ली चैप्लिन का नाम आज भी दुनियां के उन प्रसिद्व हास्य कलाकारों की सूची में सबसे अवल नंबर पर आता है जिन्होने ने अपनी जुबान से बिना एक अक्षर भी बोले सारा जीवन दुनियां को वो हंसी-खुषी और आनंद दिया है जिसके बारे में आसानी से सोचा भी नही जा सकता। इस महान कलाकार ने जहां अपनी कामेडी कला की बदौलत चुप रह कर अपने जीते जी तो हर किसी को हसाया वही आज उनके इस दुनियां से जाने के बरसों बाद भी हर पीढ़ी के लोग उनकी हास्य की इस जादूगरी को सलाम करते है। 16 अप्रेल 1889 को इंग्लैंड में जन्में इस महान कलाकार की सबसे बड़ी विषेशता यह थी कि लोग न सिर्फ उनके हंसने पर उनके साथ हंसते थे बल्कि उनके चलने पर, उनके रोने पर, उनके गिरने पर, उनके पहनावे को देख कर दिल खोल कर खिलखिलाते थे। अगर इस बात को यू भी कहा जाये कि उनकी हर अदा में कामेडी थी और जमाना उनकी हर अदा का दीवाना था तो गलत न होगा।
पांच-छह साल की छोटी उम्र में जब बच्चे सिर्फ खेलने कूदने में मस्त होते है इस महान कलाकार ने उस समय कामेडी करके अपनी अनोखी अदाओं से दर्षको को लोटपोट करना षुरू कर दिया था। चार्ली चैप्लिन ने अपने घर को ही अपनी कामेडी की पाठषला और अपने माता-पिता को ही अपना गुरू बनाया। इनके माता-पिता दोनो ही अपने जमाने के अच्छे गायक और स्टेज के प्रसिद्व कलाकार थे। एक दिन अचानक एक कार्यक्रम में इनकी मां की तबीयत खराब होने की वजह से उनकी आवाज चली गई। थियेटर में बैठे दर्षको द्वारा फेंकी गई कुछ वस्तुओं से वो बुरी तरह घायल हो गई। उस समय बिना एक पल की देरी किये इस नन्हें बालक ने थोड़ा घबराते हुए लेकिन मन में दृढ़ विष्वास लिये अकेले ही मंच पर जाकर अपनी कामेडी के दम पर सारे षो को संभाल लिया। उसके बाद चार्ली चैप्लिन ने जीवन में कभी भी पीछे मुड़कर नही देखा।
सर चार्ली चैप्लिन एक सफल हास्य अभिनेता होने के साथ-साथ फिल्म निर्देषक और अमेरिकी सिनेमा के निर्माता और संगीतज्ञ भी थे। चार्ली चैप्लिन ने बचपन से लेकर 88 वर्श की आयु तक अभिनय, निर्देषक पटकथा, निर्माण और संगीत की सभी जिम्मेदारियों को बाखूबी निभाया। बिना षब्दों और कहानियों की हालीवुड में बनी फिल्मों में चार्ली चैप्लिन ने हास्य की अपनी खास षैली से यह साबित कर दिया कि केवल पढ़-लिख लेने से ही कोई विद्ववान नही होता। महानता तो कलाकार की कला से पहचानी जाती है और बिना बोले भी आप गुणवान बन सकते है। यह अपने युग के सबसे रचनात्मक और प्रभावषाली व्यक्तियों में से एक थे। इन्होनें सारी उम्र सादगी को अपनाते हुए कामेडी को ऐसी बुलदियों तक पहुंचा दिया जिसे आज तक कोई दूसरा कलाकार छू भी नही पाया। इनके सारे जीवन को यदि करीब से देखा जाये तो एक बात खुलकर सामने आती है कि इस कलाकार ने कामेडी करते समय कभी फूहड़ता का साहरा नही लिया। इसीलिये षायद दुनियां के हर देष में स्टेज और फिल्मी कलाकारों ने कभी इनकी चाल-ढ़ाल से लेकर कपड़ो तक और कभी इनकी खास स्टाईल वाली मूछों की नकल करके दर्षको को खुष करने की कोषिष की है।
हर किसी को मुस्कुराहट और खिलखिलाहट देने वाले मूक सिनेमा के आइकन माने जाने वाले इस कलाकार के मन में सदैव यही सोच रहती थी कि अपनी तारीफ खुद ही की तो क्या किया, मजा तो तभी है कि दूसरे लोग आपके काम की तारीफ करें। चार्ली चैप्लिन की कामयाबी का सबसे बड़ा रहस्य यही था कि इन्होने जीवन को ही एक नाटक समझ कर उसकी पूजा की जिस की वजह से यह खुद भी प्रसन्न रहते थे और दूसरों को भी सदा प्रसन्न रखते थे। इनके बारे में आज तक यही कहा जाता है कि इनके अलावा कोई भी ऐसा कलाकार नही हुआ जिस किसी एक व्यक्ति ने अकेले सारी दुनियां के लोगो को इतना मनोरंजन, सुख और खुषी दी हो। सारी बात सुनने के बाद वीरू ने कहा कि तुम्हारे टीचर ने चार्ली चैप्लिन के बारे में बहुत कुछ बता दिया लेकिन यह नही बताया कि उन्होने यह भी कहा था कि हंसी के बिना बीता हमारा हर दिन व्यर्थ होता है।
सर चार्ली चैप्लिन के महान और उत्साही जीवन से प्रेरणा लेते हुए जौली अंकल का यह विष्वास और भी दृढ़ हो गया है कि जो कोई सच्ची लगन से किसी कार्य को करते है उनके विचारो वाणी एवं कर्मो पर पूर्ण आत्मविष्वास की छाप लग जाती है। कामेडी के मसीहा चार्ली चैप्लिन ने इस बात को सच साबित कर दिखाया कि कोई किसी भी पेषे से जुड़ा हो वो चुप रह कर भी अपने पेषे की सही सेवा करने के साथ हर किसी को खुषियां दे सकता है।
जौली अंकल
वीरू के बेटे ने स्कूल से आते ही अपने पापा को बताया कि आज स्कूल में बहुत मजा आया। वीरू ने पूछा कि क्यूं आज पढ़ाई की जगह तुम्हें कोई कामेडी फिल्म दिखा दी जो इतना खुष हो रहे हो वीरू के बेटे ने कहा कि कामेडी फिल्म तो नही दिखाई लेकिन हमारे टीचर ने आज कामेडी फिल्म के जन्मदाता चार्ली चैप्लिन के बारे में बहुत कुछ नई जानकारियां दी है। पापा क्या आप जानते हो कि चार्ली चैप्लिन दुनियां के सबसे बड़े आदमियों में से एक थे। वीरू ने मजाक करते हुए कहा क्यूं वो क्या 12 नंबर के जूते पहनते थे? बेटे ने नाराज होते हुए कहा अगर आपको ठीक से सुनो तो मैं उनके बारे में बहुत कुछ बता सकता हॅू। जैसे ही वीरू ने हामी भरी तो उसके बेटे ने कहना षुरू किया कि हमारे टीचर ने बताया है कि चार्ली चैप्लिन का नाम आज भी दुनियां के उन प्रसिद्व हास्य कलाकारों की सूची में सबसे अवल नंबर पर आता है जिन्होने ने अपनी जुबान से बिना एक अक्षर भी बोले सारा जीवन दुनियां को वो हंसी-खुषी और आनंद दिया है जिसके बारे में आसानी से सोचा भी नही जा सकता। इस महान कलाकार ने जहां अपनी कामेडी कला की बदौलत चुप रह कर अपने जीते जी तो हर किसी को हसाया वही आज उनके इस दुनियां से जाने के बरसों बाद भी हर पीढ़ी के लोग उनकी हास्य की इस जादूगरी को सलाम करते है। 16 अप्रेल 1889 को इंग्लैंड में जन्में इस महान कलाकार की सबसे बड़ी विषेशता यह थी कि लोग न सिर्फ उनके हंसने पर उनके साथ हंसते थे बल्कि उनके चलने पर, उनके रोने पर, उनके गिरने पर, उनके पहनावे को देख कर दिल खोल कर खिलखिलाते थे। अगर इस बात को यू भी कहा जाये कि उनकी हर अदा में कामेडी थी और जमाना उनकी हर अदा का दीवाना था तो गलत न होगा।
पांच-छह साल की छोटी उम्र में जब बच्चे सिर्फ खेलने कूदने में मस्त होते है इस महान कलाकार ने उस समय कामेडी करके अपनी अनोखी अदाओं से दर्षको को लोटपोट करना षुरू कर दिया था। चार्ली चैप्लिन ने अपने घर को ही अपनी कामेडी की पाठषला और अपने माता-पिता को ही अपना गुरू बनाया। इनके माता-पिता दोनो ही अपने जमाने के अच्छे गायक और स्टेज के प्रसिद्व कलाकार थे। एक दिन अचानक एक कार्यक्रम में इनकी मां की तबीयत खराब होने की वजह से उनकी आवाज चली गई। थियेटर में बैठे दर्षको द्वारा फेंकी गई कुछ वस्तुओं से वो बुरी तरह घायल हो गई। उस समय बिना एक पल की देरी किये इस नन्हें बालक ने थोड़ा घबराते हुए लेकिन मन में दृढ़ विष्वास लिये अकेले ही मंच पर जाकर अपनी कामेडी के दम पर सारे षो को संभाल लिया। उसके बाद चार्ली चैप्लिन ने जीवन में कभी भी पीछे मुड़कर नही देखा।
सर चार्ली चैप्लिन एक सफल हास्य अभिनेता होने के साथ-साथ फिल्म निर्देषक और अमेरिकी सिनेमा के निर्माता और संगीतज्ञ भी थे। चार्ली चैप्लिन ने बचपन से लेकर 88 वर्श की आयु तक अभिनय, निर्देषक पटकथा, निर्माण और संगीत की सभी जिम्मेदारियों को बाखूबी निभाया। बिना षब्दों और कहानियों की हालीवुड में बनी फिल्मों में चार्ली चैप्लिन ने हास्य की अपनी खास षैली से यह साबित कर दिया कि केवल पढ़-लिख लेने से ही कोई विद्ववान नही होता। महानता तो कलाकार की कला से पहचानी जाती है और बिना बोले भी आप गुणवान बन सकते है। यह अपने युग के सबसे रचनात्मक और प्रभावषाली व्यक्तियों में से एक थे। इन्होनें सारी उम्र सादगी को अपनाते हुए कामेडी को ऐसी बुलदियों तक पहुंचा दिया जिसे आज तक कोई दूसरा कलाकार छू भी नही पाया। इनके सारे जीवन को यदि करीब से देखा जाये तो एक बात खुलकर सामने आती है कि इस कलाकार ने कामेडी करते समय कभी फूहड़ता का साहरा नही लिया। इसीलिये षायद दुनियां के हर देष में स्टेज और फिल्मी कलाकारों ने कभी इनकी चाल-ढ़ाल से लेकर कपड़ो तक और कभी इनकी खास स्टाईल वाली मूछों की नकल करके दर्षको को खुष करने की कोषिष की है।
हर किसी को मुस्कुराहट और खिलखिलाहट देने वाले मूक सिनेमा के आइकन माने जाने वाले इस कलाकार के मन में सदैव यही सोच रहती थी कि अपनी तारीफ खुद ही की तो क्या किया, मजा तो तभी है कि दूसरे लोग आपके काम की तारीफ करें। चार्ली चैप्लिन की कामयाबी का सबसे बड़ा रहस्य यही था कि इन्होने जीवन को ही एक नाटक समझ कर उसकी पूजा की जिस की वजह से यह खुद भी प्रसन्न रहते थे और दूसरों को भी सदा प्रसन्न रखते थे। इनके बारे में आज तक यही कहा जाता है कि इनके अलावा कोई भी ऐसा कलाकार नही हुआ जिस किसी एक व्यक्ति ने अकेले सारी दुनियां के लोगो को इतना मनोरंजन, सुख और खुषी दी हो। सारी बात सुनने के बाद वीरू ने कहा कि तुम्हारे टीचर ने चार्ली चैप्लिन के बारे में बहुत कुछ बता दिया लेकिन यह नही बताया कि उन्होने यह भी कहा था कि हंसी के बिना बीता हमारा हर दिन व्यर्थ होता है।
सर चार्ली चैप्लिन के महान और उत्साही जीवन से प्रेरणा लेते हुए जौली अंकल का यह विष्वास और भी दृढ़ हो गया है कि जो कोई सच्ची लगन से किसी कार्य को करते है उनके विचारो वाणी एवं कर्मो पर पूर्ण आत्मविष्वास की छाप लग जाती है। कामेडी के मसीहा चार्ली चैप्लिन ने इस बात को सच साबित कर दिखाया कि कोई किसी भी पेषे से जुड़ा हो वो चुप रह कर भी अपने पेषे की सही सेवा करने के साथ हर किसी को खुषियां दे सकता है।
जौली अंकल
Friday, April 29, 2011
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