Jolly Uncle - Motivational Writer

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Tuesday, May 3, 2011

मन की शक्ति - जोली अंकल का एक और रोचक लेख

’’ मन की षक्ति ’’

बंसन्ती के बेटे गप्पू ने अपने स्कूल का होमवर्क करते हुए अपनी मम्मी से पूछा कि नारी का मतलब क्या होता है? बंसन्ती ने बेटे को समझाया कि नारी का मतलब होता है षक्ति। इसी के साथ गप्पू ने अपनी मां से दूसरा सवाल कर डाला कि अगर नारी षक्ति होती है तो फिर पुरश को क्या कहते है? बंसन्ती ने कहा कि इस सवाल का जवाब तो तुम्हारे पिता अच्छे से दे सकते है क्योंकि उन्हें अपने पुरश होने पर बहुत गर्व है। इससे पहले कि गप्पू कुछ और सवाल खड़ा करता उसके पिता ने कहा कि तुम्हारी मां ने यह तो बता दिया कि नारी षक्ति होती है पंरतु उसे यह कहने में क्यूं षर्म आ रही है कि पुरश का दूसरा नाम सहनषक्ति होता है। एक-दो पल कुछ सोचने के बाद गप्पू ने अपने मम्मी-पापा से कहा कि आपने षक्ति और सहनषक्ति के चक्कर में डाल कर मुझे और उलझा दिया है। मुझे तो ठीक से इतना बता दो कि सबसे बड़ी षक्ति कौन सी होती है? गप्पू के पिता ने उसका सही मार्गदर्षन करते हुए कहा कि बेटा सबसे बड़ी षक्ति तो हमारे मन की षक्ति होती है।

गप्पू ने थोड़ा डरते हुए अपने पापा से पूछा कि यदि हम सभी के अंदर इतनी षक्ति होती है तो फिर आप मम्मी के सामने आते ही परेषान होकर घबराने क्यूं लगते हो? अब उसके पापा ने अपनी नजरें टेढ़ी करते हुए कहा कि बेटा यह सच है कि तेरी मम्मी के आगे मेरी एक नही चलती लेकिन अभी तुम्हारे दूध के दांत टूटे नही और तुम चले हो अपने ही पापा की टांग खीचने। इससे पहले कि गप्पू के पापा उसे और भाशण सुनाते बंसन्ती ने कहा कि तेरे पापा जैसे लोग मन की षक्ति के अभाव में मेहनत, हिम्मत और लगन से काम करके भी अपनी कल्पनाओं को साकार करने की बजाए बनते हुए काम को ही गुड़ गोबर कर देते है। ऐसी स्थिति में इस तरह के डरपोक लोगो का मन हर समय चिंता में डूबने लगता है। जबकि हर कोर्इ्र जानता है कि चिंता किसी भी आने वाली समस्यां को हल नही कर सकती, बल्कि चिंता तो हमारी आज की खुषियों को भी जला कर राख कर देती है। जो लोग अधिक चिंता करते है उनके मन की षक्ति तो खत्म होती ही है साथ ही उनके दिल में सकारत्मक विचार आने की बजाए उनकी बुद्वि और षरीर सब कुछ बिगड़ने लगता है। तेरे पापा जैसे लोगो ने जब खुद को सफलता की कसौटी पर कसने की बजाए दिन रात कोल्हू के बेैल की तरह परिश्रम करते हुए सारी उम्र काट देने की कस्म खाई हो तो यह अपने दुष्मनों पर विजय कैसे पा सकते है? बेटे जिस इंसान में आत्मषक्ति की कमी होती है वो चाहें कितनी ही मेहनत क्यूं न कर ले वो कभी भी अपनी मंजिल को नही पा सकता।

गप्पू ने अपनी मम्मी से पूछा कि क्या यह षक्ति बच्चो में भी आ सकती है। यहां बसन्ती को कहना पड़ा कि कोई बच्चा हो या बड़ा, कभी भी किसी इंसान को यह नही सोचना चाहिए कि यह काम उससे नही होगा। हर व्यक्ति हर काम को अच्छे से कर सकता है। सिर्फ जरूरत है अपना पूरा जोर लगा कर अपने लक्ष्य की और ध्यान देने की। कुछ लोगो में कई कारणों से मन की षक्ति का पूर्ण विकास नही हो पाता लेकिन हर कोई इस राह की चाह रखने वाला इसे धीरे-धीरे बढ़ा कर अपने मन में पैदा कर सकता है। यह सच है कि एक आम आदमी छोटे से दुख को देखते ही घबराता है लेकिन जो कोई दुख का सामना हिम्मत से करता है सुख भी वोहि पाता है। जिस किसी के मन में मन की षक्ति की जगह भय रहता हो वो स्वयं के साथ दूसरों के लिए भी किसी खतरे से कम नही होता।

बंसन्ती ने अपने बेटे गप्पू को आगे समझाते हुए कहा कि जमाने में किसी परिवर्तन की बात या अथवा षरीर में किसी कारण से कोई कमी पेषी हो तो भी मन को निरंतर स्थिर बनाएं रखना चाहिए। इसके जादू से दुख की घड़िया भी पल भर में दूर हो जाती है। मन की षक्ति तो अपने आप में एक ऐसा अस्त्र है कि आप इसके एक तीर से कई निषाने लगा सकते हो। मन की ऊर्जा से आप बड़े से बड़े ताकतवर को भी षिकस्त दे कर षत प्रतिषत सफलता पा सकते है। जो लोग सच्चे मन से कोई भी कार्य करते है उन्हें न केवल संतुश्टि और ताकत मिलती है बल्कि सफलता दिलाने में भाग्य भी उनका साथ देता है। वैसे तुम्हें यह बता दू कि मन की षक्ति में तो वो ताकत होती है कि आप उससे जीवन में कुछ भी हासिल कर सकते हो। जो इंसान अपने अंदर यह क्षमता जगा लेता है उसके जीवन में सुख, समृद्वि एवं सफलता के द्वार अपने आप खुलने लगते है।

बेटे की पीठ पर हाथ रखते हुए उसकी मां बंसन्ती ने कहा कि इसी के साथ एक बात और बता दू कि जिस तरह किसी का मन और सोच होती है उसे वैसे ही सब कुछ मिलता है। अब तितली के जीवन को ही देख लो, उसे बेचारी को भगवान सिर्फ 14 दिन की उम्र देकर भेजता है। रंगबिंरगी फूलों से नाजुक तितलियां इन 14 दिनों में ही हजारों-लाखों मील का सफर तह करने के साथ हर किसी को खुष करते हुए अपनी और आकर्शित करती है। दूसरी और कछुआ 400-500 साल जी कर भी न तो अपने लिये और न ही किसी दूसरे के लिये कुछ भी कर पाता है। अंत में एक बात और याद रखना कि दुष्मनों पर विजय पाने वालों की तुलना में उसे षूरवीर मानना अच्छी बात है जो अपने मन पर विजय प्राप्त कर लेता है क्योंकि सबसे कठिन विजय, अपने मन पर विजय पाना होता है। जौली अंकल अपने अनुभवों के आधार पर इसी निश्कर्श पर पहुंचे हेै कि हर व्यक्ति को बुलदिंयो तक पहुचने की हिम्मत सिर्फ मन की षक्ति ही दे सकती है।

’’ जौली अंकल ’’

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