’’ डा0 मुसद्दी लाल उर्फ मदारी ’’
डा0 मुसद्दी लाल उर्फ मदारी अभी अपनी दुकानदारी षुरू करने का मूड बना ही रहे थे कि वीरू ने वहां आकर चिल्लाना षुरू कर दिया। बात कुछ ऐसे हुई कि कुछ दिन पहले वीरू अपनी टांग का इलाज करवाने के लिये आया था। डा0 मुसद्दी लाल ने यह कह कर वीरू की नीली पड़ गई टांग को काट दिया कि उसमें तेजी से जहर फेल रहा है। अब जब उसके बाद वीरू को लकड़ी की नकली टांग लगा दी तो वो भी नीली होनी षुरू हो गई। अब वीरू को इस बात पर गुस्सा आ रहा था कि लकड़ी की टांग में कैसे जहर फेल सकता है? डा0 मुसद्दी लाल ने भी जब गौर से उसे देखा तो उन्हें समझ आया कि असल में टांग में कोई जहर नही फेला था बल्कि वीरू की पैंट का रंग निकल रहा था।
डा0 मुसद्दी लाल उर्फ मदारी का नाम गांव के सबसे पढ़े-लिखे लोगों में बड़ी इज्जत से लिया जाता है। वो कहां से और कितना पढ़े हैं, इसके ऊपर अभी भी जनता में षोध कार्य चल रहा है। गंावों के कुछ लोग इतना जरूर जानते हैं कि डाक्टरी की दुकानदारी शुरू करने से पहले वो किसी अस्पताल में नौकरी करते थे। वो वहां किस पद पर असीन थे, यह भी अभी तक एक गहरा राज है। इन सब बातों के बावजूद भी डा0 मुसद्दी लाल उर्फ मदारी की दुकान धड़ल्ले से चलती है। डा0 मुसद्दी लाल उर्फ मदारी सिरदर्द से षर्तिया बेटा होने तक की हर बीमारी का इलाज करने में माहिर है। किसी भी बीमारी से पीड़ित कोई भी मरीज उनके पास आ जाए, वो उसे दवाई लिये बिना नहीं जाने देते। जब किसी बीमारी को ठीक से नही समझ पाते या मरीज को समझाने में परेषानी होती तो यह उसे और उलझा देते है। एक दिन अभी डा0 अपनी कुर्सी पर आकर बैठे ही थे, कि एक गांव का चौधरी अपनी रोती चिल्लाती औरत को लेकर आ पहुंचा। ओ डा0 जरा इसने भी देख, सीढ़ियांे से गिर गई सै। लगता है कोई टांग की हड्डी टूट गई सै। इससे पहले कि डा0 जांच षुरू करके चोट के बारे में पूछता, पीछे रखे रेडियो से गाना षुरू हो गया, यह क्या हुआ, कैसे हुआ, कब हुआ? गाना सुनते ही मरीज भी दर्द को भूल कर वहां साथ बैठे सब लोगों के साथ जोर से हंसने लगी।
डा0 मदारी की दुकान लोगों के मनोरंजन और टाईमपास करने का गांव में सबसे सस्ता और बढ़िया जरिया है। एक बार एक अप-टू-डेट लड़का कोई दवाई लेने आ पहुंचा। डा0 के ध्यान न देने पर उसने कहा लगता है, आपने मुझे पहचाना नहीं। मैं चौधरी साहब का बेटा हंू। डा0 ने चश्मा ठीक करते हुए कहा, बेटा मैं कुछ नहीं भूलता मुझे तो तेरा बचपन तक याद है। जब मैं तुम्हारे घर आता था तो घर के बाहर नाली पर बैठ कर पौटी कर रहा होता था। जहां लोग सांस भी नहीं ले सकते, तू वहां साथ में बिस्कुट खाता रहता था। एक दिन मैं तेरे पिता से बात कर रहा था और तूने अन्दर आकर अपनी मां से कहा था, मम्मी आज मैंने सात ढ़ेरियां लगाईं। तेरी मां ने कहा, बेटे गिनती नहीं करते, नजर लग जाती है। पीछे से चौधरी साहब ने गुस्सा करते हुऐ तेरी मां कोे कहा था, बेवकूफ उसने कोई डालरों के ढेर नहीं लगाए - गन्दगी के ढ़ेरों की बात कर रहा है। वो लडका दवाई लेना तो भूल गया और आखंे नीची करके वहां से खिसकने में ही उसे अपनी भलाई नजर दिखाई दे रही थी।
डा0 मुसद्दी लाल मदारी अखबारों और मैगजीन से दादा-दादी के नुस्खे पढ़कर एक अरसे से अपनी दवाईयांे की दुकानदारी चला रहे है। लेकिन कई बार मरीजों को गलत दवाई देने के साथ गलत मरीजांे के साथ पंगा भी हो जाता है। ऐसा ही एक घटना उनके साथ पिछले दिनों में घटी। गांव के थानेदार की तबीयत कुछ खराब हुई तो उन्हें भी डा0 मदारी की याद सताने लगी। थानेदार साहब थोडी देर बाद ही डाक्टर के सामने बैठे थे। कुछ इधर-उधर की बातें करने के बाद थानेदार ने अपनी तकलीफों की लिस्ट डाक्टर को सुनानी षुरू कर दी। डा0 मुसद्दी लाल मदारी मन ही मन बहुत प्रसन्न हो रहे थे कि आज बहुत दिनों के बाद कोई अच्छा सा मुर्गा हाथ लगा है। कुछ दवाईयां जो बरसों से डिब्बो में बन्द थीं उन्हें भी आज ताजी हवा नसीब होगी। थानेदार की आधी-अधूरी बात सुन कर डाक्टर ने अपनी पुरानी आदतानुसार दवाईयां तैयार करनी षुरू कर दी। चार-पांच अलग किस्म की गोलियां और एक दवाई की बोतल थानेदार के सामने रख दी। इससे पहले की थानेदार कुछ कहता, मुसद्दी लाल की किस्मत खराब, उसने 250 रूपये फीस की फरमाईश कर दी।
डाक्टर के पैसे मांगने की हिम्मत देखकर थानेदार का खून उबलने लगा था। पूरे इलाके में आज तक किसी ने दूध-दही, राशन वाले ने भी यह गलती नहीं की थी। थानेदार को लग रहा था कि जैसे पैसे मांग कर डाक्टर ने उसे कोई गाली दे दी हो। इतने रौब-दाब वाले थानेदार से पैसे मांग कर डा0 मदारी ने कितनी बड़ी गलती की थी, इसका अन्दाजा उसे भी होने लगा था। थानेदार ने पैसे तो क्या देने थे, हां डाक्टर की डाक्टरी पर जरूर कई प्रश्न चिन्ह लगा दिये। उससे उसकी पढ़ाई और डिग्रियों के बारे मे तफतीष षुरू कर दी थी। गांव में हुई एक-दो मौतों की जिम्मेदारी भी डा0 मदारी के ऊपर डाल दी। अब तक डाक्टर को अच्छी तरह से समझ आ गया, कि उसने जानबूझ कर मधुमक्खियांे के छत्ते में हाथ डाल दिया है। अब उससे बचने के लिये थानेदार साहब के लिये बढ़िया से नाश्ते पानी का इन्तजाम षुरू कर दिया। इससे पहले कि डाक्टर का नौकर नाश्ता-पानी ले कर आता, थानेदार ने डाक्टर की कमाई का हिसाब लगाना षुरू कर दिया। डाक्टर ने भी मौके की नजाकत को समझते हुऐ पिछले 15-20 दिनों की सारी कमाई थानेदार की जेब में डाल दी। अपनी दुकानदारी को आगे भी ठीक से चलता रखने के लिये कई बार माफी भी मांगी। जहां आजकल मुन्ना भाई जादू की झप्पी से लोगों का इलाज करता है। वही हमारे प्रिय डा0 मुसद्दी लाल मदारी के अधिकतर मरीज तो इनकी चुलबुली हरकतों से ही ठीक हो जाते हैं। सीखने वाले अपनी हर भूल से कुछ न कुछ जरूर सीखते है। जौली अंकल का मानना है कि बेवकूफों की बातों का कभी भी बुरा नही मानना चहिये, क्योंकि यह तो बाबा आदम के जमाने से ही बहुमत में रहते आये है। परंतु डा0 मुसद्दी लाल उर्फ मदारी जैसे डॉक्टरो से दूर रहने का सबसे बढ़ियां तरीका है कि आप हंसकर अपने दुखों को दूर कर सकते है, परन्तु रोने से तो आपके दुख और बढ़ते ही है।
Search This Blog
Followers
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment